रायपुर :आजादी के 75 वीं वर्षगांठ को पूरे देश में अमृत महोत्सव (Azadi ka amrit mahotshav ) के रूप में मनाया जा रहा है. आज से 75 वर्ष पूर्व सन् 1947 में लाखों-करोड़ों स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत को आजाद कराने में अपनी जान न्यौछावर कर दी थी.ऐसे ही एक स्वतंत्रता सेनानी थे भैरो प्रसाद (Freedom fighter of india Bhairon Prasad Rai )राय. जिन्हें गांव के गांधी के नाम से जाना जाता है. ईटीवी भारत ने उनके नाती गिरिजाशंकर राय से खास बातचीत हुई.आइए जानते हैं उन्होंने क्या कहा.
कहां पैदा हुए थे भैरो प्रसाद राय : स्वतंत्रा सेनानी भैरो प्रसाद राय के नाती गिरिजाशंकर राय ने कहा " सन् 1894 आज से लगभग 125 वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश झांसी के ललितपुर में भैरो प्रसाद राय का जन्म हुआ था. उनके गांव वाले उन्हें प्यार से भैरो बाबा कहा करते थे. भैरो प्रसाद राय के पिता बचपन में ही स्वर्गवासी हो गए थे. भैरो प्रसाद राय का पालन पोषण उनकी माता ने किया. परिवार ने गांव के स्कूल में पढ़ने के लिए उनका दाखिला कराया. लेकिन अंग्रेजों के जुल्म और सामाजिक बोझ बढ़ता देख वे स्वतंत्रता संग्राम में शामिल गए हो गए और उन्होंने स्कूल छोड़ दिया. केवल तीन क्लास पास होने के बावजूद भैरो प्रसाद राय को बुद्धिमान माना जाता था. जमींदार घर के पुत्र होने के नाते धन की कमी नहीं रही.''
आजादी के लिए योगदान : गिरिजाशंकर राय ने बताया " सन् 1911 में देश की आजादी की मांग शुरू हो गयी थी. गांधी और नेहरू जैसे नेताओं ने भारत को फिरंगियों से आजाद कराने की भावना जागृत की. लिहाजा भैरो प्रसाद राय ने स्वयं को देश सेवा में लगा दिया. कांग्रेसी विचारधारा में रहकर गांव-गांव घूमकर भारत माता की जय के नारे लगाते फिरते. इसी समय उन्होंने कुछ युवाओं को साथ लेकर गाली-गली घूमकर आजादी की अलख जगाई. तभी वह झांसी केशव धुलेकर , श्यामलाल आनंद (इंदीवर गीतकार), गोविन्द दास रिखारिया, सदाशिव मलकापुर, भगवानदास माहौर जैसे नेताओं के सम्पर्क में आए. भैरो प्रसाद राय तीसरी पास होने के बावजूद बुद्धिमान थे. इसलिए उनका काम प्रचार प्रसार का था. दिन रात जंगलों में भटकते हुए वह देश को आजादी दिलाने पर्चा लिखते थे और आजादी के लिए लोगो को प्ररित करते थे।"
गांव के गांधी नाम से मिली उपाधि : गिरिजाशंकर राय ने कहा " भैरो प्रसाद राय को झांसी में एक अंग्रेज अफसर ने कड़ी चेतावनी देकर कहा कि वे अंग्रेजों का विरोध न करें. उनकी जमींदारी खत्म करके उनकी जायदाद कुर्क कर उन्हें जेल में डाल दिया. लेकिन भैरो प्रसाद राय को उन सब बातों पर कोई प्रभाव नही पड़ा. वह अंग्रेजी शासन की खिलाफत करते रहे. उनके प्रेम व्यवहार और आजादी के लिए दीवानगी देखकर गांव के लोगों ने "गांव का गांधी" कहकर भी बुलाते (gao ka gandhi Bhairon Prasad Rai) थे.
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मुफलिसी में दिन गुजारे लेकिन आंदोलन नहीं त्यागा : गिरिजाशंकर राय ने बताया " अंग्रेजी सरकार ने भैरो प्रसाद राय को पकड़कर 1931 में बल्देवगढ़ के जेल में डाल दिया. सुख चैन को परवाह नहीं की और गरीबी में दिन गुजारते रहे और देश सेवा में लगे रहे. यही नहीं 1939 से 1943 तक पांच वर्ष तक रूखी सूखी खाकर अपने और अपने परिवार को जीवित रखा. 1932/31 में नमक सत्याग्रह में जेल यात्रा की 1931 में बल्देवगढ़ में आन्दोलन के लिए में कैद हुए . 1941 में 1 वर्ष की सजा भोगी और 1942 में देशव्यापी आन्दोलन में भाग लेने के कारण 11 माह को आगरा जेल में नजरबंद रहे. भैरो प्रसाद राय के देश प्रेम और देश सेवा के लिए इन्दिरा गांधी ने भारत सरकार ताम्रपत्र भेंटकर सम्मानित किया. 26 मार्च 1979 को ग्राम के सच्चे सपूत का निधन हुआ.