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'पुरानी गलतियों को सुधारने की दिशा में कदम है गोंड समाज का फैसला'

छत्तीसगढ़ में कई तरह की जनजातियां हैं. इनमें गोंड जाति भी शामिल है. जो कि बेहद पुरानी जनजाति है. हाल ही में कवर्धा जिले में गोंड समाज ने अपनी परंपरा के मुताबिक कुछ फैसले लिए हैं. इसे लेकर ETV भारत ने आदिवासियों के नियमों और जीवन को बेहद करीब से देखने वाले परिवेश मिश्रा से खास बातचीत की.

changes in customs of gond society
जनजातीय मामलो के जानकार परिवेश मिश्रा
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Published : Mar 9, 2021, 9:06 PM IST

रायपुर: आदिवासी समाज अपनी संस्कृति, बोली और लाइफ स्टाइल के लिए जाना जाता है. छत्तीसगढ़ में कई तरह की जनजातियां हैं. इनमें गोंड जाति भी शामिल है. जो कि बेहद पुरानी जनजाति है. इसकी कई उपजाति भी छत्तीसगढ़ में निवास करती है. हाल ही में कवर्धा जिले में गोंड समाज ने अपनी परंपरा के मुताबिक कुछ फैसले लिए, जिसे उनके प्राकृतिक प्रेम और अपने सामाजिक नियमों की ओर लौटने के तौर पर देखा जा रहा है. इस पर ETV भारत ने आदिवासियों के नियमों और जीवन को बेहद करीब से देखने वाले परिवेश मिश्रा से खास बातचीत की.

गोंड समाज का फैसला

सवाल- कवर्धा में हाल ही में गोंड समाज द्वारा कुछ सामाजिक फैसले लिए गए. मसलन दफना कर अंतिम संस्कार करना, शराब बंदी, दहेज पर रोक जैसे कई बड़े फैसले लिए गए. इसे आप किस तरह देख सकते हैं ?

परिवेश मिश्रा- इस क्षेत्र में जनजातियों के रहने का इतिहास बहुत पुराना है. गोंड समाज ने जो फैसले लिए हैं, दरअसल इसके जरिए वे अपनी परंपरा की ओर लौटने की कोशिश कर रहे हैं. ये किसी टाइम लाइन में लौटने की कोशिश नहीं बल्कि ये पुरानी गलतियों को सुधारने का प्रयास भी है.

सवाल- इनकी परंपराओं से प्रकृति को कैसे संरक्षण मिलता है ?

परिवेश मिश्रा- जहां तक शव को दफनाने की परंपरा है, ये आदिवासी समाज में शुरू से ही देखी गई है. बाद में कुछ जगहों पर दाह संस्कार किया जाने लगा. क्योंकि आदिवासी समाज जंगल से ही अपना जीवन यापन करता है. आज के संदर्भ में देखा जाए तो इसे पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कदम माना जाएगा. इसी तरह से शराब को
लेकर भ्रांति है और इसे आदिवासी समाज से जोड़ दिया जाता है. इन बातों को उनके नजरिए से देखा जाना चाहिए.

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सवाल - क्या विवाह में तामझाम और दहेज को रोक लगाने के लिए भी फैसले लिए गए हैं ?

परिवेश मिश्रा- यहां मातृ सतात्मक समाज रहा है. ऐसे में दहेज का सवाल ही नहीं उठता. ये सब बाहरी बाते हैं. जैसे विवाह में ये बैंड बाजे आदि का इस्तेमाल करते हैं, आदिवास समाज अपने तरीके से सेलीब्रेट करते थे. वे अपना वाद्य यंत्र बजाते थे. लेकिन बाहरी चीजों का असर भी आदिवासी समाज पर पड़ा है.

छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज और वन

छत्तीसगढ़ राज्य का भौगोलिक क्षेत्रफल 1 लाख 35 हजार 191 वर्ग किलोमीटर है. जो देश के क्षेत्रफल का 4.1 प्रतिशत है. राज्य का वन क्षेत्र करीब 59 हजार 772 वर्ग किलोमीटर है. जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 44.21 प्रतिशत है. जहां तक बात गोंड जनजाति की है तो ये राज्य का सबसे बड़ा जनजाति समूह है. राज्य के कुल जनजाति
में 55 फीसदी गोंड हैं. ये कवर्धा, राजनांदगांव, कांकेर, महासमुंद, गरियाबंद, दंतेवाड़ा, बस्तर, रायगढ़ जिलों में बहुतायत में पाए जाते हैं.

रायपुर: आदिवासी समाज अपनी संस्कृति, बोली और लाइफ स्टाइल के लिए जाना जाता है. छत्तीसगढ़ में कई तरह की जनजातियां हैं. इनमें गोंड जाति भी शामिल है. जो कि बेहद पुरानी जनजाति है. इसकी कई उपजाति भी छत्तीसगढ़ में निवास करती है. हाल ही में कवर्धा जिले में गोंड समाज ने अपनी परंपरा के मुताबिक कुछ फैसले लिए, जिसे उनके प्राकृतिक प्रेम और अपने सामाजिक नियमों की ओर लौटने के तौर पर देखा जा रहा है. इस पर ETV भारत ने आदिवासियों के नियमों और जीवन को बेहद करीब से देखने वाले परिवेश मिश्रा से खास बातचीत की.

गोंड समाज का फैसला

सवाल- कवर्धा में हाल ही में गोंड समाज द्वारा कुछ सामाजिक फैसले लिए गए. मसलन दफना कर अंतिम संस्कार करना, शराब बंदी, दहेज पर रोक जैसे कई बड़े फैसले लिए गए. इसे आप किस तरह देख सकते हैं ?

परिवेश मिश्रा- इस क्षेत्र में जनजातियों के रहने का इतिहास बहुत पुराना है. गोंड समाज ने जो फैसले लिए हैं, दरअसल इसके जरिए वे अपनी परंपरा की ओर लौटने की कोशिश कर रहे हैं. ये किसी टाइम लाइन में लौटने की कोशिश नहीं बल्कि ये पुरानी गलतियों को सुधारने का प्रयास भी है.

सवाल- इनकी परंपराओं से प्रकृति को कैसे संरक्षण मिलता है ?

परिवेश मिश्रा- जहां तक शव को दफनाने की परंपरा है, ये आदिवासी समाज में शुरू से ही देखी गई है. बाद में कुछ जगहों पर दाह संस्कार किया जाने लगा. क्योंकि आदिवासी समाज जंगल से ही अपना जीवन यापन करता है. आज के संदर्भ में देखा जाए तो इसे पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कदम माना जाएगा. इसी तरह से शराब को
लेकर भ्रांति है और इसे आदिवासी समाज से जोड़ दिया जाता है. इन बातों को उनके नजरिए से देखा जाना चाहिए.

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सवाल - क्या विवाह में तामझाम और दहेज को रोक लगाने के लिए भी फैसले लिए गए हैं ?

परिवेश मिश्रा- यहां मातृ सतात्मक समाज रहा है. ऐसे में दहेज का सवाल ही नहीं उठता. ये सब बाहरी बाते हैं. जैसे विवाह में ये बैंड बाजे आदि का इस्तेमाल करते हैं, आदिवास समाज अपने तरीके से सेलीब्रेट करते थे. वे अपना वाद्य यंत्र बजाते थे. लेकिन बाहरी चीजों का असर भी आदिवासी समाज पर पड़ा है.

छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज और वन

छत्तीसगढ़ राज्य का भौगोलिक क्षेत्रफल 1 लाख 35 हजार 191 वर्ग किलोमीटर है. जो देश के क्षेत्रफल का 4.1 प्रतिशत है. राज्य का वन क्षेत्र करीब 59 हजार 772 वर्ग किलोमीटर है. जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 44.21 प्रतिशत है. जहां तक बात गोंड जनजाति की है तो ये राज्य का सबसे बड़ा जनजाति समूह है. राज्य के कुल जनजाति
में 55 फीसदी गोंड हैं. ये कवर्धा, राजनांदगांव, कांकेर, महासमुंद, गरियाबंद, दंतेवाड़ा, बस्तर, रायगढ़ जिलों में बहुतायत में पाए जाते हैं.

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