रायपुर : धर्मनगरी राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग और शिव वैष्णव धर्म का संगम तीर्थ कहा जाता है. प्रयागराज इलाहाबाद की तरह यहां पैरी, सोढ़ूर और महानदी का त्रिवेणी संगम है. प्रयाग के संगम की तरह ही यहां श्रद्धालु अस्थि विसर्जन, पिण्ड दान, कर्मकांड करते हैं. धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान छत्तीसगढ़ में 10 वर्ष बिताए थे. इसी वनवास काल में माता सीता ने राजिम में महानदी की रेत से शिवलिंग बनाकर आराधना की थी. उसी स्थल पर कुलेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है.
रामायण काल और राजिम की महत्ता : यहां प्रभु श्री राजीवलोचन का पुरातन भव्य मंदिर भी है, जिनका जन्मोत्सव माघ माह की पूर्णिमा को ही मनाया जाता है. इस दिन भगवान जगन्नाथ ओडिशा से राजीवलोचन जन्मोत्सव मनाने राजिम आते हैं. इस वजह से ओडिशा स्थित जगन्नाथ मंदिर के पट बंद रहते हैं. चम्पारण में श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य जी प्रकाट्य स्थल, लोमश ऋषि आश्रम, भक्त माता कर्मा और दूसरे देवालयों का दर्शन करने बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं.
क्यों होता है मेले का आयोजन : राजिम में हर साल माघ पुन्नी पर भक्त संगम में पवित्र डुबकी लगाते हैं. पंडितों के अनुसार '' माघ के महीने में सभी नदियों का जल गंगा जल के समान हो जाता है. महानदी तो साक्षात् गंगा है. पुराणों में चित्रोत्पला कहकर इसकी स्तुति की गई है. त्रेतायुग में जगदंबा जानकी ने श्रीराम वनगमनकाल में इसके संगम के बीचों बीच बालू की रेत से शिवलिंग बनाया था. उनका चित्रोत्पलेश्चर कहकर पूजन अभिषेक किया गया था. वही बाद में कुलेश्वर हो गया. यही वजह है कि माघ महीने में यहां मेला लगता है. इस मेले में राज्य और देश के दूसरे हिस्सों से संत पहुंचते हैं.
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पंचकोशी परिक्रमा का शुभारंभ : माघी पुन्नी मेला स्थल से कई श्रद्धालु पंचकोशी परिक्रमा की शुरुआत करते हैं. यहां कुलेश्वर महादेव के दर्शन के बाद श्रद्धालुओं का जत्था हर हर महादेव जपते पटेश्वर महादेव पटेवा, चम्पेश्वर महादेव चंपारण, फिगेंश्वर महादेव फिंगेश्वर और कोपेश्वर महादेव कोपरा के स्वयंभू शिवलिंग का दर्शन कर परिक्रमा पूरी करते हैं.