रायपुर: आज छत्तीसगढ़ के लिए वो काला दिन है, जिसने आज से 6 साल पहले झीरम घाटी को खून के रंग से लाल कर दिया था. भले ही 6 साल बीत गए, लेकिन इससे जुड़े कई सवाल आज भी लोगों के जेहन में है, जिनसे उबर पाना राजनीतिक पार्टियों के अलावा आम लोगों के लिए भी बहुत मुश्किल है.
25 मई 2013, ये वो दिन था जब कांग्रेस के दिग्गज नेता परिवर्तन यात्रा के लिए दरभा घाटी पहुंचे थे. इसमें तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, सलवा जुडूम के नेता महेंद्र कर्मा, उदय मुलियार, वरिष्ठ दिग्गज कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्ल समेत कई जवान शहीद हो गए. वे निकले थे बदलाव लाने, लेकिन घर लौटी तो सिर्फ उनकी लाशें. ऐसी दर्दनाक घटना, जिसे सुनकर हर किसी की रूह कांप उठी.
एक नजर में झीरम घाटी कांड
- कांग्रेस के बड़े नेता अपनी परिवर्तन यात्रा खत्म कर 4 बजे झीरम घाटी पहुंचे, जहां उन्हें गोलियों की आवाज सुनाई दी, लेकिन जब तक वे कुछ समझते नक्सलियों ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया था.
- अगले मोड़ पर गोलियां महेंद्र कर्मा के वाहन में लगी, जिसके बाद वे गनमैन के साथ नीचे लेट गए.
- लगातार फायरिंग के बाद महेंद्र कर्मा ने आत्मसमर्पण की बात कही. इसके बाद नक्सलियों ने महेंद्र कर्मा को बंदी बना कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया।
- फिर एक-एक कर कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को नक्सलियों ने मौत के घाट उतार दिया. इस हमले में सौ से अधिक महिला नक्सली भी शामिल थीं.
- नक्सली अपनी जीत का जश्न मना रहे थे तो पूरे देश में मातम छाया था.
- इस हमले में कुल 31 लोगों ने जान गंवाई थी
सरकार उठाए कोई बड़ा कदम-
- चीख उठी वो घाटी, जिसने ली कई लोगों की आहुति
- मौत का था वो मंजर, झीरम घाटी बन गई ती खून का समंदर
- परिवर्तन की वो धारा, जिसने नक्सलियों ने नकारा
- मौत सामने थी और उस वक्त नहीं था कोई सहारा
सीमा पार बढ़ते आतंकवाद के खिलाफ जिस तरह सर्जिकल स्ट्राइक जैसा बड़ा कदम उठाया गया था, हमारी सरकार को भी इसी तरह एक बड़ी और कड़ी रणनीति बनानी चाहिए, जिससे 'घर' के अंदर के 'दुश्मनों' का जल्द से जल्द अंत किया जा सके.