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Guru Tegh Bahadur Martyrdom Day 2022 : गुरु तेग बहादुर का बलिदान और महत्व

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Published : Nov 24, 2022, 4:43 PM IST

गुरु तेग बहादुर जी सिक्खों के नौवें गुरु थे. गुरु तेगबहादुरजी को प्रेम से ‘हिन्द की चादर’ भी कहा जाता है. उनकी बहुत सी रचनाएं ग्रंथ साहब के महला 9 में संग्रहित हैं. उन्होंने शुद्ध हिन्दी में सरल और भावयुक्त ‘पदों’ और ‘साखी’ की रचनाएं की. तेग बहादुर सिंह 20 मार्च, 1664 को सिक्खों के गुरु नियुक्त हुए थे और 24 नवंबर, 1675 तक गद्दी पर आसीन रहे. Guru Tegh Bahadur Martyrdom 2022

Guru Tegh Bahadur Martyrdom Day 2022
गुरु तेग बहादुर का बलिदान और महत्व

Guru Tegh Bahadur Martyrdom Day 2022 : गुरु तेग बहादुर का जन्म 1 अप्रैल 1621 को अमृतसर, पंजाब मे हुआ था.उनके पिता का नाम गुरु हरगोविंद सिंह और माता का नाम नानकी देवी था. वे अपने माता पिता की पांचवीं संतान थे. उनका बचपन का नाम त्यागमल था.गुरु तेग बहादुर जी की शिक्षा-दीक्षा मीरी-पीरी के मालिक गुरु-पिता गुरु हरिगोबिंद साहिब की छत्र छाया में हुई. इसी समय इन्होंने गुरुबाणी, धर्मग्रंथों के साथ-साथ शस्त्रों तथा घुड़सवारी की शिक्षा प्राप्त की. सिखों के 8वें गुरु हरिकृष्ण राय जी की अकाल मृत्यु हो जाने की वजह से गुरु तेगबहादुर जी को गुरु बनाया गया था. मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में उन्होंने वीरता का परिचय दिया. उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेग बहादुर (तलवार के धनी) रख दिया. (Guru Tegh Bahadur Martyrdom birthday)

कब आया जीवन में परिवर्तन :युद्धस्थल में भीषण रक्तपात से गुरु तेग बहादुर जी के वैरागी मन पर गहरा प्रभाव पड़ा .उनका मन आध्यात्मिक चिंतन की ओर हुआ. धैर्य, वैराग्य और त्याग की मूर्ति गुरु तेग बहादुर जी ने एकांत में लगातार 20 वर्ष तक ‘बाबा बकाला’ नामक स्थान पर साधना की.आठवें गुरु हरकिशन जी ने अपने उत्तराधिकारी का नाम के लिए ‘बाबा बकाले’ का निर्देश दिया. गुरु जी ने धर्म के प्रसार लिए कई स्थानों का भ्रमण किया. आनंदपुर साहब से कीरतपुर, रोपण, सैफाबाद होते हुए वे खिआला (खदल) पहुंचे. यहां उपदेश देते हुए दमदमा साहब से होते हुए कुरुक्षेत्र पहुंचे. कुरुक्षेत्र से यमुना के किनारे होते हुए कड़ामानकपुर पहुंचे और यहीं पर उन्होंने साधु भाई मलूकदास का उद्धार किया.इसके बाद गुरु तेग बहादुर जी प्रयाग, बनारस, पटना, असम क्षेत्रों में गए, जहां उन्होंने आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक, उन्नयन के लिए रचनात्मक कार्य किए.

गुरु तेग बहादुर का बलिदान : इस जुल्म के शिकार कश्मीर के पंडित गुरु तेगबहादुर के पास आए और उन्हें बताया कि किस तरह इस्लाम धर्म स्वीकारने के लिए दबाव बनाया जा रहा है और न करने वालों को तरह-तरह की यातनाएं दी जा रही हैं. हमारी बहू-बेटियों की इज्जत को खतरा है. जहां से हम पानी भरते हैं. वहां हड्डियां फेंकी जाती है. इसके बाद गुरु तेगबहादुर दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में स्वयं चलकर गए. वहां औरंगजेब ने उन्हें तरह-तरह के लालच दिए. लेकिन बात नहीं बनी तो उन पर बहुत सारे जुल्म किए. उन्हें कैद कर लिया गया. उनके दो शिष्यों को मारकर उन्हें डराने की कोशिश की, पर गुरु तेगबहादुर टस से मस नहीं हुए. उन्होंने औरंगजेब को धर्म का मतलब समझाया. जिससे वो नाराज हो गया और गुरु तेगबहादुर का शीश काटने का हुक्म दिया. 24 नवम्बर 1675 को दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेग बहादुर जी का शीश काट दिया गया. गुरु तेग बहादुरजी की याद में उनके ‘शहीदी स्थल’ पर गुरुद्वारा बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा ‘शीश गंज साहिब’ है. (Guru Tegh Bahadurs Martyrdom history)

Guru Tegh Bahadur Martyrdom Day 2022 : गुरु तेग बहादुर का जन्म 1 अप्रैल 1621 को अमृतसर, पंजाब मे हुआ था.उनके पिता का नाम गुरु हरगोविंद सिंह और माता का नाम नानकी देवी था. वे अपने माता पिता की पांचवीं संतान थे. उनका बचपन का नाम त्यागमल था.गुरु तेग बहादुर जी की शिक्षा-दीक्षा मीरी-पीरी के मालिक गुरु-पिता गुरु हरिगोबिंद साहिब की छत्र छाया में हुई. इसी समय इन्होंने गुरुबाणी, धर्मग्रंथों के साथ-साथ शस्त्रों तथा घुड़सवारी की शिक्षा प्राप्त की. सिखों के 8वें गुरु हरिकृष्ण राय जी की अकाल मृत्यु हो जाने की वजह से गुरु तेगबहादुर जी को गुरु बनाया गया था. मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में उन्होंने वीरता का परिचय दिया. उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेग बहादुर (तलवार के धनी) रख दिया. (Guru Tegh Bahadur Martyrdom birthday)

कब आया जीवन में परिवर्तन :युद्धस्थल में भीषण रक्तपात से गुरु तेग बहादुर जी के वैरागी मन पर गहरा प्रभाव पड़ा .उनका मन आध्यात्मिक चिंतन की ओर हुआ. धैर्य, वैराग्य और त्याग की मूर्ति गुरु तेग बहादुर जी ने एकांत में लगातार 20 वर्ष तक ‘बाबा बकाला’ नामक स्थान पर साधना की.आठवें गुरु हरकिशन जी ने अपने उत्तराधिकारी का नाम के लिए ‘बाबा बकाले’ का निर्देश दिया. गुरु जी ने धर्म के प्रसार लिए कई स्थानों का भ्रमण किया. आनंदपुर साहब से कीरतपुर, रोपण, सैफाबाद होते हुए वे खिआला (खदल) पहुंचे. यहां उपदेश देते हुए दमदमा साहब से होते हुए कुरुक्षेत्र पहुंचे. कुरुक्षेत्र से यमुना के किनारे होते हुए कड़ामानकपुर पहुंचे और यहीं पर उन्होंने साधु भाई मलूकदास का उद्धार किया.इसके बाद गुरु तेग बहादुर जी प्रयाग, बनारस, पटना, असम क्षेत्रों में गए, जहां उन्होंने आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक, उन्नयन के लिए रचनात्मक कार्य किए.

गुरु तेग बहादुर का बलिदान : इस जुल्म के शिकार कश्मीर के पंडित गुरु तेगबहादुर के पास आए और उन्हें बताया कि किस तरह इस्लाम धर्म स्वीकारने के लिए दबाव बनाया जा रहा है और न करने वालों को तरह-तरह की यातनाएं दी जा रही हैं. हमारी बहू-बेटियों की इज्जत को खतरा है. जहां से हम पानी भरते हैं. वहां हड्डियां फेंकी जाती है. इसके बाद गुरु तेगबहादुर दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में स्वयं चलकर गए. वहां औरंगजेब ने उन्हें तरह-तरह के लालच दिए. लेकिन बात नहीं बनी तो उन पर बहुत सारे जुल्म किए. उन्हें कैद कर लिया गया. उनके दो शिष्यों को मारकर उन्हें डराने की कोशिश की, पर गुरु तेगबहादुर टस से मस नहीं हुए. उन्होंने औरंगजेब को धर्म का मतलब समझाया. जिससे वो नाराज हो गया और गुरु तेगबहादुर का शीश काटने का हुक्म दिया. 24 नवम्बर 1675 को दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेग बहादुर जी का शीश काट दिया गया. गुरु तेग बहादुरजी की याद में उनके ‘शहीदी स्थल’ पर गुरुद्वारा बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा ‘शीश गंज साहिब’ है. (Guru Tegh Bahadurs Martyrdom history)

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