रायपुर: कोरोना वायरस को कंट्रोल में लाने के लिए लगे लॉकडाउन से प्रदेश का स्टील उद्योग पूरी तरह हिल गया है. अनुमान लगाया जा रहा है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी प्रदेश में स्टील उद्योग को पटरी पर आने में कम से कम 6 महीने का समय लगेगा.
स्टील उद्योग पर लॉकडाउन का साइड इफेक्ट
लॉकडाउन ने प्रदेश की रीढ़ की हड्डी माने जाने वाले स्टील और आयरन उद्योग को पूरी तरह ठप कर दिया है. राजधानी समेत पूरे प्रदेश में स्टील इंडस्ट्री के अंतर्गत आने वाले मिनी स्टील प्लांट, रोलिंग मिल, स्पंज आयरन प्लांट और बड़ी औद्योगिक इकाइयों में उत्पादन लगभग पूरी तरह से बैठ गया है. ऐसे में स्टील उद्योगों को 60 हजार करोड़ का नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है. इस औद्योगिक क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या ये है कि 2 महीने के खर्चों को ही कवर करने में कई फैक्ट्रियों में ताले लग जाएंगे. लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी काम कैसे होगा, ये अभी तय नहीं है. लॉकडाउन के पहले इस सेक्टर में 50 हजार टन से ज्यादा का माल बनकर तैयार है, जो बिकेगा कि नहीं इस पर भी उद्योगपतियों को शंका है, क्योंकि माल ना तो बाहर जा पा रहा है और ना ही रियल एस्टेट समेत दूसरे उद्योग जल्द शुरू होने की कोई उम्मीद नजर आ रही है.
आर्थिक विशेषज्ञों की राय
आर्थिक विशेषज्ञों का भी मानना है कि वैश्विक तौर पर आ रही मंदी पूरे विश्व के सामने एक चुनौती की तरह है. छत्तीसगढ़ की बात की जाए, तो प्रदेश में स्टील उद्योग में आपदा का मतलब है प्रदेश में आर्थिक संकट का दौर आने वाला है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि इनके लिए कुछ राहत पैकेज की घोषणा करे.
राजधानी में 10 हजार करोड़ का कारोबार
अकेले राजधानी में ही हर महीने 10 हजार करोड़ से ज्यादा के स्टील और इससे जुड़े उद्योगों का कारोबार होता था, लेकिन कोरोना संकट और लॉकडाउन के चलते स्टील उद्योग पूरी तरह से बंद होने की कगार पर पहुंच गया है. रायपुर में ही 150 से ज्यादा मिनी स्टील प्लांट, 200 रोलिंग मिल, 100 स्पंज आयरन जैसी औद्योगिक ईकाई हैं. वहीं पूरे प्रदेश में करीब एक हजार स्टील प्लांट से जुड़े कारोबार हैं, जिससे लाखों लोग जुड़े हुए हैं.
क्या कहते हैं उद्योगपति
प्रदेश में लॉकडाउन के पहले ही स्पंज आयरन, मिनी स्टील प्लांट और रोलिंग मिल की 50 से ज्यादा फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं, जो फैक्ट्रियां चल भी रही थीं, उनमें भी उत्पादन आधे से भी कम हो रहा था. इस पर प्रदेश के बड़े उद्योगपति पहले ही फिक्र जता चुके हैं, लेकिन अब लॉकडाउन के बाद हालात और खराब हो चुके हैं. उद्योगपतियों को बैंकों का कर्ज सता रहा है, क्योंकि फैक्ट्री में काम हो या ना हो, बैंकों को किश्त चुकानी ही पड़ेगी. मौजूदा दौर में स्टील इंडस्ट्रीज की मानें तो जब तक बैंकों से ब्याज और लोन की किश्तों में छूट नहीं मिलेगी, तब तक स्टील उद्योग के हालात नहीं सुधरेंगे. वहीं उद्योगपतियों का मानना है कि फैक्ट्रियों से वसूल किए जाने वाले मिनिमम डिमांड चार्ज को भी कम करने की जरूरत है.