रायपुर: राजधानी रायपुर की ऐतिहासिक धरोहर सिटी कोतवाली को विकास के नाम पर जमींदोज कर दिया गया है. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सदर बाजार और मालवीय रोड चौराहे पर सिटी कोतवाली अंग्रेजों के समय 1802 में बनाई गई थी. शुरुआती दौर में यहां अंग्रेज कचहरी लगाया करते थे, बाद में इसे कोतवाली बना दिया गया. इतिहासकारों ने भी इस भवन के टूटने को लेकर नाराजगी जताई है. उन्होंने कहा कि यह रायपुर की ऐतिहासिक धरोहरों में से एक थी. इसे संजोना जाना चाहिए था, लेकिन इसे तोड़ दिया गया, इसे लेकर आम शहरवासियों ने भी नाराजगी जताई है.
सिटी कोतवाली भवन को लेकर इतिहासकार डॉ. रविंद्र नाथ मिश्रा ने बताया कि 1802 में अंग्रेजों ने कचहरी के तौर पर इस बिल्डिंग को बनाया था. बिल्डिंग की जुड़ाई में पत्थरों को लगाया गया था, कोतवाली के निर्माण के लिए रायपुर के पुराने किले में लगे सफलिश पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था. इसमें कई ऐतिहासिक चीजों को शामिल किया गया था. इसे इसी रूप में बचाना चाहिए था. सिटी कोतवाली ब्रिटिशकालीन कला का बेहतरीन नमूना था. 101 साल बाद कचहरी की इस बिल्डिंग को सिटी कोतवाली भवन में तब्दील कर दिया गया था. तब से लेकर अबतक यहां सिटी कोतवाली संचालित हो रहा था.
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इतिहासकार ने बताया कि यह उस समय रायपुर-नागपुर कमिश्नरी के अंतर्गत आता था. रायपुर से बिंद्रानवागढ़ और भखारा में भी इसकी 2 पुलिस चौकियां हुआ करती थी, तब दूर-दूर से लोग अपनी शिकायत लेकर कोतवाली ही आते थे. 1857 की क्रांति का भी गवाह रहा है. सिटी कोतवाली अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह, 1857 की क्रांति का भी गवाह रहा है. 1857 की क्रांति के समय इसी भवन में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सुनवाई होती थी. बंदियों को रखने के लिए बंदी गृह उस समय ही बनाया गया था, जो आज भी जस का तस वहां पर बना हुआ था.
सिटी कोतवाली से जुड़ी स्वतंत्रता सेनानियों की यादें
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सीपीआर बरार और मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल, वामनराव लाखे, माधव राव सप्रे, पं सुंदरलाल शर्मा, खूबचंद बघेल जैसे महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को कोतवाली थाने में बंदी गृह में रखा गया था. जहां उन्होंने कई दिन गुजारे थे. असहयोग आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को भी इसी हवालात में बंद किया जाता था.
ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण के लिए नहीं हुआ काम
2 साल पहले कांग्रेस पार्टी 'गढ़बो नवा छत्तीसगढ़' के नारे के साथ सत्ता में आई थी. घोषणापत्र में गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ का नारा कांग्रेस ने दिया था. इसी के साथ बदलाव की बयार इतनी तेज हो रही है कि विरासत ही संकट में आ गई है. राजधानी रायपुर में ऐतिहासिक इमारतों को संरक्षित किया जाना चाहिए था, लेकिन इन बिल्डिंगों को ही गिराया जा रहा है. सिटी कोतवाली थाना जहां 200 साल पहले 1857 के क्रांतिकारियों के खिलाफ भी सुनवाई हुई थी. इस कोतवाली में प्रदेश के तमाम बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने कई दिन गुजारे थे. सारी यादें दीवारों के साथ ध्वस्त हो चुकी है. सबसे बड़ी बात है कि देश में जब ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की इमारतों के संरक्षण पर बल दिया जा रहा है, वहीं रायपुर में इतिहास को जमींदोज किया जा रहा है.
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स्मार्ट सिटी के नाम पर धरोहरों को ध्वस्त करना कितना जरूरी ?
सदर बाजार इससे पहले नगर निगम की बिल्डिंग को भी गिरा दिया गया, वहां पार्क बनाया जा रहा है. छत्तीसगढ़ के इतिहासकारों के साथ ही आम जनता का भी मानना है कि सरकार को प्राचीन इमारतों के संरक्षण पर काम करना चाहिए. सरकार के इस फैसले पर कई सवाल उठ रहे हैं. सरकार ने 100 साल से ज्यादा पुरानी सरकारी इमारतों को ऐतिहासिक धरोहर में शामिल करने पहल क्यों नहीं की ? रायपुर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए क्या पुरानी धरोहरों को ध्वस्त करना जरूरी है ? ऐसे कई सवाल है जिसका जवाब देने से सरकार बच रही है.