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छत्तीसगढ़ में बनेगा हाथियों के लिए ठिकाना, इस प्रोजेक्ट को मिली मंजूरी

सीएम भूपेश बघेल ने लेमरू वन परिक्षेत्र में एलिफैंट रिजर्व बनाने की घोषणा की है. इसके बाद अब हाथी एलिफैंट रिजर्व में सुरक्षित रहेंगे.

हाथी
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Published : Aug 17, 2019, 11:51 AM IST

Updated : Aug 17, 2019, 5:48 PM IST

रायपुर : कोरबा के 450 वर्ग किमी में फैले घनघोर जंगल वाले लेमरू वन परिक्षेत्र में एलिफैंट रिजर्व को लेकर अब रास्ता साफ हो गया है. राजधानी रायपुर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कोरबा में लेमरू एलीफैंट रिजर्व बनाने का ऐलान किया है. इसके मुताबिक अब लेमरू वन परिक्षेत्र में एलिफैंट रिजर्व बनाया जाएगा, जिसे हाथियों के लिए विकसित किया जाएगा.

लेमरू वन परिक्षेत्र में एलिफैंट रिजर्व बनाने की घोषणा

दरअसल, पिछले कई सालों से हाथियों का कहर जारी है. वहीं लगातार हाथियों के हमले से कई जानें जा चुकी हैं. वहीं सीएम की घोषणा के बाद शायद आने वाले दिनों में हाथियों के आतंक से लोगों को राहत मिल सकती है. लेमरू दुनिया में अपनी तरह का पहला ‘एलीफैंट रिजर्व’ होगा, जहां हाथियों का स्थाई ठिकाना होगा. साथ ही जैव विविधता और वन्य प्राणी की दिशा में प्रदेश का योगदान दर्ज होगा.

जाने क्या कहते हैं वन्यप्राणी विशेषज्ञ
वन्यप्राणी विशेषज्ञ नितिन सिंघवी का मानना है कि हाथियों की आवाजाही से कई बार जान-माल की हानि होती है. इसकी एक बड़ी वजह है, हाथियों को उनकी पसंदीदा जगह पर रहने की सुविधा नहीं मिल पाना. इसी कारण वन्यप्राणी विशेषज्ञों की सालों पुरानी मांग पर विचार कर मुख्यमंत्री ने इस दिशा में भी हमने गंभीरता से विचार किया है और ‘लेमरू एलीफैंट रिजर्व’ की घोषणा की है.

वन्य प्राणी विशेषज्ञ प्राण चड्ढा ने कहा कि हर साल हाथी के कारण औसतन सौ से अधिक लोगों की मौत हो रही जो चिंता का विषय है इसलिए लेमरू रिजर्व स्वागतयोग्य है. उन्होंने कहा कि लेकिन 450 वर्ग किमी का दायरा अधिक से अधिक 25 से 30 हाथियों के लिए ही उपयुक्त है. लिहाजा रिजर्व एरिया का दायरा और ज्यादा विकसित करने पर ही यह पहल सफल होगा. प्राण चड्ढा ने बताया कि हाथी स्वभाव से जंगलों में विचरण करनेवाले प्राणी होते हैं उन्हें बांधना मुश्किल काम है लिहाजा लेमरू का दायरा बढ़ाने की दिशा में प्रयास करना होगा. प्राणी विशेषज्ञ ने कहा कि सरकार को चाहिए था कि इस महत्वपूर्ण निर्णय से पहले विशेषज्ञों से राय ली जाए.

केंद्र ने पहले ही दिखाई थी हरी झंडी

  • वन्यजीव एक्सपर्ट्स की मानें तो कि प्रदेश हाथी-मानव के बीच द्वंद्व रोकने के लिए पूर्व भाजपा सरकार की ओर से पहले बादलखोल, तमोरपिंगला, सेमरसोत और लेमरू अभयारण्य को चिन्हित किया गया था.
  • इसमें बादलखोल और तमोरपिंगला, सेमरसोत अभयारण्य एलिफेंट रिजर्व को नोटिफाइड किया गया था, लेकिन लेमरू अभ्यारण्य को केंद्र सरकार की ओर से हरी झंडी देने के बाद भी राज्य सरकार ने लेमरू को नोटिफाइड नहीं किया था.

साल 2005 में प्रस्ताव पारित

  • लेमरू वन परिक्षेत्र को लंबे समय से हाथी अभयारण्य से लेकर एलीफैंट रिजर्व बनाने को लेकर कई बार तैयारी हो चुकी थी. साल 2005 में केंद्र सरकार ने इसके लिए प्रस्ताव पारित किया.
  • इसके बाद 2007 में केन्द्र सरकार ने लेमरू को एलीफैंट रिजर्व बनाने का प्लान दिया था, हालांकि इसी बीच नकिया में कोल माइंस को लेकर फिर इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था, तब से लेकर अब तक इसकी प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ी थी. प्रदेश में हाथियों के बढ़ते आतंक को देखते हुए वर्तमान सरकार इसे प्राथमिकता से उठाया है.
  • लेमरू को लेकर ऐलान के बाद खास बात ये है कि इसके कोर एरिया में केवल तीन गांव हैं और पूरा इलाका घनघोर जंगलों से घिरा है, इन्हें शिफ्ट करने में जद्दोजहद होगी.

रायपुर : कोरबा के 450 वर्ग किमी में फैले घनघोर जंगल वाले लेमरू वन परिक्षेत्र में एलिफैंट रिजर्व को लेकर अब रास्ता साफ हो गया है. राजधानी रायपुर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कोरबा में लेमरू एलीफैंट रिजर्व बनाने का ऐलान किया है. इसके मुताबिक अब लेमरू वन परिक्षेत्र में एलिफैंट रिजर्व बनाया जाएगा, जिसे हाथियों के लिए विकसित किया जाएगा.

लेमरू वन परिक्षेत्र में एलिफैंट रिजर्व बनाने की घोषणा

दरअसल, पिछले कई सालों से हाथियों का कहर जारी है. वहीं लगातार हाथियों के हमले से कई जानें जा चुकी हैं. वहीं सीएम की घोषणा के बाद शायद आने वाले दिनों में हाथियों के आतंक से लोगों को राहत मिल सकती है. लेमरू दुनिया में अपनी तरह का पहला ‘एलीफैंट रिजर्व’ होगा, जहां हाथियों का स्थाई ठिकाना होगा. साथ ही जैव विविधता और वन्य प्राणी की दिशा में प्रदेश का योगदान दर्ज होगा.

जाने क्या कहते हैं वन्यप्राणी विशेषज्ञ
वन्यप्राणी विशेषज्ञ नितिन सिंघवी का मानना है कि हाथियों की आवाजाही से कई बार जान-माल की हानि होती है. इसकी एक बड़ी वजह है, हाथियों को उनकी पसंदीदा जगह पर रहने की सुविधा नहीं मिल पाना. इसी कारण वन्यप्राणी विशेषज्ञों की सालों पुरानी मांग पर विचार कर मुख्यमंत्री ने इस दिशा में भी हमने गंभीरता से विचार किया है और ‘लेमरू एलीफैंट रिजर्व’ की घोषणा की है.

वन्य प्राणी विशेषज्ञ प्राण चड्ढा ने कहा कि हर साल हाथी के कारण औसतन सौ से अधिक लोगों की मौत हो रही जो चिंता का विषय है इसलिए लेमरू रिजर्व स्वागतयोग्य है. उन्होंने कहा कि लेकिन 450 वर्ग किमी का दायरा अधिक से अधिक 25 से 30 हाथियों के लिए ही उपयुक्त है. लिहाजा रिजर्व एरिया का दायरा और ज्यादा विकसित करने पर ही यह पहल सफल होगा. प्राण चड्ढा ने बताया कि हाथी स्वभाव से जंगलों में विचरण करनेवाले प्राणी होते हैं उन्हें बांधना मुश्किल काम है लिहाजा लेमरू का दायरा बढ़ाने की दिशा में प्रयास करना होगा. प्राणी विशेषज्ञ ने कहा कि सरकार को चाहिए था कि इस महत्वपूर्ण निर्णय से पहले विशेषज्ञों से राय ली जाए.

केंद्र ने पहले ही दिखाई थी हरी झंडी

  • वन्यजीव एक्सपर्ट्स की मानें तो कि प्रदेश हाथी-मानव के बीच द्वंद्व रोकने के लिए पूर्व भाजपा सरकार की ओर से पहले बादलखोल, तमोरपिंगला, सेमरसोत और लेमरू अभयारण्य को चिन्हित किया गया था.
  • इसमें बादलखोल और तमोरपिंगला, सेमरसोत अभयारण्य एलिफेंट रिजर्व को नोटिफाइड किया गया था, लेकिन लेमरू अभ्यारण्य को केंद्र सरकार की ओर से हरी झंडी देने के बाद भी राज्य सरकार ने लेमरू को नोटिफाइड नहीं किया था.

साल 2005 में प्रस्ताव पारित

  • लेमरू वन परिक्षेत्र को लंबे समय से हाथी अभयारण्य से लेकर एलीफैंट रिजर्व बनाने को लेकर कई बार तैयारी हो चुकी थी. साल 2005 में केंद्र सरकार ने इसके लिए प्रस्ताव पारित किया.
  • इसके बाद 2007 में केन्द्र सरकार ने लेमरू को एलीफैंट रिजर्व बनाने का प्लान दिया था, हालांकि इसी बीच नकिया में कोल माइंस को लेकर फिर इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था, तब से लेकर अब तक इसकी प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ी थी. प्रदेश में हाथियों के बढ़ते आतंक को देखते हुए वर्तमान सरकार इसे प्राथमिकता से उठाया है.
  • लेमरू को लेकर ऐलान के बाद खास बात ये है कि इसके कोर एरिया में केवल तीन गांव हैं और पूरा इलाका घनघोर जंगलों से घिरा है, इन्हें शिफ्ट करने में जद्दोजहद होगी.
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कोरबा के 450 वर्ग किमी घनघोर जंगलों वाले लेमरू वन परिक्षेत्र में एलिफेंट रिजर्व को लेकर अब रास्ता साफ हो गया है।।राजधानी रायपुर में सीएम भूपेश बघेल ने कोरबा में लेमरू एलीफेंट रिजर्व बनाने का ऐलान किया है। इसके मुताबिक अब 450 वर्ग किलोमीटर घनघोर जंगलों वाले लेमरू वन परिक्षेत्र में एलिफेंट रिजर्व बनेगा. इससे हाथियों के लिए रिजर्व एलिफेंट रिजर्व के रूप में विकसित किया जाएगा। एक बार फिर से उम्मीद है कि हाथियों के संरक्षण के लिए छत्तीसगढ़ में किए गए कई योजनाओं के मुकाबले ये जरूर कारगर साबित होगा। चूंकि पिछ्ली कई योजनाओं के रिकॉर्ड सही नही रहे है। Body:


वीओ- 1


छत्तीसगढ़ में पिछले कई सालों से मानब हाथी द्वंद के हालात बने हुए है। इसके पीछे जंगलो की मनमानी कटाई और अंधाधुंध माइनिंग जैसे कारण रहे है। अब प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हाथियो के लिए लेमरू एलिफेंट रिजर्व का एलान कर दिया है। लेमरू दुनिया में अपनी तरह का पहला ‘एलीफेंट रिजर्व’ होगा, जहां हाथियों का स्थाई ठिकाना होगा. स्थाई ठिकाना बन जाने से उनकी अन्य स्थानों पर आवा-जाही तथा इससे होने वाले नुकसान पर भी अंकुश लगेगा और जैव विविधता तथा वन्य प्राणी की दिशा में प्रदेश का योगदान दर्ज होगा. विशेषज्ञों का भी मानना है कि हाथियों की आवा-जाही से कई बार जान-माल की हानि होती है. इसकी एक बड़ी वजह है, हाथियों को उनकी पसंदीदा जगह पर रहने की सुविधा नहीं मिल पाना भी है. इसी के चलते वन्यप्राणी विशेषज्ञों की सालो पुरानी मांग पर विचार कर मुख्यमंत्री ने इस दिशा में भी हमने गंभीरता से विचार किया है और ‘लेमरू एलीफेंट रिजर्व’ की घोषणा की है।

बाईट- भूपेश बघेल, मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़

गौरतलब कि प्रदेश में हाथियों की समस्या लोग परेशान हैं. पिछले तीन साल में 200 से अधिक लोगों की जान हाथियों के हमले में गई है। लेमरू वन परिक्षेत्र को लंबे समय से हाथी अभयारण्य से लेकर एलीफेंट रिजर्व बनाने को लेकर कई बार तैयारी हो चुकी थी। 2005 में केन्द्र सरकार ने इसके लिए प्रस्ताव पारित किया। इसके बाद 2007 में केन्द्र सरकार ने लेमरू को एलीफेंट रिजर्व बनाने का प्लान दिया था, हालांकि इसी बीच नकिया में कोल माइंस को लेकर फिर इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। तब से लेकर अब तक इसकी प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ी थी।
बीच में यह भी बात कही गई थी कि हाथी अभयारण्य बनाया जाएगा। लेकिन वह भी सिर्फ घोषणा तक सीमित रही। कांग्रेस ने लेमरू को एलीफेंट रिजर्व बनाने के लिए अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था। वन्यजीव एक्सपर्ट्स की माने तो कि प्रदेश हाथी-मानव द्वंद्व रोकने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा पूर्व में बादलखोल, तमोरपिंगला, सेमरसोत और लेमरू अभयारण्य को चिन्हित भी किया था, जिसमें बादलखोल और तमोरपिंगला, सेमरसोत अभयारण्य एलिफेंट रिजर्व को नोटिफाइड किया गया है, लेकिन लेमरू अभ्यारण्य को केंद्र सरकार द्वारा हरी झंडी देने के बाद भी राज्य सरकार द्वारा लेमरू को नोटिफाइड नहीं किया गया। इस कारण इसे हाथी रिजर्व क्षेत्र नहीं बनाया जा सका, लेकिन प्रदेश में हाथियों के बढ़ते आंतक को देखते हुए वर्तमान सरकार इसे प्राथमिकता में ली है।

बाईट- नितिन सिंघवी, वन्यप्राणी विशेषज्ञ

Conclusion: फाइनल वीओ
सरगुजा से राजधानी की सीमा तक विचरण कर रहे करीब 300 हाथियों की समस्या से निपटने के लिए वैसे तो कई तरह के प्लान बनाए गए। इनमें हाथियों से बचने के लिए सोलर फेंसिंग, प्रभावित गांवो के चारो ओर ट्रेंच खोदने, हाथियों के प्रभावित इलाकों में अंडरपास, ब्रिज बनाए जाने जैसे प्लान बनाए जा चुके हैं। अब लेमरू को लेकर एलान के बाद खास बात ये है कि इसके कोर एरिया में केवल तीन गांव हैं और पूरा इलाका घनघोर जंगलों से घिरा है। इन्हें शिफ्ट करने जद्दोजहद होगी।

पीटीसी

मयंक ठाकुर, ईटीवी भारत, रायपुर




Last Updated : Aug 17, 2019, 5:48 PM IST
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