रायपुर: छत्तीसगढ़ में हरेली तिहार धूमधाम से मनाया जा रहा है. हरेली, यानी छत्तीसगढ़ का पहला त्योहार. सावन अमावस्या को मनाई जाने वाली हरेली को छत्तीसगढ़ में पहला त्योहार भी कहा जाता है. किसान इस पर्व को बड़े धूम-धाम से मनाते हैं. जैसा कि नाम से ही साफ है ये त्योहार हरियाली यानी पर्यावरण के प्रति किसानों के झुकाव को दर्शाता है.
सावन के महीने में जब हर तरफ हरा भरा नजारा होता है किसान भी खेतों में बुआई के बाद खेतों की पहली झलक पाकर खुशी और उमंग की अनुभूति करता है उस उल्लास को ही छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में हरेली पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस दिन किसान अपने औजारों की पूजा करता है. खासकर हल की पूजा और बैलों की पूजा की जाती है.
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नीम की डालें लगाई जाती हैं
ग्रामीण इलाकों में हरेली के दिन ग्रामीण घर के बाहर नीम के पत्ते लगाते हैं और घर की चौखट पर कील ठोकी जाती है. माना जाता है ऐसा करने से उनका घर और परिवार बुरी नजर से बचा रहेगा. ग्रामीणों की इस पुरानी मान्यता के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी छुपा है.
जैसा कि हम जानते हैं नीम के पत्तों में कई तरह के रोगाणु और बैक्टीरिया को खत्म करने की क्षमता है, बारिश के मौसम में कई तरह की मौसमी बीमारी इंसानों और मवेशियों को घेर लेती हैं इसी से नीम के पत्ते रोकथाम करते हैं. इस तरह से छत्तीसगढ़ की ये पुरानी परंपरा भी लोक स्वास्थ्य से जुड़ी हुई है.
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गेड़ी और नारियल फेंक का आकर्षण –
हरेली के मौके पर गेड़ी पर चढ़ना एक परंपरागत खेल है. बांस पर खास तरह से गेड़ी बनाकर युवा इस पर हरेली के दिन चढ़कर इठलाते नजर आते हैं. कुछ जगहों पर गेड़ी नृत्य का भी आयोजन किया जाता है, हालांकि वक्त की रफ्तार में ये कला अब कम नजर आती है. कई किसान हरेली के मौके पर ही अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा करते हैं. और ग्राम देव से भी खुशहाली और अच्छी फसल की कामना की जाती है.
हरेली के बाद छत्तीसगढ़ में हर 15 दिन में एक त्योहार मनाया जाता है. जैसे- इसके पांचवें दिन नाग पंचमी, फिर खमर छठ, रक्षाबंधन, पोला, तीज, गणेश चतुर्थी जैसे कई त्योहार मनाए जाते हैं.