रायपुर: राज्य अलंकरण समारोह में छत्तीसगढ़ की महान विभूतियों को अलंकरण से सम्मानित किया गया है. छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से प्रतिवर्ष राज्योत्सव के दौरान अलग-अलग क्षेत्रों में विशेष और उत्कृष्ट काम कर रहे विभूतियों को यह सम्मान दिया जाता है. आचार्य रमेंद्रनाथ मिश्र को सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य के लिए पंडित रविशंकर शुक्ल अलंकरण से सम्मानित किया गया है.
ईटीवी भारत से खास चर्चा करते हुए रमेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ में काम तो काफी हुए हैं, लेकिन अभी भी काफी कुछ करना बाकी है. वे कहते हैं पूरे प्रदेश में अफसरशाही हावी रही है. 25 चक्कर लगाने के बाद भी काम नहीं होता है. बुद्धिजीवियों और सीनियर सिटीजन से अच्छे व्यवहार की उम्मीद जरूरी है.
छत्तीसगढ़ में 'गरुड़ासन' और 'मुद्रासन' का महत्व
रमेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि योजनाएं बहुत अच्छी बनती है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में कई तरह की खामियां होती हैं. प्रदेश में बुद्धिजीवियों और साहित्यकारों के साथ उतना सम्मानजनक व्यवहार नहीं होता है. अफसरशाही हावी है, जरूरी कामों के लिए भी अधिकारियों के 25 चक्कर लगाने पड़ते हैं तब जाकर काम होते हैं. तमाम तरह के कामों के लिए प्रदेश के सबसे बड़े मुख्यालय महानदी और इंद्रावती भवन में भी घुमना पड़ता है. हमारी तो यहीं अपेक्षा है कि अफसर ऐसे बुद्धिजीवियों और साहित्यकारों से अच्छे से व्यवहार करें. ऐसे वरिष्ठजनों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए, उनकी बातों को सुनना चाहिए. वे कहते हैं आज प्रदेश में 'गरुड़ासन' और 'मुद्रासन' का महत्व दिखता है. गरुड़ासन यानी 'जी हजूरी' और मुद्रासन यानी पैसे का लेनदेन.
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छतीसगढ़ का जो सपना देखा उसे बनने में अभी समय लगेगा
आचार्य मिश्र कहते हैं कि हम लोगों ने छत्तीसगढ़ राज्य का एक सपना देखा था कि अपना एक अलग राज्य होगा, यहां समृद्धि होगी, यहां तमाम तरह की खुशियां होंगी. लोगों में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक रूप से समृद्धि आएगी. सालों पहले देखे यह सपना राज्य बनने के साथ कुछ हद तक पूरा तो हुआ है, लेकिन अभी भी जो सोचा था उसे होने में काफी समय लगेगा. वे कहते हैं 20 सालों में छत्तीसगढ़ में काफी विकास हुआ है, सर्वांगीण विकास के लिए छत्तीसगढ़ में काफी काम हुए हैं. लेकिन बहुत कुछ किया जाना अभी बाकी है.
छत्तीसगढ़ के 36 गढ़ों को लिपिबद्ध करने काम भी किया
आचार्य रमेन्द्रनाथ मिश्र 50 सालों से शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष रह चुके हैं. पंडित सुंदरलाल शर्मा शोध पीठ, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी शोध पीठ, पंडित लखन लाल मिश्र स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शोध पीठ, छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी के कार्यकारी अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल एवं संस्कृत विद्या मंडल के पूर्व वरिष्ठ सदस्य और संस्कृति विभाग छत्तीसगढ़ शासन के संस्कृत विद्या मंडल के भी सदस्य रह चुके हैं. उन्होंने बताया कि 50 सालों से भी ज्यादा समय से व्याख्यान देते आ रहे हैं. 36 साल तक पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में सेवाएं दी हैं. एनसीसी, एनएसएस और रेड क्रॉस में भी लगातार छात्रों को सेवाएं देते रहे हैं. छत्तीसगढ़ के 36 गढ़ों को लिपि बद्ध करके प्रकाशित करने का काम भी आचार्य रमेंद्र नाथ मिश्र ने किया है.
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पंडित रविशंकर शुक्ल अलंकरण से रहा है खास रिश्ता
आचार्य रमेंद्रनाथ मिश्र बताते हैं कि पंडित रविशंकर शुक्ल जी के व्यक्तित्व और उनके नाम से मिले सम्मान पाकर वे काफी खुश हैं. दरअसल, पंडित शुक्ल जी से व्यक्तिगत रूप से तीन पीढ़ी का संबंध रहा है. उनसे पारिवारिक संबंध भी रहे हैं और पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में ही लंबे समय तक सेवाएं देने से उनसे जुड़ाव की अनुभूति रही है. अब उनके स्मरण में ही राज्य अलंकरण सम्मान पाना एक बेहद सुखद अनुभूति है.
राज्य सरकार हर जिलों में पुरातत्व संग्रहालय की करे स्थापना
आचार्य रमेंद्रनाथ मिश्र ने ईटीवी भारत से चर्चा करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार को भी कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में वैसे तो काम हो रहे हैं लेकिन हमारे इतिहास और धरोहरों को सहेजने के लिए बड़े लेवल पर काम करने की जरूरत है. छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना होनी चाहिए, ताकि हर जिलों में ऐतिहासिक धरोहरों को संग्रहित किया जा सके. हमारा दुर्भाग्य है कि 20 सालों में छत्तीसगढ़ में राजकीय अभिलेखागार नहीं बन पाया है. अविभाजित मध्यप्रदेश में भी 14 रजवाड़े छत्तीसगढ़ में रहे हैं. अभी भी हमारे इतिहास के महत्वपूर्ण अभिलेख मध्यप्रदेश में ही रखे हुए हैं. उन्हें छत्तीसगढ़ लाया जाना चाहिए.