रायपुर: छत्तीसगढ़ की अपनी बहुरंगी लोककला और संस्कृति के लिए देश-दुनिया में खास पहचान है. यहां कई तरह के लोक नृत्य अलग-अलग मौकों पर पेश करने की परंपरा रही है. इनमें से कई नृत्यों की धाक दुनियाभर के कलाप्रेमियों के बीच है. आदिवासी बाहुल्य इस प्रदेश की गोद में नृत्य की जितनी विधा देखने को मिलती है, उतनी देश के शायद ही किसी अन्य प्रदेश में नजर आती है. आइए इंटरनेशनल डांस डे (International Dance Day 2021) के मौके पर छत्तीसगढ़ के प्रमुख डांस फॉर्म्स (नृत्य शैली) के बारे में जिक्र करते हैं.
कर्मा नृत्य
ये नई फसल आने के पहले खुशी व्यक्त करने का एक बड़ा माध्यम रहा है. आदिवासी समाज आदिकाल से मांदर और मृदंग की थाप पर कर्मा नृत्य करता रहा है. ये एक तरह का समूह नृत्य है. इसे एक साथ 10 से 12 लोग मिलकर बेहद ही आकर्षक अंदाज में पेश करते हैं. खास बात ये भी है कि कर्मा नृत्य सुदूर जंगल में बसे आदिवासी गांवों से लेकर मैदानी इलाकों तक में किया जाता है.
सुआ नृत्य
स्त्री मन की भावना, उनके सुख-दुख की अभिव्यक्ति है सुआ नृत्य. ये महिलाओं द्वारा समूह में दीपावली के आसपास किया जाने वाला बेहद लोकप्रिय नाच है. गोला बनाकर महिलाएं ताली बजाते और गाते हुए इसे पेश करती हैं.
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पंथी नृत्य
गुरु घासीदास बाबा के जयंती के मौके पर किया जाने वाला पंथी नृत्य बेहद पॉवरफुल और शारीरिक संतुलन स्थापित करने वाला नृत्य होता है. ये भी एक तरह से समूह नृत्य है. सतनामी समाज के लोग गुरू घासीदास बाबा के प्रति भक्ति को इस नृत्य के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं. परंपरागत रूप से देखा जाए, तो मांदर और झांझ का इस्तेमाल पंथी के साथ किया जाता है.
राउत नाचा
दीपावली के आसपास की जाने वाली यह भी एक आकर्षक नृत्य शैली है. यादव समाज के लोग बेहद चटकीली वेशभूषा धारण कर हाथ में लाठी लेकर इस नृत्य को करते हैं. इस दौरान दोहों का इस्तेमाल किया जाता है. बिलासपुर में बड़ा राउत नृत्य मेला हर साल आयोजित किया जाता है.
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गेड़ी नृत्य
बस्तर में मारिया आदिवासी समाज द्वारा की जाने वाली ये भी प्रमुख नृत्य शैली है. बांद के दो बल्ली पर चढ़कर मांदर की थाप पर झूमना वाकई एक अद्भुत कला है. संतुलन और सामंजस्य का अनोखा मिलन है गेड़ी नृत्य.
सरहुल नृत्य
मुख्य रूप से सरगुजा अंचल में आयोजित होने वाला ये नृत्य एक तरह से प्रकृति की पूजा का एक माध्यम है. चैत्र माह की पूर्णिमा को इसे एक पर्व की तरह मनाया जाता है. इनके अलावा डंडा नाच, ककसार, डमकच, गौर-माड़िया नृत्य, मुरिया नृत्य भी आदिवासी समाज की प्रमुख नृत्य शैली है, जिन्हें विशेष मौकों पर अलग-अलग समाज प्रकृति या अपनी देवी-देवताओं को खुश करने के लिए सैकड़ों सालों से करते आ रहे हैं.
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1982 में पहली बार मनाया गया था विश्व नृत्य दिवस
1982 में पहली बार इंटरनेशनल डांस डे मनाया गया था. इसका मुख्य उद्देश्य नृत्य के माध्यम से अपनी भावनाओं को प्रकट करना और लोगों का ध्यान नृत्य की ओर आकर्षित करना है. इसे महान नर्तक जीन जार्ज नावेरे के जन्मदिन पर उनकी याद में मनाया जाता है.
भारत में त्रेता युग में हुई नृत्य कला की उत्पत्ति
ऐसा माना जाता है कि भारत में त्रेता युग में इसकी उत्पत्ति हुई, जब देवताओं के आग्रह पर पहली बार ब्रह्मा ने भी नृत्यकला का प्रदर्शन किया. उन्होंने मानव जाति को नृत्य वेद की सौगात भी दी. भारत के अलग-अलग राज्यों की अपनी विशिष्ट नृत्य शैली है. इसके अलावा यहां हर जगह पर लोक नृत्य भी हैं. हर डांस फॉर्म की अपनी अलग शैली, विशेषता और लालित्य होता है. कहीं के लोक नृत्य या डांस वहां की सभ्यता और परंपरा को भी दिखाते हैं.