रायपुर: 11 अक्टूबर को पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जा रहा है. आज पूरा विश्व आठवां अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस मना रहा है. अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस को पहली बार 2012 में मनाया गया था. अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का मुख्य उद्देश्य बालिकाओं के अधिकारों का संरक्षण करना और उनके सामने आने वाली कठिन चुनौतियों की पहचान कराना है. इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य ये भी है कि समाज में जागरूकता लाकर लड़कियों को वह सम्मान अधिकार दिलाया जा सके, जो कि लड़कों को दिए गए हैं.
क्या बालिकाओं को मिल पा रहा हैं सम्मान?
आज के दौर में महिलाएं कदम से कदम मिलाकर पुरुषों के साथ चल रही है. यह भी कहा जा सकता है कि पुरुषों से ज्यादा आज महिलाएं अपना धर्म निभा रही है. घर-परिवार के साथ-साथ आज वह अपने कामों को भी उतना ही महत्व दे रही है. आज के दौर में बालिकाएं पढ़ लिखकर ऑफिसर बनने की चाह रखती है. बावजूद इसके आज भी हमारे भारत में ऐसे कई घटनाएं होती है जो कि इंसानियत को झकझोर कर रख देती है, और पुरुषों पर एक सवालिया निशान खड़ा कर देती है कि क्या आज इतने सालों बाद भी बालिकाओं को सम्मान मिल पा रहा है जिसकी वह हकदार हैं.
'असुरक्षा ही महसूस होती है'
अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस पर कुछ महिलाओं ने बताया कि वे भी किसी की बेटी है, और उनकी भी बेटियां हैं. उनका कहना है कि आज के दौर में हर बेटी कदम से कदम मिलाकर ऊंचाइयों को छू रही है, बावजूद आज का जो दौर है उसमें उन्हें असुरक्षा ही महसूस होती है. रोजाना महिलाओं के साथ हो रहे गलत व्यवहारों को देख कर वो ये सोचने पर मजबूर हो जाती हैं कि क्या आज भी समाज में महिलाओं का उतना ही सम्मान किया जाता है. जितना पुरुषों का हो रहा हैं.
ट्रैफिक महिला कांस्टेबल पुष्पा सोनी ने बताया कि मैं एक बेटी हूं, एक बहू हूं, इस वजह से हमेशा सभी का ख्याल रखते हुए ही चलना पड़ता है. हम घर परिवार के साथ-साथ अपने काम को भी उतना ही महत्व देते हैं. आज भी महिलाओं के घर से निकलने से पहले यह बताना पड़ता है कि वह रात को कितने बजे वापस घर आएगी. अगर घर आते वक्त अंधेरा हो गया, तो उनसे सवाल भी पूछे जाते हैं कि इतना लेट कैसे हो गया.