रायपुर: बारिश का मौसम शुरू होते ही रेनकोट और छाते की डिमांड काफी बढ़ जाती है. पहले सिर्फ बारिश से बचने के लिए यूज करने वाले छाते और रेनकोट अब काफी ज्यादा खूबसूरत और स्टाइलिश लुक में बाजार में आ रहे हैं, जिनकी काफी डिमांड भी है, लेकिन प्रदेश के कई जिलों में एक बार फिर लॉकडाउन लगने के कारण मानसून के शुरुआती सीजन में शुरू हुए छाते और रेनकोट का बाजार एक बार फिर ठंडा पड़ सकता है.
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मार्केट में मेड इन इंडिया के रेनकोट और छातों की डिमांड
बारिश के खूबसूरत मौसम के साथ ही रंग-बिरंगे छाते और रेनकोट भी आंखों को काफी सुंदर लगते हैं. इस बार बाजारों में भी नए-नए और स्टाइलिश छाते और रेनकोट की ज्यादा डिमांड है. दुकानदारों की मानें तो लॉकडाउन के बावजूद भी छाते और रेनकोट का अच्छा बाजार हुआ. सबसे खास बात ये रही कि मार्केट में मेड इन इंडिया के प्रोडक्ट ज्यादा बिके. राजधानी में रेनकोट और छाते की लगभग 200 दुकानें हैं, जहां पर छाता और रेनकोट की बिक्री हो रही है. ज्यादातर ग्राहक ब्रांडेड और अच्छी चीजों को पसंद कर रहे हैं, भले ही उसकी कीमत ज्यादा ही क्यों ना हो. इस बार मार्केट में छाता और रेनकोट चाइनीज़ के बजाय मेड इन इंडिया का है, जिससे ग्राहक काफी जागरूक दिख रहे हैं.
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बारिश का भी छाते और रेनकोट के बाजार में असर
हालांकि कुछ दुकानदारों का मानना है कि छाता और रेनकोट का बाजार सामान्य दिनों की तुलना में कम हुआ है, क्योंकि लोग कोरोना के कारण बाहर नहीं निकल रहे है. जिससे रेनकोट और छातों की दुकानों में भी भीड़ कम ही देखने को मिल रही है. वहीं इनका ये भी मानना है कि मौसम विभाग की बारिश को लेकर की गई चेतावनी का असर इनकी ग्राहकी पर भी पड़ता है. छत्तीसगढ़ में 11 जून को मानसून प्रवेश कर गया है लेकिन पूरे छत्तीसगढ़ में 21 से 23 जून तक झमाझम बारिश प्रदेश के हर जिले में देखने को मिली थी, लेकिन उसके बाद मानसून ब्रेक जैसी स्थिति भी देखने को मिल रही है. राजधानी में सप्ताह में एक या 2 दिन कुछ घंटों के लिए ही बारिश हो रही है. उसके बाद फिर से लोगों को उमस भरी गर्मी का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में ग्राहक रेनकोट और छाता खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं.
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मोरा, तालपत्री और प्लास्टिक की भी काफी डिमांड
रेनकोट और छाते के साथ मानसून में खेती-किसानी के दौरान उपयोग करने वाले मोरा की डिमांड भी पहले जैसे ही है. जिसका ज्यादातर उपयोग किसान और गरीब वर्ग के लोग करते है. इसके अलावा तालपत्री और प्लास्टिक सीट की भी अच्छी-खासी बिक्री हो रही है. बारिश के दौरान कच्चे मकानों की छतों की रिपेयरिंग के लिए पॉलीथीन का उपयोग किया जा रहा है. बता दें कि मोरा प्लास्टिक का बना होता है, जिसे किसान खेतों में बुआई और दूसरे कामों के दौरान बारिश से बचने के लिए उसे ऊपर से ओढ़ लेते हैं.
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राजधानी में 22 जुलाई से 28 जुलाई तक लॉकडाउन
कोविड-19 के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए एक बार फिर राजधानी में 22 जुलाई से 28 जुलाई तक 1 हफ्ते का लॉकडाउन लगाया जा रहा है. जिससे चार महीने बंद रहने के बाद खुले बाजार और सिर्फ बारिश के मौसम में चलने वाले छाते और रेनकोट के बाजार की पूछ-परख फिर से कम हो सकती है.