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Chhattisgarh Assembly Election: छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में डीलिस्टिंग का मुद्दा भी रहेगा हावी

आदिवासियों की वजह से छत्तीसगढ़ को देश दुनिया में जाना पहचाना जाता है. पिछले कई सालों से आदिवासी इलाकों में लगातार धर्मांतरण हो रहा है. इसकी वजह से बस्तर से लेकर सरगुजा तक बवाल मचा हुआ है. खुद आदिवासियों के बीच संघर्ष हो रहा है. छत्तीसगढ़ में इस साल चुनाव भी है. लिहाजा धर्मांतरण बड़ा सियासी मुद्दा बन गया है. अब इसमें डीलिस्टिंग भी जुड़ गया है. धर्मांतरण और डीलिस्टिंग के बवाल का पूरा सच समझिए.

issue of delisting will also dominate
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में डीलिस्टिंग का मुद्दा
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Published : Jun 13, 2023, 5:39 PM IST

Updated : Jun 13, 2023, 11:01 PM IST

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में डीलिस्टिंग

रायपुर: नक्सल समस्या से जूझ रहे बस्तर में धर्मांतरण की आग भी सुलग रही है. कई आदिवासी धर्म बदलकर ईसाई बन गए हैं. अब हालत ये है कि धर्मांतरण के खेल की वजह से आदिवासी एक दूसरे के दुश्मन बन गए हैं. अब धर्म बदल चुके आदिवासियों को आरक्षण के फायदे से अलग करने की मांग भी उठ रही है. इस प्रक्रिया को ही डी लिस्टिंग कहा जाता है, जिसकी मांग जनजातीय सुरक्षा मंच भी कर रहा है.

डीलिस्टिंग को लेकर बवाल क्यों: छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को इस बात की टेंशन है कि धर्म बदलकर उनके आसपास रह रहे आदिवासी माहौल खराब कर रहे हैं. वह धर्म बदलकर भी आरक्षण का लाभ ले रहे हैं. आदिवासियों की संस्कृति और परंपरा का मजाक उड़ा रहे हैं. जनजातीय सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत का कहना है कि ''धर्म परिवर्तन करने वाले अब आदिवासी नहीं हैं. उन्होंने अपने पुरखों की परंपरा को छोड़ दिया है. डीलिस्टिंग की मांग एक संवैधानिक अधिकार है. एक व्यवस्था है. यह मांग देश हित में है. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के तहत ही हम मांग कर रहे हैं.''

Chhattisgarh Assembly Election
जनजातीय सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत

ईसाई आदिवासी महासभा का ये है कहना: धर्मांतरण की वजह से अब आदिवासियों में भी संघर्ष हो रहा है. ईसाई आदिवासी महासभा प्रदेश अध्यक्ष अनिल किस्पोट्टा का कहना है कि ''आदिवासियों ने ईसाई धर्म अपनाया है लेकिन सभी अपनी आदिवासी परंपरा मानते हैं. हम भी आदिवासी हैं. भारत के संविधान में सभी को अधिकार मिला है कि वह किसी भी धर्म को मानने के लिए स्वतंत्र है. जनजातीय सुरक्षा मंच दोहरे आरक्षण लाभ की बात करता है, लेकिन आज तक कोई डाटा पेश नहीं किया.''

Chhattisgarh Assembly Election
ईसाई आदिवासी महासभा प्रदेश अध्यक्ष अनिल किस्पोट्टा

आरक्षण पर रार क्यों: दरअसल आदिवासी एक जीवन शैली और एक अलग संस्कृति है. उन्हें अनुसूचित जनजाति वर्ग में रखा गया है. धर्मांतरण से जनजातीय संस्कृति प्रभावित हुई है. वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा कहते हैं, ''सुप्रीम कोर्ट का भी निर्देश है कि जनजातीय कोई जाति नहीं है, यह एक संस्कृति है. अगर आप उसी को मानना बंद कर देंगे तो आप ट्राइबल नहीं रहेंगे. जब आप ट्राइबल नहीं हैं तो फिर आरक्षण का लाभ क्यों मिलना चाहिए?''

Chhattisgarh Assembly Election
वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा

क्यों उठती है डीलिस्टिंग की मांग: आरक्षण का मुख्य लाभ धर्मांतरण करने वाली एजेंसिया उठा रही हैं. उन्हें पता है कि धर्मांतरण करते रहेंगे और लाभ मिलता रहेगा. एजेंसियों पर अंकुश लगाने की जरूरत है, इसलिए डीलिस्टिंग की मांग भी समय समय पर उठती है.

डीलिस्टिंग को लेकर मतभेद: डीलिस्टिंग की मांग अब सिर्फ सियासी मुद्दा नहीं है, बल्कि जनजाति समाज के अंदर भी विरोध हो रहा है. जनजाति समाज का कहना है कि उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है. आरक्षण का फायदा उन्हें मिल रहा है, जो अच्छे स्कूलों में हैं और जो धर्म बदलकर पढ़ाई कर रहे हैं. डीलिस्टिंग के विरोध में ईसाई आदिवासी समाज खड़े हो रहा है. यह मामला और तूल पकड़ेगा. जनजातीय समाज दबाव बनाएगा तो केंद्र सरकार नियम और कानून में संशोधन कर सकती है.

Chhattisgarh Assembly Election
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में डीलिस्टिंग का मुद्दा
जशपुर के आदिवासी क्यों कर रहे डीलिस्टिंग की मांग, जानिए क्या है डीलिस्टिंग ?
Delisting: डीलिस्टिंग की मांग को लेकर आदिवासी युवाओं ने कही ये बात
धर्म परिवर्तन करने वालों का आरक्षण समाप्त करने की मांग को लेकर रैली

क्या डीलिस्टिंग का मुद्दा चुनावी रंग दिखाएगा: वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा के मुताबिक धर्मांतरण के लालच में सुविधाएं मिलती हैं तो धर्मांतरण की गति तेज होती है. इसी बात का आज जनजाति समाज में संघर्ष है. सरगुजा और बस्तर में यह संघर्ष जारी है. धर्मांतरण और डीलिस्टिंग दोनों जुड़ा हुआ मामला है. आने वाले समय में यह दोनों ही मुद्दे तूल पकड़ेंगे और चुनावी रंग दिखाएंगे.

Chhattisgarh Assembly Election
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में डीलिस्टिंग

छत्तीसगढ़ में कितना अहम है अनुसूचित जनजाति वर्ग: छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीटें हैं. इनमें 4 सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग और 1 सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं. छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा क्षेत्र हैं. इनमें 29 सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग और 10 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. बात की जाए ईसाई समाज की तो अंबिकापुर संभाग की 4 विधानसभा सीटों पर शत प्रतिशत ईसाई वोट बैंक का असर देखने को मिलता है. इसके अलावा बस्तर की 12 विधानसभा क्षेत्र में भी ईसाई समाज निर्णायक भूमिका में हैं.

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में डीलिस्टिंग

रायपुर: नक्सल समस्या से जूझ रहे बस्तर में धर्मांतरण की आग भी सुलग रही है. कई आदिवासी धर्म बदलकर ईसाई बन गए हैं. अब हालत ये है कि धर्मांतरण के खेल की वजह से आदिवासी एक दूसरे के दुश्मन बन गए हैं. अब धर्म बदल चुके आदिवासियों को आरक्षण के फायदे से अलग करने की मांग भी उठ रही है. इस प्रक्रिया को ही डी लिस्टिंग कहा जाता है, जिसकी मांग जनजातीय सुरक्षा मंच भी कर रहा है.

डीलिस्टिंग को लेकर बवाल क्यों: छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को इस बात की टेंशन है कि धर्म बदलकर उनके आसपास रह रहे आदिवासी माहौल खराब कर रहे हैं. वह धर्म बदलकर भी आरक्षण का लाभ ले रहे हैं. आदिवासियों की संस्कृति और परंपरा का मजाक उड़ा रहे हैं. जनजातीय सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत का कहना है कि ''धर्म परिवर्तन करने वाले अब आदिवासी नहीं हैं. उन्होंने अपने पुरखों की परंपरा को छोड़ दिया है. डीलिस्टिंग की मांग एक संवैधानिक अधिकार है. एक व्यवस्था है. यह मांग देश हित में है. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के तहत ही हम मांग कर रहे हैं.''

Chhattisgarh Assembly Election
जनजातीय सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत

ईसाई आदिवासी महासभा का ये है कहना: धर्मांतरण की वजह से अब आदिवासियों में भी संघर्ष हो रहा है. ईसाई आदिवासी महासभा प्रदेश अध्यक्ष अनिल किस्पोट्टा का कहना है कि ''आदिवासियों ने ईसाई धर्म अपनाया है लेकिन सभी अपनी आदिवासी परंपरा मानते हैं. हम भी आदिवासी हैं. भारत के संविधान में सभी को अधिकार मिला है कि वह किसी भी धर्म को मानने के लिए स्वतंत्र है. जनजातीय सुरक्षा मंच दोहरे आरक्षण लाभ की बात करता है, लेकिन आज तक कोई डाटा पेश नहीं किया.''

Chhattisgarh Assembly Election
ईसाई आदिवासी महासभा प्रदेश अध्यक्ष अनिल किस्पोट्टा

आरक्षण पर रार क्यों: दरअसल आदिवासी एक जीवन शैली और एक अलग संस्कृति है. उन्हें अनुसूचित जनजाति वर्ग में रखा गया है. धर्मांतरण से जनजातीय संस्कृति प्रभावित हुई है. वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा कहते हैं, ''सुप्रीम कोर्ट का भी निर्देश है कि जनजातीय कोई जाति नहीं है, यह एक संस्कृति है. अगर आप उसी को मानना बंद कर देंगे तो आप ट्राइबल नहीं रहेंगे. जब आप ट्राइबल नहीं हैं तो फिर आरक्षण का लाभ क्यों मिलना चाहिए?''

Chhattisgarh Assembly Election
वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा

क्यों उठती है डीलिस्टिंग की मांग: आरक्षण का मुख्य लाभ धर्मांतरण करने वाली एजेंसिया उठा रही हैं. उन्हें पता है कि धर्मांतरण करते रहेंगे और लाभ मिलता रहेगा. एजेंसियों पर अंकुश लगाने की जरूरत है, इसलिए डीलिस्टिंग की मांग भी समय समय पर उठती है.

डीलिस्टिंग को लेकर मतभेद: डीलिस्टिंग की मांग अब सिर्फ सियासी मुद्दा नहीं है, बल्कि जनजाति समाज के अंदर भी विरोध हो रहा है. जनजाति समाज का कहना है कि उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है. आरक्षण का फायदा उन्हें मिल रहा है, जो अच्छे स्कूलों में हैं और जो धर्म बदलकर पढ़ाई कर रहे हैं. डीलिस्टिंग के विरोध में ईसाई आदिवासी समाज खड़े हो रहा है. यह मामला और तूल पकड़ेगा. जनजातीय समाज दबाव बनाएगा तो केंद्र सरकार नियम और कानून में संशोधन कर सकती है.

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जशपुर के आदिवासी क्यों कर रहे डीलिस्टिंग की मांग, जानिए क्या है डीलिस्टिंग ?
Delisting: डीलिस्टिंग की मांग को लेकर आदिवासी युवाओं ने कही ये बात
धर्म परिवर्तन करने वालों का आरक्षण समाप्त करने की मांग को लेकर रैली

क्या डीलिस्टिंग का मुद्दा चुनावी रंग दिखाएगा: वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा के मुताबिक धर्मांतरण के लालच में सुविधाएं मिलती हैं तो धर्मांतरण की गति तेज होती है. इसी बात का आज जनजाति समाज में संघर्ष है. सरगुजा और बस्तर में यह संघर्ष जारी है. धर्मांतरण और डीलिस्टिंग दोनों जुड़ा हुआ मामला है. आने वाले समय में यह दोनों ही मुद्दे तूल पकड़ेंगे और चुनावी रंग दिखाएंगे.

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छत्तीसगढ़ में कितना अहम है अनुसूचित जनजाति वर्ग: छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीटें हैं. इनमें 4 सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग और 1 सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं. छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा क्षेत्र हैं. इनमें 29 सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग और 10 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. बात की जाए ईसाई समाज की तो अंबिकापुर संभाग की 4 विधानसभा सीटों पर शत प्रतिशत ईसाई वोट बैंक का असर देखने को मिलता है. इसके अलावा बस्तर की 12 विधानसभा क्षेत्र में भी ईसाई समाज निर्णायक भूमिका में हैं.

Last Updated : Jun 13, 2023, 11:01 PM IST
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