रायपुर: राजधानी को 'तालाबों की नगरी' के नाम से जाना जाता है. शहर के प्राचीनतम तालाबों में से एक कंकाली तालाब है. शहर के बीच स्थित तालाब शहर की सुंदरता को बढ़ाता है. वहीं कंकाली तालाब का ऐतिहासिक महत्व है.
इतिहासकार डॉक्टर रमेंद्रनाथ मिश्र बताते हैं कि तालाब का निर्माण महंत कृपाल गिरी ने कराया था. वहीं बताया जाता है कि तालाबों का तांत्रिक महत्व भी है. शहर के बीच स्थित तालाब की स्तिथि यह है कि आस्था के नाम पर अब भी लोगों द्वारा पूजन सामग्री का विसर्जन तालाब में किया जाता है. जिसके कारण तालाब का पानी प्रदूषित हो रहा है.
कंकाली तालाब का इतिहास
इतिहासकार मिश्र बताते हैं कि कृपाल गिरी ने कंकाली तालाब के घाट पर चारों तरफ से पचरी (सीढ़ी) का निर्माण कराया गया है. तालाब के बीच में शिव मंदिर है, जो हमेशा पानी में डूबा रहता है. देवी का मंदिर ऊंचे स्थान पर टीले में है. कंकाली माता मंदिर के नाम से इस तालाब का नाम कंकाली तालाब पड़ा. बताया जाता है कि यह पहले तांत्रिक परम्परा से जुड़ा हुआ था.
तालाब में है सुरंग
कंकाली तालाब में दो सुरंग हैं, जो 11 फीट चौड़ी है. बताया जाता है कि सुरंग का रास्ता राजा के किले की ओर जाता था. एक सुरंग बूढ़ा तालाब होकर महाराज तालाब की ओर निकलती है. दूसरी सुरंग तात्यापारा की ओर निकलती है. बताया जाता है की तालाब ओवरफ्लो पानी सुरंग के जरिए बाहर निकलता है.
चर्म रोग दूर होता है
वहीं ऐसी मान्यता है कि यहां के तालाब के पानी से स्नान करने से चर्म रोग दूर होता है. दूर-दूर से लोग यहां स्नान करने आते हैं. तालाब के अस्तित्व को लेकर इतिहासकार ने कहा कि तालाब का अस्तित्व तभी बच सकता है, जब जनता सजग रहे. पूजन की सामग्री का विसर्जन तालाब में ना किया जाए.
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तालाब का सौंदर्यीकरण
वहीं नगर निगम और सरकार ने तालाब का सौंदर्यीकरण करने का संकल्प लिया है. तालाब के सामने जो खुमचे और दुकानें लगाई जाती हैं, उसे हटवाकर सुंदर स्वरूप दिया जा सकता है. वहीं तालाब की सफाई के लिए लोगों को संकल्प कर श्रमदान करना चाहिए. तभी कंकाली तालाब का विकास हो पाएगा.