रायपुर: जन्माष्टमी का त्योहार भगवान श्रीकृष्ण की जन्म तिथि के रूप में मनाया जाता है. भाद्रपद यानी भादो मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. वे आधी रात को मथुरा के कारागार में जन्में. पंचांग के अनुसार जन्माष्टमी इस बार 2 दिन मनाई जाएगी. पहली 18 अगस्त को होगी, जिसे गृहस्थ जीवन जीने वाले लोग मनाएंगे. वहीं, 19 अगस्त की जन्माष्टमी साधु-संत मनाएंगे. इस बार जन्माष्टमी काफी खास होने वाली है क्योंकि इस दिन काफी खास योग बन रहे हैं. इस दिन वृद्धि योग भी लग रहा है.
ऐसे करें व्रत: जो श्रद्धालु जन्माष्टमी का व्रत रखने जा रहे हैं, वे अष्टमी से एक दिन पूर्व सप्तमी तिथि को हल्का और सात्विक भोजन करें. साथ ही ब्रह्मचर्य का भी पालन करें. अगले दिन अष्टमी तिथि को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर साफ वस्त्र धारण करें. आसान बैठा कर उत्तर या पूर्व मुख कर बैठ जाएं. सभी देवी देवताओं को प्रणाम करने के बाद हाथ में जल, फल और पुष्प लेकर अष्टमी तिथि को व्रत रखने का संकल्प लें. इसके बाद स्वयं के ऊपर काला तिल छिड़क कर माता देवकी के लिए एक प्रसूति घर का निर्माण करें. फिर इस प्रसूति गृह में बिस्तर कलश स्थापना करें. माता देवकी की स्तनपान कराती प्रतिमा भी रखें.
जन्माष्टमी व्रत नियम: देवकी, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी जी इन सबका नाम लेकर पूजा करें. फलाहार में कट्टू के आटे की पूरी, मावे की बर्फी और सिंघाड़े के आटे का हलवा बनाया जाता है. जन्माष्टमी का व्रत एकादशी के व्रत की ही तरह रखा जाता है. इस दिन अन्न ग्रहण करना निषेध माना गया है. जन्माष्टमी का व्रत एक निश्चित अवधि में ही तोड़ा जाता है. इसे पारण मुहूर्त कहते हैं. जन्माष्टमी का पारण सूर्योदय के बाद अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने के बाद तोड़ा जाता है.
यह भी पढ़ें: सावन 2022: सावन का दूसरा सोमवार आज, ऐसे करें भगवान शिव को प्रसन्न ?
ऐसे होता है पारण मुहूर्त: अगर सूर्योदय के बाद इन दोनों में से एक भी मुहूर्त सूर्यास्त से पहले समाप्त नहीं होता है तो व्रत सूर्यास्त के बाद तोड़ा जाता है. ऐसी स्थिति में इन दोनों में से कोई भी एक मुहूर्त पहले समाप्त हो जाये, उसे ही जन्माष्टमी व्रत का पारण मुहूर्त माना जाता है. यही वजह है कि जन्माष्टमी का व्रत कभी-कभी 2 दिनों के लिए भी रखना पड़ सकता है.