रायपुरः आज विश्व धरोहर दिवस है. धरोहर एक ऐसा शब्द है जो वर्तमान को इतिहास के साथ पहचना कराता है, किसी देश या प्रदेश की इतिहास कितना वैभवशाली था यह वहां के धरोहर से पता चलता है. छत्तीसगढ़ में कई प्राकृतिक, सांस्कृतिक और पुरातात्विक धरोहर है जो देश-विदेश के सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं.
छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति, त्योहार, ऐतिहासिक इमारतें इसका बेजोड़ नमूना है. वर्ल्ड हेरिटेज डे पर आज हम छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के धरोहरों के बारे में बताएंगे जो सालों से प्रदेश की गरिमा बढ़ा रहे हैं.
छत्तीसगढ़ को धरोहरों का गढ़ भी कहा जा सकता है. प्रदेश के उत्तर से लेकर दक्षिण तक सैकड़ों धरोहर जो कई साल से यहां कि ऐतिहासिक गरिमा से पहचान करा रहे हैं. यहां रामायण, महाभारत, बौद्ध काल और कलचुरी काल के ऐतिहासिक धरोहर मौजूद है, जो आज सैलानियों के केंद्र बना हुआ है.
राजधानी की प्राचीन धरोहरें
राजधानी रायपुर ही खुद में ही कई धरोहरों को अपने में समेटा हुआ है. महामाया मंदिर, महादेव घाट स्थित हाटकेश्वर मंदिर,विरंची नारायण मंदिर पुरानी बस्ती में मौजूद कई मठ और मंदिर है राजधानी के सुनहरे इतिहास के गवाह हैं.इनको देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्राचीन काल में यहां कि संस्कृति कितनी समृद्ध रही होगी, रायपुर शहर में कई पुराने तालाब मौजूद है इन तालाबों को देखकर भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि पानी को संरक्षित करने के लिए हमारे पूर्वज किस तरह सजग थे, लेकिन दुर्भाग्य से आज ज्यादातर तालाब बदहाली मार झेल रहे हैं.
ब्रिटिश कालिन धरोहर
इतिहासकार रमेंद्रनाथ मिश्र बताते हैं कि, रायपुर में प्राचीन काल के अलावा आधुनिक काल के भी कई स्मारक और भवन हैं, जिन्हें हम धरोहर कह सकते हैं इनमें शहर का टाउन हॉल, महंत घासीदास संग्रहालय,केसर ए हिंद दरवाजा,जयस्तंभ चौक, गोल बाजार, महाकौशल कला वीथिका अष्ट कोणीय स्मारक हैं, ब्रिटिश काल में जिनका निर्माण हुआ और आज भी उस काल की गाथा अपने दीवारों में समेटे हुए हैं.
अलग राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ ने कई आयामों में विकास की रफ्तार पकड़ी लेकिन विकास की अंधाधुंध दौड़ में हमने ऐतिहासिक धरोहरों से अपना मुंह मोड़ लिया.इसी का नतीजा है कि आज कई ऐतिहासिक धरोहर बदहाली की मार झेल रहे हैं. ऐसे में जरूरत हैं हम सब इन धरोहरों को संजों कर रखें हैं.