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jagannath Rath Yatra 2022: इसलिए खास होती है भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा - खास होती है भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा

jagannath Rath Yatra 2022: हर साल आषाढ़ माह के दूसरे दिन भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है. इस यात्रा का काफी महत्व होता (Rath Yatra of Lord Jagannath is special) है.

jagannath Rath Yatra 2022
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा
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Published : Jun 30, 2022, 7:25 PM IST

रायपुर: देशभर में खास त्योहारों में एक जगन्नाथ रथ यात्रा एक खास पर्व है. हर साल इस मौके पर वार्षिक आयोजन किया जाता (jagannath Rath Yatra 2022) है. यह त्योहार पारंपरिक उड़िया कैलेंडर के अनुसार शुक्ल पक्ष, आषाढ़ महीने के दूसरे दिन मनाया जाता है. पुरी में रथ यात्रा निकाली जाती है. रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण), उनकी बहन देवी सुभद्रा और उनके बड़े भाई भगवान बलभद्र को समर्पित (Rath Yatra of Lord Jagannath is special) है. इसे गुंडिचा यात्रा, रथ उत्सव, दशावतार और नवदीना यात्रा के नाम से भी जाना जाता है.

होती है हर मनोकामना पूरी: ऐसा माना जाता है कि हर साल भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करने के लिए कुछ दिनों के लिए अपने जन्मस्थान मथुरा की यात्रा करना चाहते हैं. यह यात्रा हर साल जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक आयोजित की जाती है. यात्रा शुरू होने से पहले, स्नान पूर्णिमा के दिन मूर्तियों को 109 बाल्टी पानी से स्नान कराया जाता है, फिर उन्हें जुलूस के दिन तक अलग-थलग रखा जाता है.

रथयात्रा के दौरान विशाल जुलूस : रथ यात्रा के दौरान एक विशाल जुलूस निकाला जाता है, जिसमें तीन देवताओं की लकड़ी की मूर्तियों को जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है. इन मूर्तियों को आकर्षक रथों में विराजमान किया जाता है. जुलूस के दौरान चारों ओर मंत्रोच्चार और शंख की आवाज सुनी जा सकती है.

यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ में छोटे पुरी के नाम से विख्यात है दादर खुर्द, 120 साल से नहीं टूटी ये परंपरा

पूर्वमुखी बनाया जाता है: जगन्नाथ मंदिर को स्थानीय लोग श्रीमंदिर कहते हैं. इसे पूर्वमुखी इसलिए बनाया गया था ताकि इस पर उगते सूरज की पहली किरण पड़े. मंदिर परिसर दस एकड़ में फैला है और दो दीवारों से घिरा हुआ है. बाहरी दीवार को मेघनाद प्राचीर कहा जाता है. भीतरी दीवार को कुर्म भेद कहा जाता है. मुख्य गर्भगृह को बड़ा देउल कहा जाता है. लंबा घुमावदार शिखर है, जिससे जुड़ा एक स्तंभित सभा हाल है. शिखर के ऊपर आठ धातुओं से बना एक विशाल पहिया है, जिसे नीलचक्र कहा जाता है. इसके ऊपर एक विशाल ध्वज लहराता रहता है.

बड़दंडा से मुख्य प्रवेश द्वार को सिंहद्वार कहा जाता है. यह पत्थर के दो शेरों द्वारा संरक्षित है. यह वह द्वार है, जहां से देवताओं को रथ यात्रा के लिए रथों में बिठाने के लिए निकाला जाता है. सिंहद्वार के ठीक पीछे भगवान जगन्नाथ की एक छवि है, जिसे पतितपावन कहा जाता है. इस छवि के दर्शन गैर-हिंदू कर सकते हैं. जिन्हें मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है. मंदिर के दो संरक्षकों जिन्हें जया और विजया कहा जाता है, उनकी छवियां द्वार पर विराजमान हैं.

रायपुर: देशभर में खास त्योहारों में एक जगन्नाथ रथ यात्रा एक खास पर्व है. हर साल इस मौके पर वार्षिक आयोजन किया जाता (jagannath Rath Yatra 2022) है. यह त्योहार पारंपरिक उड़िया कैलेंडर के अनुसार शुक्ल पक्ष, आषाढ़ महीने के दूसरे दिन मनाया जाता है. पुरी में रथ यात्रा निकाली जाती है. रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण), उनकी बहन देवी सुभद्रा और उनके बड़े भाई भगवान बलभद्र को समर्पित (Rath Yatra of Lord Jagannath is special) है. इसे गुंडिचा यात्रा, रथ उत्सव, दशावतार और नवदीना यात्रा के नाम से भी जाना जाता है.

होती है हर मनोकामना पूरी: ऐसा माना जाता है कि हर साल भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करने के लिए कुछ दिनों के लिए अपने जन्मस्थान मथुरा की यात्रा करना चाहते हैं. यह यात्रा हर साल जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक आयोजित की जाती है. यात्रा शुरू होने से पहले, स्नान पूर्णिमा के दिन मूर्तियों को 109 बाल्टी पानी से स्नान कराया जाता है, फिर उन्हें जुलूस के दिन तक अलग-थलग रखा जाता है.

रथयात्रा के दौरान विशाल जुलूस : रथ यात्रा के दौरान एक विशाल जुलूस निकाला जाता है, जिसमें तीन देवताओं की लकड़ी की मूर्तियों को जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है. इन मूर्तियों को आकर्षक रथों में विराजमान किया जाता है. जुलूस के दौरान चारों ओर मंत्रोच्चार और शंख की आवाज सुनी जा सकती है.

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पूर्वमुखी बनाया जाता है: जगन्नाथ मंदिर को स्थानीय लोग श्रीमंदिर कहते हैं. इसे पूर्वमुखी इसलिए बनाया गया था ताकि इस पर उगते सूरज की पहली किरण पड़े. मंदिर परिसर दस एकड़ में फैला है और दो दीवारों से घिरा हुआ है. बाहरी दीवार को मेघनाद प्राचीर कहा जाता है. भीतरी दीवार को कुर्म भेद कहा जाता है. मुख्य गर्भगृह को बड़ा देउल कहा जाता है. लंबा घुमावदार शिखर है, जिससे जुड़ा एक स्तंभित सभा हाल है. शिखर के ऊपर आठ धातुओं से बना एक विशाल पहिया है, जिसे नीलचक्र कहा जाता है. इसके ऊपर एक विशाल ध्वज लहराता रहता है.

बड़दंडा से मुख्य प्रवेश द्वार को सिंहद्वार कहा जाता है. यह पत्थर के दो शेरों द्वारा संरक्षित है. यह वह द्वार है, जहां से देवताओं को रथ यात्रा के लिए रथों में बिठाने के लिए निकाला जाता है. सिंहद्वार के ठीक पीछे भगवान जगन्नाथ की एक छवि है, जिसे पतितपावन कहा जाता है. इस छवि के दर्शन गैर-हिंदू कर सकते हैं. जिन्हें मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है. मंदिर के दो संरक्षकों जिन्हें जया और विजया कहा जाता है, उनकी छवियां द्वार पर विराजमान हैं.

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