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Jagannath Rath Yatra 2023 : त्रिपुष्कर और रवि योग में होगी जगन्नाथ रथ यात्रा, जानिए क्या है महत्व - गुप्त नवरात्रि

जगन्नाथ रथ यात्रा एक प्रमुख हिन्दू धार्मिक मेला है जो पश्चिम बंगाल और ओडिशा समते कई राज्यों में हर साल आयोजित की जाती है. लेकिन मुख्य रूप से ये रथ यात्रा ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर से निकलती है. चार दिनों तक यात्रा का उत्सव मनाया जाता है.

Tripushkar and Ravi Yoga Significance
जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व
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Published : Jun 17, 2023, 7:33 PM IST

त्रिपुष्कर और रवि योग में होगी जगन्नाथ रथ यात्रा

रायपुर :जगन्नाथ रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को गुप्त नवरात्रि के दिन मनाई जाती है. यह रथयात्रा तीर्थ स्थल पुरी धाम से निकाली जाती है. यह 4 तीर्थों में एक महत्वपूर्ण तीर्थ माना गया है. इस दिन 3 रथ अच्छी तरह से सजाकर श्रृंगार में करके वैदिक पूजा पाठ सनातन परंपराओं और ऐतिहासिक पौराणिक परंपराओं के अनुसार यह रथयात्रा निकाली जाती है. यह रथयात्रा अत्यंत शुभ मानी जाती है. रथयात्रा में भाग लेना, रथ को धक्का देना, खींचना और रथयात्रा के मार्ग में सफाई करना बहुत शुभ माना जाता है. इस रथयात्रा को खींचने पर अनेक सौभाग्य की प्राप्ति होती है.


भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है मान्यता : पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "ऐसी मान्यता है कि रथयात्रा के दिन भगवान कृष्ण अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ मौसी के यहां मिलने जाते हैं. इस पर्व को पूरे उत्कल और पूरे देश में उत्साह उमंग जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस शुभ दिन जनेऊ, नामकरण, जातकर्म संस्कार, विद्यारंभ संस्कार, श्रीमंत सूति स्नान, नवीन वस्त्र धारण करना नवीन प्रवाल धारण करना इसके साथ ही समस्त तरह के नए व्यापार प्रारंभ करने के लिए यह दिन बहुत पवित्र माना गया है.''

कब मनाया जाएगा उत्सव : जगन्नाथ रथ यात्रा के दिन चंद्रमा अपनी स्वयं की राशि में विद्यमान रहेंगे. कर्क राशि में चंद्रमा स्वग्रहीय माने जाते हैं. इस रथयात्रा का विशेष महत्व है. सभी शहरों के जगन्नाथ मंदिर में इस रथयात्रा को पूरी श्रद्धा भावना और आस्थापूर्वक इस यात्रा को निकाला जाता है. यह यात्रा इस वर्ष दो सावन पड़ने की वजह से इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है. इसे पुरुषोत्तम मास के रूप में जाना जाता है.

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निभाई जाएगी पुरातन परंपरा : वयोवृद्ध पंडित पुरानी मूर्ति से ब्रह्म पदार्थ को निकालकर नई मूर्ति में स्थानांतरित करते हैं. यह अपने आप में एक चमत्कारी घटना है. प्रत्येक 12 वर्षों में मूर्ति को पूरी आस्था परंपराओं के अनुसार बदला जाता है. ऐसी मान्यता है कि जगन्नाथ जी के मंदिर में भगवान कृष्ण का हृदय विराजमान है. यह ह्रदय आज भी सजीव है. आज भी जीवित है. इसलिए पूरी के इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व चारों धामों में यह मंदिर विशिष्ट माना गया है. रथयात्रा का पावन पर्व इस मंदिर के लिए सबसे बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाने वाला एक वैशिष्ट्य पर्व है.इस दिन त्रिपुष्कर और रवि योग का सुंदर प्रभाव पड़ रहा है. जिससे रथयात्रा का महत्व और भी अधिक सुंदर हो जाता है.

त्रिपुष्कर और रवि योग में होगी जगन्नाथ रथ यात्रा

रायपुर :जगन्नाथ रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को गुप्त नवरात्रि के दिन मनाई जाती है. यह रथयात्रा तीर्थ स्थल पुरी धाम से निकाली जाती है. यह 4 तीर्थों में एक महत्वपूर्ण तीर्थ माना गया है. इस दिन 3 रथ अच्छी तरह से सजाकर श्रृंगार में करके वैदिक पूजा पाठ सनातन परंपराओं और ऐतिहासिक पौराणिक परंपराओं के अनुसार यह रथयात्रा निकाली जाती है. यह रथयात्रा अत्यंत शुभ मानी जाती है. रथयात्रा में भाग लेना, रथ को धक्का देना, खींचना और रथयात्रा के मार्ग में सफाई करना बहुत शुभ माना जाता है. इस रथयात्रा को खींचने पर अनेक सौभाग्य की प्राप्ति होती है.


भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है मान्यता : पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "ऐसी मान्यता है कि रथयात्रा के दिन भगवान कृष्ण अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ मौसी के यहां मिलने जाते हैं. इस पर्व को पूरे उत्कल और पूरे देश में उत्साह उमंग जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस शुभ दिन जनेऊ, नामकरण, जातकर्म संस्कार, विद्यारंभ संस्कार, श्रीमंत सूति स्नान, नवीन वस्त्र धारण करना नवीन प्रवाल धारण करना इसके साथ ही समस्त तरह के नए व्यापार प्रारंभ करने के लिए यह दिन बहुत पवित्र माना गया है.''

कब मनाया जाएगा उत्सव : जगन्नाथ रथ यात्रा के दिन चंद्रमा अपनी स्वयं की राशि में विद्यमान रहेंगे. कर्क राशि में चंद्रमा स्वग्रहीय माने जाते हैं. इस रथयात्रा का विशेष महत्व है. सभी शहरों के जगन्नाथ मंदिर में इस रथयात्रा को पूरी श्रद्धा भावना और आस्थापूर्वक इस यात्रा को निकाला जाता है. यह यात्रा इस वर्ष दो सावन पड़ने की वजह से इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है. इसे पुरुषोत्तम मास के रूप में जाना जाता है.

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निभाई जाएगी पुरातन परंपरा : वयोवृद्ध पंडित पुरानी मूर्ति से ब्रह्म पदार्थ को निकालकर नई मूर्ति में स्थानांतरित करते हैं. यह अपने आप में एक चमत्कारी घटना है. प्रत्येक 12 वर्षों में मूर्ति को पूरी आस्था परंपराओं के अनुसार बदला जाता है. ऐसी मान्यता है कि जगन्नाथ जी के मंदिर में भगवान कृष्ण का हृदय विराजमान है. यह ह्रदय आज भी सजीव है. आज भी जीवित है. इसलिए पूरी के इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व चारों धामों में यह मंदिर विशिष्ट माना गया है. रथयात्रा का पावन पर्व इस मंदिर के लिए सबसे बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाने वाला एक वैशिष्ट्य पर्व है.इस दिन त्रिपुष्कर और रवि योग का सुंदर प्रभाव पड़ रहा है. जिससे रथयात्रा का महत्व और भी अधिक सुंदर हो जाता है.

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