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हिंदी दिवस 2021: राजभाषा के तौर पर हिंदी को अब भी क्यों करना पड़ रहा है संघर्ष?

14 सिंतबर को हिंदी दिवस (Hindi diwas) मनाया जाता है. इस मौके पर ईटीवी भारत (ETV BHARAT) की टीम ने केंद्रीय कार्यालयों में पदस्थ राजभाषा विभाग के अधिकारियों से बात की है. आखिर राजभाषा और भाषा के तौर पर आज के दौर में हिंदी कहां मौजूद है.

hindi diwas
राजभाषा के तौर पर संघर्ष करती हिंदी
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Published : Sep 13, 2021, 8:21 PM IST

Updated : Sep 13, 2021, 8:53 PM IST

रायपुर: हिंदी हमारी मातृ भाषा (Hindi Our Mother Language) है. देशभर में 14 सितंबर (14th September) को हिंदी दिवस ( Hindi day) मनाया जाता है. हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार और उसे बढ़ावा देने के लिए तमाम उपाय अपनाए जाते हैं. इसके लिए तमाम शासकीय दफ्तरों में हिंदी पखवाड़ा का भी आयोजन होता है. जिसके तहत निबंध प्रतियोगी, लेखन प्रतियोगिता, हिंदी सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता समेत अनेक स्पर्धाएं होती है. बावजूद हिंदी को वैसा स्थान नहीं मिल पाया है जैसा मिलना चाहिए. ऐसे में हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में ईटीवी भारत की टीम केंद्रीय कार्यालयों में कार्यरत हिंदी विभाग के अधिकारियों से इसके विस्तार में हो रही अवरोध के बारे में जानने की कोशिश की. जिसके मुताबिक अधिकारियों ने बताया कि केंद्रीय कार्यालयों में हिंदी भाषा को संघर्ष करना पड़ रहा है.

हिंदी को अब भी क्यों करना पड़ रहा है संघर्ष?

जिन प्रदेशों में हिंदी का नहीं होता उपयोग, वहां अंग्रेजी में करते हैं पत्राचार

भारतीय डाक (हिंदी विभाग) के अधिकारी बीआर यादव ने बताया कि छत्तीसगढ़ में हिंदी को लेकर कोई समस्या नहीं है, जहां तक हमारा अनुभव है कि छत्तीसगढ़ में सौ फीसदी काम हिंदी में होता है, लेकिन देश में कई ऐसे प्रदेश है, जहां हिंदी बिल्कुल भी चलता नहीं है. ऐसे में हमें पत्राचार करना है तो उन प्रदेशों में अंग्रेजी में करना पड़ता है या दिल्ली में भी कोई पत्राचार करना है तो हम अंग्रेजी में करते हैं.

कुछ प्रदेश बिल्कुल भी हिंदी का इस्तेमाल नहीं करते. उसके लिए हमें इंग्लिश माध्यम का इस्तेमाल करना होता है. वैसे हम छत्तीसगढ़ में मैक्सिमम काम हिंदी में ही करते हैं और जहां तक काम हिंदी को बढ़ावा देने की बात है तो हम लोग हर साल सितंबर माह में हिंदी पखवाड़े का आयोजन करते हैं. जिसमें कर्मचारियों को हिंदी लेखन, निबंध प्रतियोगिता, पत्र लेखन और वाद विवाद समेत कई तरह की स्पर्धा का आयोजन करते हैं, ताकि हमारे कर्मचारी ज्यादा से ज्यादा हिंदी को लेकर जागरूक हो सकें, लेकिन मैं समझता हूं कि हमारे छत्तीसगढ़ में ऐसी कोई स्थिति नहीं है.

'हिंदी को करना पड़ रहा संघर्ष'

जीएसटी विभाग के सीनियर ट्रांसलेशन ऑफिसर भूपेंद्र पांडेय ने बताया कि भारत की आजादी की लड़ाई में जो हिंदी की भूमिका थी. वह संपर्क भाषा की भूमिका थी. इसीलिए भारत के संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया और सितंबर महीने में केंद्र सरकार के सारे कार्यालयों में हिंदी पखवाड़ा, हिंदी माह आदि का आयोजन किया जाता है. हमारे कार्यालय में भी 1 सितंबर से 15 सितंबर तक हिंदी पखवाड़ा मनाते हैं. हिंदी को वास्तव में अपने अस्तित्व के लिए कोई संघर्ष नहीं करना पड़ रहा है.

हां केंद्र सरकार के कार्यालयों में जरूर हिंदी संघर्षरत हैं, लेकिन आम जनजीवन में हिंदी हमारी प्रिंट मीडिया की भाषा, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भाषा, विज्ञापन की भाषा है, जनसंचार की भाषा और फिल्मों की भाषा है. जहां भी देखेंगे वहां पर हिंदी है. लेकिन भारत के संविधान में यह व्यवस्था भी की गई है कि राज्यों की अपनी भी राज भाषाएं होंगी.

अनुच्छेद 343 के अनुसार राज्यों की अपनी भाषाएं होगी तो निश्चित रूप से हिंदीतर भाषा भाषी है, जैसे दक्षिण या उत्तर में हिंदी का उतना प्रचलन नहीं है, लेकिन धीरे-धीरे लोग जागरूक हो रहे हैं. निश्चित रूप से आने वाले समय में यह परिवर्तन हमें देखने को मिलेगा और वास्तव में हिंदी को सभी राज्यों में जो स्थान मिलना चाहिए. वह मिल पाएगा. जहां तक हमारे कार्यालय की बात है तो जीएसटी केंद्रीय माल और सेवा कर यह अधिनियम 2017 में अस्तित्व में आया. जब भी कोई अधिनियम बनता है तो दोनों भाषा में बनाया जाता है.

हमारे कार्यालय में इतना संघर्ष करना नहीं पड़ रहा है. हमारे जो अधिकांश दस्तावेज हैं. द्विभाषी रूप में तैयार किए जाते हैं. क्योंकि हमारा कार्यालय कर क्षेत्र में है, इसलिए हमारे अधिकांश पत्र व्यवहार हिंदी में है तो हमारे कार्यालय में अस्तित्व जैसी कोई स्थिति नहीं है. लगभग 90 फीसदी कामकाज हिंदी भाषी क्षेत्र होने की वजह से हिंदी में हो रहा है. क्योंकि हमारे जितने भी यूनिट्स हैं. वह छत्तीसगढ़ में ही स्थित है.

रायपुर: हिंदी हमारी मातृ भाषा (Hindi Our Mother Language) है. देशभर में 14 सितंबर (14th September) को हिंदी दिवस ( Hindi day) मनाया जाता है. हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार और उसे बढ़ावा देने के लिए तमाम उपाय अपनाए जाते हैं. इसके लिए तमाम शासकीय दफ्तरों में हिंदी पखवाड़ा का भी आयोजन होता है. जिसके तहत निबंध प्रतियोगी, लेखन प्रतियोगिता, हिंदी सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता समेत अनेक स्पर्धाएं होती है. बावजूद हिंदी को वैसा स्थान नहीं मिल पाया है जैसा मिलना चाहिए. ऐसे में हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में ईटीवी भारत की टीम केंद्रीय कार्यालयों में कार्यरत हिंदी विभाग के अधिकारियों से इसके विस्तार में हो रही अवरोध के बारे में जानने की कोशिश की. जिसके मुताबिक अधिकारियों ने बताया कि केंद्रीय कार्यालयों में हिंदी भाषा को संघर्ष करना पड़ रहा है.

हिंदी को अब भी क्यों करना पड़ रहा है संघर्ष?

जिन प्रदेशों में हिंदी का नहीं होता उपयोग, वहां अंग्रेजी में करते हैं पत्राचार

भारतीय डाक (हिंदी विभाग) के अधिकारी बीआर यादव ने बताया कि छत्तीसगढ़ में हिंदी को लेकर कोई समस्या नहीं है, जहां तक हमारा अनुभव है कि छत्तीसगढ़ में सौ फीसदी काम हिंदी में होता है, लेकिन देश में कई ऐसे प्रदेश है, जहां हिंदी बिल्कुल भी चलता नहीं है. ऐसे में हमें पत्राचार करना है तो उन प्रदेशों में अंग्रेजी में करना पड़ता है या दिल्ली में भी कोई पत्राचार करना है तो हम अंग्रेजी में करते हैं.

कुछ प्रदेश बिल्कुल भी हिंदी का इस्तेमाल नहीं करते. उसके लिए हमें इंग्लिश माध्यम का इस्तेमाल करना होता है. वैसे हम छत्तीसगढ़ में मैक्सिमम काम हिंदी में ही करते हैं और जहां तक काम हिंदी को बढ़ावा देने की बात है तो हम लोग हर साल सितंबर माह में हिंदी पखवाड़े का आयोजन करते हैं. जिसमें कर्मचारियों को हिंदी लेखन, निबंध प्रतियोगिता, पत्र लेखन और वाद विवाद समेत कई तरह की स्पर्धा का आयोजन करते हैं, ताकि हमारे कर्मचारी ज्यादा से ज्यादा हिंदी को लेकर जागरूक हो सकें, लेकिन मैं समझता हूं कि हमारे छत्तीसगढ़ में ऐसी कोई स्थिति नहीं है.

'हिंदी को करना पड़ रहा संघर्ष'

जीएसटी विभाग के सीनियर ट्रांसलेशन ऑफिसर भूपेंद्र पांडेय ने बताया कि भारत की आजादी की लड़ाई में जो हिंदी की भूमिका थी. वह संपर्क भाषा की भूमिका थी. इसीलिए भारत के संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया और सितंबर महीने में केंद्र सरकार के सारे कार्यालयों में हिंदी पखवाड़ा, हिंदी माह आदि का आयोजन किया जाता है. हमारे कार्यालय में भी 1 सितंबर से 15 सितंबर तक हिंदी पखवाड़ा मनाते हैं. हिंदी को वास्तव में अपने अस्तित्व के लिए कोई संघर्ष नहीं करना पड़ रहा है.

हां केंद्र सरकार के कार्यालयों में जरूर हिंदी संघर्षरत हैं, लेकिन आम जनजीवन में हिंदी हमारी प्रिंट मीडिया की भाषा, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भाषा, विज्ञापन की भाषा है, जनसंचार की भाषा और फिल्मों की भाषा है. जहां भी देखेंगे वहां पर हिंदी है. लेकिन भारत के संविधान में यह व्यवस्था भी की गई है कि राज्यों की अपनी भी राज भाषाएं होंगी.

अनुच्छेद 343 के अनुसार राज्यों की अपनी भाषाएं होगी तो निश्चित रूप से हिंदीतर भाषा भाषी है, जैसे दक्षिण या उत्तर में हिंदी का उतना प्रचलन नहीं है, लेकिन धीरे-धीरे लोग जागरूक हो रहे हैं. निश्चित रूप से आने वाले समय में यह परिवर्तन हमें देखने को मिलेगा और वास्तव में हिंदी को सभी राज्यों में जो स्थान मिलना चाहिए. वह मिल पाएगा. जहां तक हमारे कार्यालय की बात है तो जीएसटी केंद्रीय माल और सेवा कर यह अधिनियम 2017 में अस्तित्व में आया. जब भी कोई अधिनियम बनता है तो दोनों भाषा में बनाया जाता है.

हमारे कार्यालय में इतना संघर्ष करना नहीं पड़ रहा है. हमारे जो अधिकांश दस्तावेज हैं. द्विभाषी रूप में तैयार किए जाते हैं. क्योंकि हमारा कार्यालय कर क्षेत्र में है, इसलिए हमारे अधिकांश पत्र व्यवहार हिंदी में है तो हमारे कार्यालय में अस्तित्व जैसी कोई स्थिति नहीं है. लगभग 90 फीसदी कामकाज हिंदी भाषी क्षेत्र होने की वजह से हिंदी में हो रहा है. क्योंकि हमारे जितने भी यूनिट्स हैं. वह छत्तीसगढ़ में ही स्थित है.

Last Updated : Sep 13, 2021, 8:53 PM IST
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