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holika dahan 2023 जानिए कौन था हिरण्यकश्यप, जिसका वध करने भगवान विष्णु ने लिया नरसिंह अवतार

आज होलिका दहन है. प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठी होलिका के जलने के रूप में होली के एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है. होलिका प्रहलाद की बुआ थी और हिरण्यकश्यप की बहन थी. हिरण्यकश्यप के बारे में कहा जाता है कि हिरण्यकरण नामक वन का राजा था. हिरण्याक्ष उसका छोटा भाई था. जिसका वध वराह रूपी भगवान विष्णु ने किया था. हिरण्यकश्यप के 4 पुत्र थे. जिसमें पहला प्रहलाद, दूसरा अनुहलाद, तीसरा सहलाद और चौथा हल्लाद थे. उनकी पत्नी का नाम कयाधु था. हिरण्यकश्यप के भाई का नाम बजरांग, अरुण और हयग्रीव थे. हयग्रीव का वध मत्स्य रूपी भगवान विष्णु ने और अरुण का वध भ्रामरी रूपी माता पार्वती ने किया था.holika dahan story

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होलिका दहन
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Published : Mar 7, 2023, 9:27 AM IST

होलिका दहन पर जाने हिरण्यकश्यप की कथा

रायपुर: ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित प्रिया शरण त्रिपाठी ने बताया कि "महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र हुए. जिसमें पहला हिरण्यकश्यप और दूसरा हिरण्याक्ष. दिति के बड़े पुत्र हिरण्यकश्यप ने कठिन तपस्या करके ब्रह्मा को प्रसन्न करके यह वरदान प्राप्त कर लिया था कि वह ना किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सकेगा ना पशु के द्वारा मारा जा सकेगा, ना दिन में मारा जा सकेगा और ना ही रात में मारा जा सकेगा. ना घर के अंदर ना घर के बाहर और ना ही किसी अस्त्र-शस्त्र के प्रहार से मरेगा. ब्रह्मा जी द्वारा दिए गए वरदान के कारण हिरण्यकश्यप अंहकारी बन गया और वह अपने आप को अमर समझने लगा. उसने इंद्र का राज्य छीन लिया और तीनों लोक को प्रताड़ित करने लगा. वह चाहता था कि सब लोग उसे ही भगवान माने और उसकी पूजा करें. उसने अपने राज्य में विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया था."

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हिरण्यकश्यप का सबसे बड़ा बेटा था प्रहलाद: पंडित प्रिया शरण त्रिपाठी ने बताया कि "हिरण्यकश्यप का सबसे बड़ा पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का उपासक था. इसलिए उसके पिता हिरण्यकश्यप उसे यातना देने के साथ ही प्रताड़ित करते थे. बावजूद इसके प्रह्लाद ने भगवान विष्णु की पूजा करना नहीं छोड़ा. क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रहलाद को लेकर प्रज्वलित अग्नि में चली जाए. क्योंकि होलिका को यह वरदान था कि वह अग्नि में भी नहीं जलेगी. जब होलिका ने प्रहलाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया तो प्रहलाद इस अग्नि में बच गया और होलिका जलकर राख हो गई. अंतिम प्रयास में हिरण्यकश्यप ने लोहे के खंभे को गर्म कर लाल कर दिया और प्रहलाद को उसे गले लगाने के लिए कहा गया. जिसके बाद प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु खंभे से नरसिंह रूप में प्रगट हुए और हिरण्यकश्यप का वध कर दिया."

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भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार ने किया हिरण्यकश्यप का वध: "हिरण्यकश्यप के महल के प्रवेश द्वार की चौखट पर जो ना घर का बाहर था, ना भीतर. ना दिन था ना रात था. आधा पशु जो ना नर था ना पशु. भगवान विष्णु ने नरसिंह के रूप में अपने लंबे तेज नाखूनों से जो ना अस्त्र थे और ना शस्त्र, उसका पेट चीरकर हिरण्यकश्यप को मार डाला. हिरण्यकश्यप अनेक वरदानों के बावजूद अपने दुष्कर्मों के कारण भयानक अंत को प्राप्त हुआ."

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रायपुर: ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित प्रिया शरण त्रिपाठी ने बताया कि "महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र हुए. जिसमें पहला हिरण्यकश्यप और दूसरा हिरण्याक्ष. दिति के बड़े पुत्र हिरण्यकश्यप ने कठिन तपस्या करके ब्रह्मा को प्रसन्न करके यह वरदान प्राप्त कर लिया था कि वह ना किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सकेगा ना पशु के द्वारा मारा जा सकेगा, ना दिन में मारा जा सकेगा और ना ही रात में मारा जा सकेगा. ना घर के अंदर ना घर के बाहर और ना ही किसी अस्त्र-शस्त्र के प्रहार से मरेगा. ब्रह्मा जी द्वारा दिए गए वरदान के कारण हिरण्यकश्यप अंहकारी बन गया और वह अपने आप को अमर समझने लगा. उसने इंद्र का राज्य छीन लिया और तीनों लोक को प्रताड़ित करने लगा. वह चाहता था कि सब लोग उसे ही भगवान माने और उसकी पूजा करें. उसने अपने राज्य में विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया था."

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