ETV Bharat / state

छत्तीसगढ़ के पहले सीएम अजीत जोगी की दूसरी पुण्य तिथि आज

अजीत जोगी की पुण्यतिथि पर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) के नेता-कार्यकर्ता आज उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए सामूहिक रूप से उनके अधूरे सपने को पूरा करने का संकल्प लेंगे. आज अजित जोगी की दूसरी पुण्य तिथि है. कार्यक्रम में आज नेता और अधिकारी शामिल होंगे.

death anniversary of ajit jogi
अजीत जोगी की पुण्य तिथि
author img

By

Published : May 29, 2022, 10:25 AM IST

Updated : May 29, 2022, 12:16 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी की आज दूसरी पुण्यतिथि है. 2020 आज ही के दिन प्रशासनिक सेवा से राजनीति में आए अजीत जोगी ने अंतिम सांस ली थी. अजीत जोगी की पुण्यतिथि पर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) के नेता-कार्यकर्ता आज उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए सामूहिक रूप से उनके अधूरे सपने को पूरा करने का संकल्प लेंगे. आदिवासी परिवार में जन्मे अजीत जोगी IAS, विधायक, सांसद के साथ छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री रहे हैं.

यह भी पढ़ें: जल जंगल जमीन पर छत्तीसगढ़ सरकार के काम से पीछे हट रहे नक्सली: भूपेश बघेल

प्रशासनिक सेवा से राजनीतिक सफर तक: साल 1986 में मध्यप्रदेश प्रशासनिक सेवा का एक अधिकारी राजनीति के सफर पर निकल पड़ा था. वो प्रशासनिक अधिकारी जो कांग्रेस का हाथ थामकर बुलंदी तक पहुंचा. बड़ा आदिवासी चेहरा, विषयों पर पकड़ रखने वाला ऐसा जननेता जिसकी धाराप्रवाह बोली लोगों को 'जोगी जी जिंदाबाद' कहने पर मजबूर कर देती थी. 74 साल की उम्र में करीब 33 साल के राजनीतिक करियर के साथ अजीत जोगी ने हमें अलविदा तो कह दिया, लेकिन जब-जब छत्तीसगढ़ की राजनीति का जिक्र होगा, अजीत जोगी के बिना मुकम्मल नहीं होगा.

जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने मध्य प्रदेश से अलग करके छत्तीसगढ़ को राज्य का दर्जा दिया, तो अजीत जोगी वहां के पहले मुख्यमंत्री बने थे. उस समय का उनका एक बयान बहुत चर्चित है कि 'हां, मैं सपनों को सौदागर हूं और मैं सपने बेचता हूं.' हालांकि बाकी के किसी विधानसभा चुनाव में राज्य की जनता ने उनका सपना खरीदना स्वीकार नहीं किया.

अजीत जोगी की राजनीति में एंट्री भी बड़ी रोचक है. बात 1985 की है. अजीत जोगी उस वक्त इंदौर के कलेक्टर थे और राजीव गांधी अपनी मां इंदिरा गांधी की मौत के बाद हुए चुनाव में प्रधानमंत्री बने थे. एक रात अचानक दिल्ली के प्रधानमंत्री निवास से इंदौर के कलेक्टर को फोन गया और कलेक्टर जोगी कांग्रेसी जोगी बन बैठे. इंदौर कलेक्टर रहते हुए ही उन्होंने प्रशासनिक सेवा छोड़ी और राजनीति का रुख कर लिया.

कहते हैं कि जिस वक्त अजीत जोगी रायपुर में कलेक्टर थे, उस समय राजीव गांधी के संपर्क में आ गए. जब राजीव गांधी रायपुर रुकते थे, तो एयरपोर्ट पर जोगी खुद उनकी आवभगत के लिए पहुंच जाते थे. बताया जाता है कि इस खातिरदारी ने उन्हें राजनीति का टिकट दिला दिया. कांग्रस ने पहले उन्हें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समिति का सदस्य बनाया, फिर राज्यसभा की सदस्यता दिला दी. उन्होंने 1998 तक लगातार दो कार्यकालों तक उच्च सदन में सेवा दी. पहली बार 1998 में रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र से वे चुनाव जीते थे.


ऐसे बने छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री: साल 1999 में अजीत जोगी शहडोल लोकसभा सीट से चुनाव हार गए थे, लेकिन उसके बाद जब नया राज्य बना, तो स्थानीय कांग्रेस में ऐसा समीकरण बना कि जोगी को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल गया. 2000 से लेकर 2003 के विधानसभा चुनाव तक उनके पास ये पद रहा, लेकिन फिर से वह इस पद पर वापसी नहीं कर सके.

यह भी पढ़ें: सीएम भूपेश को किसानों ने दिया ऐसा आंकड़ा कि उड़ गए सभी के होश

2003 के बाद ऐसा रहा राजनीतिक सफर: जब 2003 में कांग्रेस छत्तीसगढ़ की सत्ता से बेदखल हो गई, तो अजीत जोगी 2004 के लोकसभा चुनाव में इलेक्शन लड़े और फिर से लोकसभा में दाखिल हुए. 2008 में उन्होंने संसद की सदस्यता छोड़कर मरवाही विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और विधायक बन गए. 2008 के विधानसभा चुनाव में रमन सिंह की अगुवाई वाली भाजपा ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को एकबार फिर से वापसी का मौका नहीं दिया, तो एक साल बाद अजीत जोगी फिर से 2009 के चुनाव में भाग्य आजमाने के लिए महासमुंद लोकसभा क्षेत्र पहुंच गए. 2009 में वे फिर लोकसभा सांसद बने, लेकिन 2014 की मोदी लहर में उन्हें भाजपा उम्मीदवार के हाथों ये सीट गंवा देनी पड़ी.

विवादों से हमेशा जुड़ा रहा जोगी का नाम: अजीत जोगी के नाम पर सबसे बड़ा विवाद उनके आदिवासी होने को लेकर रहा. हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2018 में उनके आदिवासी होने के पक्ष में फैसला दिया.

अंतागढ़ टेपकांड: 2014-15 में अजीत जोगी के साथ एक और बड़ा विवाद जुड़ा, जिसे अंतागढ़ टेपकांड के नाम से जानते हैं. दरअसल 2014 में कांकेर जिला के अंतागढ़ विधानसभा में उपचुनाव हुआ था. इस उपचुनाव में कांग्रेस ने मंतूराम पवार और भाजपा ने भोजराम नाग को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन ऐन टाइम पर मंतूराम ने अपना नाम वापस ले लिया था, इस तरह भाजपा को उस चुनाव में वॉकओवर मिल गया था. बाद में इस मामले में एक ऑडियो टेप वायरल हुआ, जिसमें कथित रूप से मंतूराम पवार को नाम वापस लेने के पीछे एक सौदा चल रहा था. इस मामले ने बाद में तूल पकड़ा और अजीत जोगी और अमित जोगी को पार्टी के बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

इसके बाद अजीत जोगी ने 2018 विधानसभा चुनाव से पहले जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) नाम से एक पार्टी बनाई. 2018 में बसपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने वाली इस पार्टी ने 5 सीटों पर चुनाव जीतने में कामयाबी पाई. अंतागढ़ टेप कांड केस में कांग्रेस ने कड़ी कार्रवाई करते हुए अजीत जोगी और अमित जोगी को बाहर का रास्ता दिखा दिया था. कांग्रेस की सरकार आने पर किरणमयी नायक की शिकायत पर इस मामले में मंतूराम पवार, अमित जोगी, अजीत जोगी, राजेश मूणत और डॉ पुनीत गुप्ता के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया था.

रायपुर: छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी की आज दूसरी पुण्यतिथि है. 2020 आज ही के दिन प्रशासनिक सेवा से राजनीति में आए अजीत जोगी ने अंतिम सांस ली थी. अजीत जोगी की पुण्यतिथि पर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) के नेता-कार्यकर्ता आज उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए सामूहिक रूप से उनके अधूरे सपने को पूरा करने का संकल्प लेंगे. आदिवासी परिवार में जन्मे अजीत जोगी IAS, विधायक, सांसद के साथ छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री रहे हैं.

यह भी पढ़ें: जल जंगल जमीन पर छत्तीसगढ़ सरकार के काम से पीछे हट रहे नक्सली: भूपेश बघेल

प्रशासनिक सेवा से राजनीतिक सफर तक: साल 1986 में मध्यप्रदेश प्रशासनिक सेवा का एक अधिकारी राजनीति के सफर पर निकल पड़ा था. वो प्रशासनिक अधिकारी जो कांग्रेस का हाथ थामकर बुलंदी तक पहुंचा. बड़ा आदिवासी चेहरा, विषयों पर पकड़ रखने वाला ऐसा जननेता जिसकी धाराप्रवाह बोली लोगों को 'जोगी जी जिंदाबाद' कहने पर मजबूर कर देती थी. 74 साल की उम्र में करीब 33 साल के राजनीतिक करियर के साथ अजीत जोगी ने हमें अलविदा तो कह दिया, लेकिन जब-जब छत्तीसगढ़ की राजनीति का जिक्र होगा, अजीत जोगी के बिना मुकम्मल नहीं होगा.

जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने मध्य प्रदेश से अलग करके छत्तीसगढ़ को राज्य का दर्जा दिया, तो अजीत जोगी वहां के पहले मुख्यमंत्री बने थे. उस समय का उनका एक बयान बहुत चर्चित है कि 'हां, मैं सपनों को सौदागर हूं और मैं सपने बेचता हूं.' हालांकि बाकी के किसी विधानसभा चुनाव में राज्य की जनता ने उनका सपना खरीदना स्वीकार नहीं किया.

अजीत जोगी की राजनीति में एंट्री भी बड़ी रोचक है. बात 1985 की है. अजीत जोगी उस वक्त इंदौर के कलेक्टर थे और राजीव गांधी अपनी मां इंदिरा गांधी की मौत के बाद हुए चुनाव में प्रधानमंत्री बने थे. एक रात अचानक दिल्ली के प्रधानमंत्री निवास से इंदौर के कलेक्टर को फोन गया और कलेक्टर जोगी कांग्रेसी जोगी बन बैठे. इंदौर कलेक्टर रहते हुए ही उन्होंने प्रशासनिक सेवा छोड़ी और राजनीति का रुख कर लिया.

कहते हैं कि जिस वक्त अजीत जोगी रायपुर में कलेक्टर थे, उस समय राजीव गांधी के संपर्क में आ गए. जब राजीव गांधी रायपुर रुकते थे, तो एयरपोर्ट पर जोगी खुद उनकी आवभगत के लिए पहुंच जाते थे. बताया जाता है कि इस खातिरदारी ने उन्हें राजनीति का टिकट दिला दिया. कांग्रस ने पहले उन्हें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समिति का सदस्य बनाया, फिर राज्यसभा की सदस्यता दिला दी. उन्होंने 1998 तक लगातार दो कार्यकालों तक उच्च सदन में सेवा दी. पहली बार 1998 में रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र से वे चुनाव जीते थे.


ऐसे बने छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री: साल 1999 में अजीत जोगी शहडोल लोकसभा सीट से चुनाव हार गए थे, लेकिन उसके बाद जब नया राज्य बना, तो स्थानीय कांग्रेस में ऐसा समीकरण बना कि जोगी को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल गया. 2000 से लेकर 2003 के विधानसभा चुनाव तक उनके पास ये पद रहा, लेकिन फिर से वह इस पद पर वापसी नहीं कर सके.

यह भी पढ़ें: सीएम भूपेश को किसानों ने दिया ऐसा आंकड़ा कि उड़ गए सभी के होश

2003 के बाद ऐसा रहा राजनीतिक सफर: जब 2003 में कांग्रेस छत्तीसगढ़ की सत्ता से बेदखल हो गई, तो अजीत जोगी 2004 के लोकसभा चुनाव में इलेक्शन लड़े और फिर से लोकसभा में दाखिल हुए. 2008 में उन्होंने संसद की सदस्यता छोड़कर मरवाही विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और विधायक बन गए. 2008 के विधानसभा चुनाव में रमन सिंह की अगुवाई वाली भाजपा ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को एकबार फिर से वापसी का मौका नहीं दिया, तो एक साल बाद अजीत जोगी फिर से 2009 के चुनाव में भाग्य आजमाने के लिए महासमुंद लोकसभा क्षेत्र पहुंच गए. 2009 में वे फिर लोकसभा सांसद बने, लेकिन 2014 की मोदी लहर में उन्हें भाजपा उम्मीदवार के हाथों ये सीट गंवा देनी पड़ी.

विवादों से हमेशा जुड़ा रहा जोगी का नाम: अजीत जोगी के नाम पर सबसे बड़ा विवाद उनके आदिवासी होने को लेकर रहा. हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2018 में उनके आदिवासी होने के पक्ष में फैसला दिया.

अंतागढ़ टेपकांड: 2014-15 में अजीत जोगी के साथ एक और बड़ा विवाद जुड़ा, जिसे अंतागढ़ टेपकांड के नाम से जानते हैं. दरअसल 2014 में कांकेर जिला के अंतागढ़ विधानसभा में उपचुनाव हुआ था. इस उपचुनाव में कांग्रेस ने मंतूराम पवार और भाजपा ने भोजराम नाग को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन ऐन टाइम पर मंतूराम ने अपना नाम वापस ले लिया था, इस तरह भाजपा को उस चुनाव में वॉकओवर मिल गया था. बाद में इस मामले में एक ऑडियो टेप वायरल हुआ, जिसमें कथित रूप से मंतूराम पवार को नाम वापस लेने के पीछे एक सौदा चल रहा था. इस मामले ने बाद में तूल पकड़ा और अजीत जोगी और अमित जोगी को पार्टी के बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

इसके बाद अजीत जोगी ने 2018 विधानसभा चुनाव से पहले जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) नाम से एक पार्टी बनाई. 2018 में बसपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने वाली इस पार्टी ने 5 सीटों पर चुनाव जीतने में कामयाबी पाई. अंतागढ़ टेप कांड केस में कांग्रेस ने कड़ी कार्रवाई करते हुए अजीत जोगी और अमित जोगी को बाहर का रास्ता दिखा दिया था. कांग्रेस की सरकार आने पर किरणमयी नायक की शिकायत पर इस मामले में मंतूराम पवार, अमित जोगी, अजीत जोगी, राजेश मूणत और डॉ पुनीत गुप्ता के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया था.

Last Updated : May 29, 2022, 12:16 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.