रायपुर: लोहे को लोहा ही काटता है. यह फॉर्मूला कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने में भी अपनाया गया है. कोरोना वायरस से मुकाबला करने के लिए उसी वायरस का सहारा लिया गया, जो संक्रमित कर रहा है. जिंदा वायरस को निष्क्रिय कर वैक्सीन को तैयार किया गया है. यह शरीर में पहुंचकर एंटीबॉडीज विकसित करता है.
1. सबसे पहले वायरस के जेनेटिक कोड से पता लगाया जाता है कि कोशिकाओं से क्या विकसित होगा. इसके बाद उसे लिपिड में कोट किया जाता है, जिससे वो शरीर की कोशिकाओं में आसानी से प्रवेश कर सके.
2. वैक्सीन कोशिकाओं में एंट्री करती है और उन्हें कोरोना वायरस स्पाइक प्रोटीन पैदा करने के लिए प्रेरित करती है.
3. यह रोग प्रतिरोधी प्रणाली को एंटीबॉडी पैदा करने और टी-सेल को एक्टिव करने के संकेत देती है, जिससे संक्रमित कोशिकाओं को खत्म किया जा सके.
4. इस तरह मरीज कोरोना वायरस से लड़ता है. एंटी बॉडी और टी-सेल संक्रमण को खत्म करती है.
इस तरह वैक्सीन को मरीज के शरीर में प्रवेश करवाकर उसे कोरोना वायरस से संक्रमण से लडने के लिए तैयार किया जाएगा.
किसने किया था टीके का अविष्कार?
इससे पहले भी भारत और कई देशों में वैक्सीन या टीकाकरण को संक्रामक बीमारियों के लिए कारगर माना गया है. प्लेग, हैजा, चेचक जैसी बीमारियों के लिए टीके का ही अविष्कार किया गया था. चेचक, पोलियो और टिटनेस जैसे रोगों से निजात टीकाकरण से ही मिली थी. चेचक दुनिया की पहली बीमारी थी, जिसके टीके की खोज हुई. 1976 में अंग्रेज चिकित्सक एडवर्ड जेनर ने चेचक के टीके का आविष्कार किया था. किसी भी संक्रामक बीमारी की रोकथाम के लिए टीकाकरण बहुत ही प्रभावी और कारगर उपाय है.
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रेबीज भी एक ऐसी बीमारी है, जिसका संक्रमण जानलेवा होता है. प्रसिद्ध फ्रेंच वैज्ञानिक लुई पाश्चर ने रेबीज के टीके का सफल परीक्षण किया था. उनकी इस खोज ने मेडिकल की दुनिया में क्रांति ला दी और मानवता को एक बड़े संकट से बचा लिया था. उन्होंने डिप्थेरिया, टिटनेस, एंथ्रेक्स, हैजा, प्लेग, टाइफाइड, टीबी समेत कई बीमारियों के लिए टीके विकसित किए थे.
वैक्सीन कई प्रकार की होती हैं. उसे बनाने की प्रक्रिया से निर्धारित होता है कि उसका प्रकार क्या होगा. उसके प्रकार से निर्धारित होता है कि वह कार्य कैसे करेगी.
लाइव वायरस वैक्सीन
यह वैक्सीन कमजोर वायरस का इस्तेमाल करती है. खसरा, कण्ठमाला और रूबेला के टीके इसके उदाहरण हैं. कम से कम सात जगहों पर इस प्रक्रिया से वैक्सीन बनाई जा रही है. हालांकि इनकी गहनता से जांच की जानी है.
लाइव वैक्सीन के विकास के लिए न्यूयॉर्क स्थित दवा कंपनी कोडजेनिक्स ने पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के साथ साझेदारी की है.
निष्क्रिय वैक्सीन
यह वैक्सीन निष्क्रिय वायरस से बनाई जाती है. वायरस को लैब में उगाया जाता है. इस दौरान वह बीमार करने की क्षमता खो देता है.
बीजिंग के सिनोवैक बायोटेक को निष्क्रिय कोरोना वायरस वैक्सीन के मानव परीक्षणों को शुरू करने के लिए नियामक स्वीकृति मिल गई है.
आनुवांशिक रूप से इंजीनियर की गई वैक्सीन
आनुवंशिक रूप से इंजीनियर की गई वैक्सीन इंजीनियर किए हुए आरएनए या डीएनए का इस्तेमाल करती है. इनमें प्रोटीन की प्रतियां बनाने की जानकारी होती है. इस तरह की एक भी वैक्सीन को मानव उपयोग के लिए लाइसेंस नहीं दिया गया है.
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वेक्टर आधारित वैक्सीन
25 दलों ने दावा किया है कि वह वेक्टर्ड वैक्सीन का प्रीक्लिनिकल मूल्यांकन करने में सफल रहे हैं. इस वैक्सीन में रासायनिक प्रक्रिया से कमजोर किए गए वायरस का उपयोग किया जाता है.
एस-प्रोटीन आधारित वैक्सीन
32 समूह ऐसे हैं जो एस-प्रोटीन पर आधारित कोरोना वायरस वैक्सीन पर ट्रायल कर रहे हैं. कोरोना वायरस के संरचनात्मक प्रोटीन में एस प्रोटीन प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के लिए जिम्मेदार मुख्य घटक है. इसलिए वैज्ञानिकों का मानना है कि वैक्सीन विकसित करने में इसका अहम योगदान है.
वीएलपी
पांच ऐसे समूह हैं जो वैक्सीन बनाने के लिए वायरस जैसे कणों पर काम कर रहे हैं. यह मल्टी प्रोटीन की संरचना होती है जो वायरस की नकल करता है, लेकिन इसमें वायरल जीनोम नहीं होता है.
टॉक्साइड वैक्सीन
इस वैक्सीन को पैथोजेन के कुछ विषाक्त पदार्थों को निष्क्रिय करके बनाया जाता है. इस प्रक्रिया में फॉर्मल्डिहाइड और पानी का भी इस्तेमाल किया जाता है. इन निष्क्रिय विषाक्त पदार्थों को शरीर में डाला जाता है. करीब आठ टॉक्साइड वैक्सीनों का क्लिनिकल ट्रायल किया जाना है.