रायपुर: छत्तीसगढ़ देश का सबसे बड़ा वनोपज संग्राहक राज्य है. 4 साल पहले छत्तीसगढ़ सरकार सिर्फ सात वनोपजों को खरीदती थी. साल 2019 में सरकार ने सर्वे कराकर लघु वनोपज खरीदी दर तय किया. अब ये संख्या 65 पर पहुंच गई है. इसका दायरा भी लगातार बढ़ता जा रहा है. सरकार का दावा है कि वनोपज का एमएसपी रेट तय होने से प्रदेश के लगभग 6 लाख आदिवासी परिवारों को लाभ मिल रहा है. लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है. जिसकी वजह से आदिवासियों को उनकी मेहनत का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है, और वो है कोचिए. हालांकि प्रशासन का कहना है कि वनोपज की एमएसपी तय होने से कोचियो पर लगाम लग गई हैं.
कोरबा के संजीवनी केंद्र में ETV भारत: ये जानने के लिए ETV भारत की टीम कोरबा के संजीवनी केंद्र पहुंची. जहां आदिवासियों से वनोपज संग्रह कर हर्बल औषधि बनाया जाता है. इस समिति के फड़ प्रभारी हरिशंकर कंवर ने संग्रहण केंद्र में होने वाली पूरी प्रक्रिया को विस्तार से बताया. हरिशंकर ने बताया कि संग्राहक वनोपज को जंगल से संग्रहण करते हैं. इसे सुखाते हैं और फिर इसे लाकर हाट बाजार और ग्राम पंचायत स्तर पर बने समितियों को बेचते हैं. जिसकी राशि संग्राहकों के खाते में हस्तांतरित कर दी जाती है.
वन धन समिति में होता है पंजीयन: फड़ प्रभारी ने बताया कि वर्तमान में 65 प्रकार के वनोपज की खरीदी समर्थन मूल्य पर हो रही है. इससे बिचौलियों का रोल लगभग खत्म हो चुका है. समिति में अपने वनोपज बेचने के लिए वनोपज संग्राहकों का पंजीयन जरूरी है. पंजीकृत संग्राहक अपना वनोपज संग्रहण केंद्र में सीधे बेच सकते हैं. जिन संग्राहकों को समर्थन मूल्य नहीं मिल रहा वे वन धन समिति से संपर्क कर सकते हैं. यहां संग्राहकों के पंजीयन की पूरी व्यवस्था है. फॉर्म भरवाकर पंजीयन के साथ ही उनका बैंक खाता नंबर ले लिया जाता है. जिसमें पैसा ट्रांसफर किया जाता है.
कोरबा समिति के अंतर्गत 10 फड़ आते हैं. हम ग्राम स्तर पर 65 प्रकार के लघु वनोपजों की खरीदी करते हैं. एमएसपी दर पर संग्राहकों से साल बीज, महुआ, परसा फूल, बेल गूदा सहित 65 प्रकार के वनोपज खरीदे जाते हैं. इसका पैसा सीधे संग्राहकों के खाते में ट्रांसफर होता है. इसका फायदा उन्हीं संग्राहकों को मिलता है जिनका पंजीयन है. जिनका पंजीयन नहीं हुआ है वे ग्राम स्तर के समूह पर पंजीयन करा सकते हैंं.हरिशंकर कंवर, फड़ प्रभारी, कोरबा समिति प्रबंधक
समिति में समय पर पैसा नहीं मिलने से कोचियो को बेचते हैं वनोपज: वन धन समिति के माध्यम से वनोपज संग्राहकों को उनका लाभ दिए जाने का दावा फड़ प्रभारी कर रहे हैं लेकिन क्या वाकई में वनोपज संग्राहकों को इसका फायदा मिल रहा है. ये देखने ETV भारत की टीम धमतरी के वनोपज प्रसंस्करण केंद्र पहुंची और संग्राहकों से बात की. जहां संग्राहकों ने बताया कि वे वनोपज बेचकर पैसा कमा रहे हैं और अपना घर परिवार चला रहे हैं. इसके साथ ही ये भी कहा कि कई बार वनोपज के दाम उन्हें सही समय पर नहीं मिलते हैं जिससे उन्हें कोचियो को औने पौने दाम में वनोपज बेचना पड़ता है.
कोरोना काल में भी वनोपज संग्रहण कर हमें काफी लाभ मिला. अभी साल बीज का समर्थन मूल्य कुछ कम है. 22 रुपये प्रति किलो मिलता है लेकिन कई बार ठीक से पैसे नहीं मिलते हैं. हमें कोचियों को 13 से 14 रुपये प्रति किलो में बेचना पड़ता है. रमेश मरकाम
कोचियो से मिल रहा ज्यादा दाम: आदिवासी परिवारों द्वारा कोचियो को वनोपज बेचने की मजबूरी पर भी प्रशासन अपनी पीठ ठोंक रही है. शासन का दावा है कि वनोपज की एमएसपी तय होने से कोचियो का सिंडिकेट अपने आप खत्म हो गया है. उप प्रबंधक बीएस चंदेल ने इसका उदाहरण देते हुए बताया कि एमएसपी तय होने से कोचिया कम दाम में नहीं बल्कि एमएसपी से ज्यादा दाम देकर आदिवासियों से वनोपज खरीद रहे हैं. जिससे संग्राहकों का फायदा हो रहा है.
एक बार की बात है कि एक कोचिया 8 रुपये किलो चरोटा खरीद रहा था. लेकिन शासन ने चरोटा की एमएसपी 14 रुपये तय कर दी, जिसके बाद कोचिए ने 16 रुपये रेट कर दिया संग्राहकों को 2 रुपये किलो का अतिरिक्त लाभ देने के लिए उसने रेट बढ़ाया.- उप प्रबंधक बीएस चंदेल
छत्तीसगढ़ सरकार ने और क्या कदम उठाए : ये तो हुई कोचिए की परेशानी दूर करने की बात. इसके अलावा भी सरकार ने वनोपज संग्राहकों के लिए और भी कई काम किए. शासन ने ग्राम स्तर, समूह स्तर, हाट बाजार में तराजू, बोरा और कर्मचारियों की व्यवस्था की. वनोपज संग्राहकों के लिए 2 अगस्त 2020 को महेंद्र कर्मा सामाजिक सुरक्षा योजना शुरू हुई. इसमें मुखिया की सामान्य मृत्यु होने पर 2 लाख और दुर्घटना से मौत पर 4 लाख रुपए देने का प्रावधान है. लघु वनोपज संग्राहकों का बीमा भी होता है. सामूहिक सुरक्षा बीमा योजना में मुखिया के परिजनों की मौत होने पर 12 हजार रुपए देने का प्रावधान है. मौत चाहे सामान्य हो या दुर्घटना से हो, इसमें सिर्फ 12 हजार रुपये दिए जाते हैं.
लघु वनोपज से आत्मनिर्भर बन रही महिलाएं: आदिवासी महिलाएं अब ना सिर्फ वनोपज इकट्ठा करती हैं बल्कि जंगल से सटे गांवों में वनोपज से कई प्रोडक्ट भी तैयार कर रही हैं. धमतरी जिले के दुगली में जागृति स्वसहायता की तिखूर प्रोसेसिंग यूनिट में महिलाएं आंवला कैंडी, एलोवेरा के साबुन, शैंपू जैसे नौ प्रकार के प्रोडक्ट बनाकर आत्मनिर्भर बन रही हैं.
''यहां हम 27 प्रकार के प्रोडक्ट तैयार करते हैं. इसमें 9 चूर्ण, कॉस्मेटिक प्रोडक्ट के साथ ही दोना पत्तल शामिल है. यहां साल भर काम मिलता है.''-रंभा टेकाम
''5 हजार रुपए हर महीने मिलते हैं. हम आत्मनिर्भर हैं. हमारा घर चल रहा है. परिवार भी खुश हैं.''-अमरीका मंडावी
लघु वनोपज संग्राहकों के बच्चों के लिए प्रतिभाशाली योजना: इस योजना के तहत 10वीं, 12 वीं में 75% से ज्यादा नंबर नंबर लाने वाले सभी छात्र छात्राओं को प्रोत्साहन राशि दी जाती है. 10 वीं के स्टूडेंट को 15 हजार और 12 वीं के स्टूडेंट को 25 हजार रुपये मिलते हैं. मेधावी छात्र योजना भी है. इसके तहत 10 वीं और 12 वीं के एक एक छात्र और छात्रा जो अच्छे अंक से पास हुए हैं, उनकी सूची के आधार पर ढाई हजार 10 वीं वाले को और 3 हजार 12 वीं के एक छात्र एक छात्रा को दिया जता है. एक व्यावसायिक योजना भी है. इसमें एडमिशन की पर्ची दिखाने के बाद बच्चे को कॉलेज की पढ़ाई के लिये व्यावसायिक और गैर व्यावसायिक पाठ्यक्रम की पढ़ाई का खर्चा 3 साल तक मिलता है.