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किसानों की समस्याओं और समाधान पर किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्र से खास बातचीत

देश में आज जो किसानों की स्थिति है वो बेहद चिंताजनक है. किसानों को फसलों का सही दाम न मिलना, रसायनिक खेती से पर्यावरण को हो रहे नुकसान, सरकार का किसानों के प्रति रुझान, इन सारी बातों को लेकर ETV भारत ने चर्चा की. पढ़िए किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री ने इन सारे मुद्दों पर क्या कहा.

किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री से ETV भारत की खास बातचीत
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Published : Sep 22, 2019, 2:37 PM IST

रायपुर: देश में सबसे ज्यादा जनसंख्या किसान वर्ग की है. वहीं देश में अन्नदाता किसानों की स्थिति आज भी बेहतर नहीं हो पाई है. किसानों की समस्याओं से जुड़े ऐसे ही कुछ विषयों पर ETV भारत ने भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्र से खास बातचीत की.

किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री से ETV भारत की खास बातचीत

किसानों के पास खुद का साधन नहीं: मोहन मिश्र
किसानों की स्थिति के बारे में मोहन ने कहा कि किसानों को गलत दिशा में ले लिया गया है. बीज उनके हाथ में नहीं है, औजार नहीं हैं, खुद का कोई साधन नहीं है. बाहर से सामान की खरीदी के कारण किसानों का खर्च बढ़ रहा है. इसलिए किसानों को मुनाफा भी कम हो रहा है. वहीं इसका मुख्य कारण है कि किसान की जमीन बहुत से भागों में बांट रही है.

कृषि उत्पादों में ही मोलभाव क्यों: मिश्र
हम जब सब्जी खरीदने बाजार जाते हैं तो मोलभाव करते हैं. साबुन, दवाई और पेट्रोल आदि लेते समय मोलभाव नहीं किया जाता. किसान के सामानों पर ही बारगेनिंग की जाती है, किसान सीधे बाजार में अपने उत्पादों को नहीं बेचता इसलिए मिडिलमैन की जरूरत होती है. वहीं बाजार से किसान को कितना हिस्सा मिलना चाहिए उस पर सरकार नीति बना दे जिससे किसान और सरकार दोनों को फायदा हो.

'तय कीमत से कम में फसल न बिकने दे सरकार'
किसान एक जैसा फसल नहीं ऊगाता इसलिए किसान उसका रेट तय नहीं कर सकता. हमारे देश में ढाई हजार प्रकार के बैगन की खेती होती है. किसान भी एक उपभोक्ता होता है. अगर किसान बैगन उगाता है तो वह टमाटर बाहर से खरीदता है, प्याज की खेती करता है तो वह आलू खरीदता बाहर से खरीदता है. सरकार इतना तय करदे की जो फसल है वो कम से कम तय कीमत से नीचे न बिके.

रसायनिक खेती की बजह से पानी की कमी: मोहन
पानी की समस्या पर मिश्र ने कहा कि पानी कम हो रहा है इसकी बड़ी चर्चा हो रही है. पानी का जो चक्र है वो टूट गया है. इसका मुख्य कारण है रासायनिक खेती. क्योंकि रासायनिक खेती के कारण मिट्टी कमजोर हो जाती है. इस कारण मिट्टी में पानी की पकड़ भी कमजोर हो जाती है. अगर देशभर में जैविक खेती की ओर रुझान होगा और सरकार जैविक खेती को प्रोत्साहन देगी तो पानी की समस्या भी हल हो जाएगी.

'देश का हम भंडार भरेंगे लेकिन कीमत पूरी लेंगे'
'देश का हम भंडार भरेंगे लेकिन कीमत पूरी लेंगे'. इस आधार पर हमने यात्रा की शुरुआत की है. समस्याओं के बावजूद हम खेती नहीं छोड़ेंगे लेकिन हमको उचित मूल्य चाहिए इस दिशा पर हम लड़ाई लड़ रहे हैं. हर प्रांत में किसानो को जैविक खेती के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है.

'मोटे अनाज का दाम बढ़ाना सरकार का अच्छा कदम'
सरकार ने जो कर्ज माफी की है उस पर मोहन मिश्र का कहना है कि कर्जमाफी किसानों की समस्या का समाधान नहीं है. ये एक मरहम है. सरकार लाभकारी मूल्य घोषित करे. वहीं सरकार ने जो मोटे अनाज का दाम बढाया है ये अच्छा कदम है. किसान धान से हटकर और कोई फसल भी उगाए, तो उनका फायदा होगा.

'भंडारन किसानों पर छोड़ आवश्यकता घोषित करे सरकार'
ज्यादा उत्पादन होने से किसानों को बाद में फसलों को कम दामों में बेचने से किसानों को नुकसान होता है. इसके लिए सरकार पहले अपनी आवश्यकता घोषित करे. सरकार किसानों को बता दे कि फसलों की कितनी मांग है या कितनी जरूरत है और सरकार उन फसलों का अच्छा दाम भी किसानों को दे.

दूसरी बात है भंडारन की. यदि सरकार किसान को कहे कि आप अनाज का भंडारण कर लो. फिर 4 या 6 महीने के बाद हम दोबारा उसे खरीद लेंगे. इसके बदले में भंडारण का कुछ रुपए किसान को दे दिया जाएगा. इससे होगा ये कि सरकार को भंडारण करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. किसान खुद ही भंडारण कर लेंगे. इससे सरकार, देश और किसानों को फायदा होगा.

किसानों को पुराने फसल चक्र में जाने की जरूरत: मोहन मिश्र
फसल का चक्र बदल चुका है. हमे अपने पुराने चक्र में वापस जाने की जरूरत है. इंटर क्रॉप फसल लगाएं. ये प्रक्रिया पहले चलती थी जिसके कारण जमीन भी अच्छी रहती थी और लोग सेहतमंद भी रहते थे. बाजार में भाव भी सही रहता था. लेकिन आज एक ही फसल उगाने का कल्चर चला गया है. अगर फसल में कीड़ा लग जाता है तो वह सारी फसल खत्म हो जाती है. मोनोकल्चर के रूप में सरकार ने और कंपनियों ने जो प्रोत्साहन दिया है उससे हटकर फसल लगाना फायदेमंद रहेगा.

रायपुर: देश में सबसे ज्यादा जनसंख्या किसान वर्ग की है. वहीं देश में अन्नदाता किसानों की स्थिति आज भी बेहतर नहीं हो पाई है. किसानों की समस्याओं से जुड़े ऐसे ही कुछ विषयों पर ETV भारत ने भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्र से खास बातचीत की.

किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री से ETV भारत की खास बातचीत

किसानों के पास खुद का साधन नहीं: मोहन मिश्र
किसानों की स्थिति के बारे में मोहन ने कहा कि किसानों को गलत दिशा में ले लिया गया है. बीज उनके हाथ में नहीं है, औजार नहीं हैं, खुद का कोई साधन नहीं है. बाहर से सामान की खरीदी के कारण किसानों का खर्च बढ़ रहा है. इसलिए किसानों को मुनाफा भी कम हो रहा है. वहीं इसका मुख्य कारण है कि किसान की जमीन बहुत से भागों में बांट रही है.

कृषि उत्पादों में ही मोलभाव क्यों: मिश्र
हम जब सब्जी खरीदने बाजार जाते हैं तो मोलभाव करते हैं. साबुन, दवाई और पेट्रोल आदि लेते समय मोलभाव नहीं किया जाता. किसान के सामानों पर ही बारगेनिंग की जाती है, किसान सीधे बाजार में अपने उत्पादों को नहीं बेचता इसलिए मिडिलमैन की जरूरत होती है. वहीं बाजार से किसान को कितना हिस्सा मिलना चाहिए उस पर सरकार नीति बना दे जिससे किसान और सरकार दोनों को फायदा हो.

'तय कीमत से कम में फसल न बिकने दे सरकार'
किसान एक जैसा फसल नहीं ऊगाता इसलिए किसान उसका रेट तय नहीं कर सकता. हमारे देश में ढाई हजार प्रकार के बैगन की खेती होती है. किसान भी एक उपभोक्ता होता है. अगर किसान बैगन उगाता है तो वह टमाटर बाहर से खरीदता है, प्याज की खेती करता है तो वह आलू खरीदता बाहर से खरीदता है. सरकार इतना तय करदे की जो फसल है वो कम से कम तय कीमत से नीचे न बिके.

रसायनिक खेती की बजह से पानी की कमी: मोहन
पानी की समस्या पर मिश्र ने कहा कि पानी कम हो रहा है इसकी बड़ी चर्चा हो रही है. पानी का जो चक्र है वो टूट गया है. इसका मुख्य कारण है रासायनिक खेती. क्योंकि रासायनिक खेती के कारण मिट्टी कमजोर हो जाती है. इस कारण मिट्टी में पानी की पकड़ भी कमजोर हो जाती है. अगर देशभर में जैविक खेती की ओर रुझान होगा और सरकार जैविक खेती को प्रोत्साहन देगी तो पानी की समस्या भी हल हो जाएगी.

'देश का हम भंडार भरेंगे लेकिन कीमत पूरी लेंगे'
'देश का हम भंडार भरेंगे लेकिन कीमत पूरी लेंगे'. इस आधार पर हमने यात्रा की शुरुआत की है. समस्याओं के बावजूद हम खेती नहीं छोड़ेंगे लेकिन हमको उचित मूल्य चाहिए इस दिशा पर हम लड़ाई लड़ रहे हैं. हर प्रांत में किसानो को जैविक खेती के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है.

'मोटे अनाज का दाम बढ़ाना सरकार का अच्छा कदम'
सरकार ने जो कर्ज माफी की है उस पर मोहन मिश्र का कहना है कि कर्जमाफी किसानों की समस्या का समाधान नहीं है. ये एक मरहम है. सरकार लाभकारी मूल्य घोषित करे. वहीं सरकार ने जो मोटे अनाज का दाम बढाया है ये अच्छा कदम है. किसान धान से हटकर और कोई फसल भी उगाए, तो उनका फायदा होगा.

'भंडारन किसानों पर छोड़ आवश्यकता घोषित करे सरकार'
ज्यादा उत्पादन होने से किसानों को बाद में फसलों को कम दामों में बेचने से किसानों को नुकसान होता है. इसके लिए सरकार पहले अपनी आवश्यकता घोषित करे. सरकार किसानों को बता दे कि फसलों की कितनी मांग है या कितनी जरूरत है और सरकार उन फसलों का अच्छा दाम भी किसानों को दे.

दूसरी बात है भंडारन की. यदि सरकार किसान को कहे कि आप अनाज का भंडारण कर लो. फिर 4 या 6 महीने के बाद हम दोबारा उसे खरीद लेंगे. इसके बदले में भंडारण का कुछ रुपए किसान को दे दिया जाएगा. इससे होगा ये कि सरकार को भंडारण करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. किसान खुद ही भंडारण कर लेंगे. इससे सरकार, देश और किसानों को फायदा होगा.

किसानों को पुराने फसल चक्र में जाने की जरूरत: मोहन मिश्र
फसल का चक्र बदल चुका है. हमे अपने पुराने चक्र में वापस जाने की जरूरत है. इंटर क्रॉप फसल लगाएं. ये प्रक्रिया पहले चलती थी जिसके कारण जमीन भी अच्छी रहती थी और लोग सेहतमंद भी रहते थे. बाजार में भाव भी सही रहता था. लेकिन आज एक ही फसल उगाने का कल्चर चला गया है. अगर फसल में कीड़ा लग जाता है तो वह सारी फसल खत्म हो जाती है. मोनोकल्चर के रूप में सरकार ने और कंपनियों ने जो प्रोत्साहन दिया है उससे हटकर फसल लगाना फायदेमंद रहेगा.

Intro:देश में सबसे ज्यादा जनसंख्या किसान वर्ग की है वही देश में अन्नदाता किसानो की स्थितियां आज भी बेहतर नहीं हो पाई है, इन्हीं सारे विषयों पर ईटीवी भारत ने भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्र से खास बातचीत की


सवाल

नई नई तकनीकी आ गई है देश बहुत से बदलाव है लेकिन आज भी किसानों की स्थिति नहीं सुधरी है

मोहिनी मोहन मिश्र

किसानों को गलत दिशा में ले लिया गया है। पहले किसानों का आदान अपने हाथों में था इसलिए उनका कम खर्च होता था आज वह समय निकल गया है। बीज उनके हाथ में नहीं है,औजार नही है , किसान का जो खर्च होता है वह बाहर से लोगों को लगा करना पड़ता है इसलिए मुनाफा कम हो रहा है,।। वहीं इसका मुख्य कारण है कि किसान की जमीन बहुत से भागों में बांट रही है ईश्वर सरकार और किसानों को ध्यान देना होगा।।

मेहनत करने वाले किसानों को आए नहीं मिल रही है किसान से ज्यादा एजेंट मुनाफा कमा रहे हैं


मोहनी मोहन
हम जब बाजार में जाते हैं सब्जी खरीदने तो हम मोलभाव करते हैं, साबुन खरीदते दवाई खा लेते हैं वहां मोलभाव नहीं किया जाता किसान के सामानों पर ही बारगेनिंग की जाती है, किसान हर समय किसान खेती छोड़ कर बाजार में नहीं आ सकता इसलिए मिडिलमैन की जरूरत है । लेकिन उसके ऊपर भी सरकार का नियंत्रण होना चाहिए कि वह कितना कमीशन मुनाफा कमा सकता है। वही बाजार से किसान को कितना हिस्सा मिलना चाहिए उस पर सरकार नीति बना दे ताकि दोनों को फायदा होगा।


देश में सभी उत्पादों पर उत्पादन करता अपने सामान का मूल्य स्वयं तय करता है लेकिन अन्नदाता जो फसल उगाते हैं वह अपने फसल का मूल्य तय नहीं कर पाते?

क्योंकि किसान एक जैसा फसल नहीं ऊगा पाता है ,

इसलिए किसान उसका मूल्य तय नहीं कर सकता हमारे देश में ढाई हजार प्रकार के बैगन का खेती होता है कौन सा कीमत कितना होगा कौन किसान तय करेगा। उपभोक्ता भी किसान होता है और किसान भी उपभोक्ता होता है, अगर देखे किसान अगर बैगन उगाता है तो वह टमाटर बाहर से खरीदता है। किसान अगर प्यासी खेती करता है तो वह आलू खरीदता,
इसको नियंत्रण करना भी मुश्किल हो पाएगा, सरकार इतना तय करदे की जो फसल है तय कीमत से कम ना बिके महेश पर अगर कोई कानून बना दिया जाए और सरकार और व्यापारी का सहयोग मिले तब इसका सही रास्ता निकलेगा।


Body:पानी की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है वॉटर लेवल डाउन हो रहा है खेती में से क्या असर पड़ रहा है

जलवायु परिवर्तन हो रहा है पानी कम हो रहा है या बड़ी चर्चा हो रही है लेकिन पानी की कमी नही है पानी का जो चक्र है वह टूट गया है। जिसके कारण इस समस्या आ रही है । वहीं इसका मुख्य कारण भी है रासायनिक खेती, क्योंकि रासायनिक शेती के कारण मिट्टी कमजोर हो जाती है जिसमें पानी नहीं पकड़ पाता, अगर देशभर में जैविक खेती की ओर रुझान होगा और सरकार जैविक खेती को प्रोत्साहन देगी तो पानी की समस्या भी हल हो जाएगी।



वही गन्ने और धान की खेती में पानी की खपत ज्यादा बताई जाती है


यह पर्यावरणविद की चाल है, कहा जाता है कि गन्ने की खेती करने और धान की खेती करने से पानी की खपत ज्यादा होती है, टॉयलेट में लोग पानी का खपत करते है उस ओर नही सोचा जाता, हर समय किसान को क्यों दलील किया जाता है वही पर्यावरणविद को भी यह समझना पड़ेगा पानी खत्म होने के बाद भी वह पानी जाता कहां है, इसलिए गन्ने और धान के किसानों को कहना गलत चल पड़ा है।


Conclusion:भारतीय किसान संघ द्वारा देश के किसानों के लिए क्या काम किया जा रहा है

देश का हम भंडार भरेंगे लेकिन कीमत पूरी लेंगे इस आधार पर हमने यात्रा की शुरुआत की सारी समस्याओं के बावजूद हम खेती नहीं छोड़ेंगे लेकिन हमको उचित मूल्य चाहिए इस दिशा पर हम लड़ाई लड़ रहे हैं, किसान को प्रशिक्षित करते हैं जैविक खेती हर समय में हर प्रांत पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है।


सरकार द्वारा समर्थन मूल्य और ऋण माफी की जाती है किस रूप में देखते हैं

कर्ज माफी किसानों की समस्या का समाधान नहीं है यह एक मरहम है। सरकार लाभकारी मूल्य घोषित करें और खरीददारी की 23 फसल की घोषणा सरकार कर रही है लेकिन खरीदारी एक दो फसल का ही हो रहा है।
वही सरकार ने मोटे अनाज का दाम बढाया, वह किसान धान की गेहूं से हटकर अन्य फसल उगाए, तो किसान को फायदा होगा।।


किसान तय समय पर ही किसानों से खरीदी करती है बाद में वह खरीदी नहीं करती क्योंकि देखा गया है कि किसान ज्यादा उत्पादन कर देते हैं और उन्हें बाद में कम दामों पर व्यापारियों को बेचना पड़ता है


इसमें दो बातें हैं जो कि सरकार पहले अपनी आवश्यकता घोषित करें। सरकार किसानों को बता दे कि इतनी खेती करो जिसका अच्छा मूल्य किसानों को दिया जाएगा,

दूसरा विषय यह है कि सरकार को भंडारण की जरूरत है। सरकार का किसान को बोल दे आप भंडारण कर लो 4 महीने या 6 महीने के बाद हम दोबारा उसे खरीद कर लेंगे भाई भंडारण का कुछ रुपए किसान को दे दिया जाएगा। इसे हो जाएगा कि सरकार को भंडारण की जरूरत नहीं होगी किसान खुद ही से कर लेगा।। इसे सरकार देश और किसानों को फायदा होगा।।


मौसम में लगातार परिवर्तन आ रहा है फसल चक्र बदलने की आवश्यकता है क्या

फसल का चक्र परिवर्तित हो चुका है, हम वापस से पुरानी चक्र में जाना चाहते हैं, फसल में कम से कम मिश्रित फसल इंटर क्रॉप बोलते हैं, अभी दो-तीन महीने में उसे बदलकर दूसरे फसल में जाना। यह प्रक्रिया पहले चलती थी जिसके कारण जमीन भी अच्छा थी जनता का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता था। बाजार में भाव भी सही रहता था । लेकिन आज एक ही फसल उगाने का कल चला गया है। अगर सफल में कीड़ा लग जाता है तो वह सारी
खत्म हो जाती है। वही मोनोकल्चर के रूप में सरकार ने और कंपनियों ने जो प्रोत्साहन दिया है उससे हटकर फसल करना फायदे मंद रहेगा।। यह सब चीजें सरकार के पास है लेकिन सरकार द्वारा इन दिशा में प्रोत्साहन नहीं दिया जा रहा है। अगर ईश्वर सरकार प्रोत्साहित करेगी तो चीज़े अच्छे से चलेगी।।


one to one
मोहिनी मोहन मिश्र
राष्ट्रीय महामंत्री
भारतीय किसान संघ




सिद्धार्थ श्रीवासन
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