रायपुर: कोरोना की दूसरी लहर पहले के मुकाबले काफी खतरनाक साबित हो रही है. लगभग दोगुने लोग इस लहर में संक्रमित हो रहे हैं. कोरोना बड़े, बुजुर्ग के साथ बच्चों में भी तेजी से फैल रहा है, हालांकि 10-12 साल से छोटे बच्चों में कोरोना का असर बहुत कम देखने को मिल रहा है. एक आंकड़े के मुताबिक कोरोना की पहली लहर में देश में 3% छोटे बच्चों संक्रमित हुए थे. वहीं कोरोना की दूसरी लहर में लगभग 6 प्रतिशत बच्चे संक्रमित हुए हैं. कोरोना की दूसरी लहर बच्चों के लिए कितनी खतरनाक है. इस दौरान बच्चों को किस तरह सुरक्षित रखा जाए. इसको लेकर ETV भारत ने रायपुर अकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की अध्यक्ष और चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर रिमझिम श्रीवास्तव से बातचीत की.
सवाल: पहले स्ट्रेन के मुकाबले दूसरे स्ट्रेन में 10-12 साल से छोटे बच्चों को कितना खतरा है ?
जवाब: जो नया वेरिएंट आया है. इसका असर बच्चों में ज्यादा देखने को मिल रहा है. इसकी खास वजह है कि नया वेरिएंट बहुत ज्यादा इनफेक्टिव है. इसका मतलब ये वेरिएंट कोरोना को जल्दी फैलता है और ज्यादा लोगों को संक्रमित करता है. पिछले साल की तुलना में इस साल नए वेरिएंट को देखें तो पिछले साल एक इंसान से 2 से 3 लोग इंफेक्टेड होते थे. लेकिन अब एक इंसान से कई लोग इंफेक्टेड हो रहे हैं. पहले जो इनक्यूवेशन पीरियड हुआ करता था वह 3 से 7 दिनों तक का था. लेकिन अब वह कम होकर 3 से 5 दिनों का हो गया है. जिससे ज्यादा संख्या में और जल्दी-जल्दी लोग संक्रमित हो रहे हैं. पिछले साल टोटल पॉपुलेशन के 3 प्रतिशत बच्चे इनफेक्ट हो रहे थे और इस बार 6 प्रतिशत के आसपास बच्चे इनफेक्ट हो रहे हैं. लेकिन यह इंफेक्शन उन्हीं बच्चों में देखा जा रहा है. जहां पर कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया जा रहा है. यानी बच्चे समूह में खेल रहे हैं, इधर-उधर घूम रहे हैं. मास्क नहीं पहन रहे हैं. तो ऐसे बच्चों में कोरोना फैल रहा है.
सवाल: पिछले 1 साल से बच्चों को घर में कैद कर दिया गया है. बच्चों पर मानसिक रूप से कितना असर पड़ रहा है ?
जवाब: कोरोना का दूसरा वैरियंट लंबे समय तक रहने वाला है. इस समय ज्यादातर बच्चे मेंटल इलनेस के शिकार हो रहे हैं. हम उम्र के बच्चों के साथ खेलने-कूदने से बच्चे का ज्यादा विकास होता है. लेकिन इस समय बच्चे घरों में है कैद है. स्कूल भी नहीं जा पा रहे हैं. जिससे बच्चों में काफी हद तक मानसिक विकार देखने को मिल रहा है. ऐसे बच्चों को पहले पिक कर उन्हें समझने की जरूरत है. लगातार अपने शिशु रोग विशेषज्ञ के साथ संपर्क में बने रहे.इसके साथ ही पेरेंट्स को बच्चों के ऊपर थोड़ा ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. घर में बच्चों के साथ पैरंट्स को घुल मिलकर रहना होगा. उनके साथ ज्यादा समय व्यतीत करें. म्यूजिक सुने, टीवी देखें. ज्यादा समय बच्चों को दें जिससे उन्हें अकेलापन महसूस ना हो.
सवाल: कोरोना सभी ग्रुप के लोगों को प्रभावित कर रहा है. ऐसे में जो छोटे बच्चे हैं और न्यू बोर्न बेबी हैं, वे कितने हाई रिस्क पर हैं?
जवाब: हाई रिस्क पर सभी हैं. चाहे वो नवजात शिशु हो या 5- 6 साल का बच्चा. छोटे बच्चों में अभी तक माइल्ड संक्रमण ही देखने को मिला है. यह भी बताया जा रहा है कि 70 प्रतिशत से 80 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं, जिनमें लक्षण ही देखने को नहीं मिला है. इसी वजह से बच्चों को सुपर स्प्रेडर कहा जाता है. क्योंकि उनमें लक्षण नहीं दिखते. वह इधर-उधर जाते हैं. अपने दोस्तों के पास जाते हैं. परिवार के सदस्यों के पास जाते हैं और उनको संक्रमित कर सकते हैं. 20-30 प्रतिशत बच्चे हैं, जिनमें लक्षण दिखते हैं. इनमें से 1-2 प्रतिशत ही बच्चे ऐसे होते है, जिन्हें हॉस्पिटल की जरूरत पड़ती है. बच्चों में माइल्ड इंफेक्शन ही देखने के लिए मिल रहा है. कुछ बच्चे होते हैं जिन्हें हॉस्पिटल में एडमिशन की जरूरत पड़ती है.
सवाल: जब माता-पिता में से कोई पॉजिटिव आ जाता है तो बच्चों को किसी रेिलेटिवस के पास रख दिया जाता है. ये कहां तक सही है ?
जवाब: पेरेंट्स को यह समझना होगा कि अगर माता या पिता में किसी में लक्षण देखने को मिलते हैं. इसका मतलब यह है कि वह लक्षण दिखने के 2 दिन पहले से उनमें संक्रमण प्रवेश कर चुका है. वह दूसरे लोगों को संक्रमित कर सकते हैं. ऐसी स्थिति में अगर पेरेंट्स बच्चों को किसी के पास भेज देते हैं तो उनका रिस्क बढ़ जाता है. अगर घर में कोई भी सदस्य पॉजिटिव आता है तो बच्चे को दूसरे घर में ना भेजें. बच्चे को आइसोलेट करके थोड़ी दूरी बनाकर रखें.
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सवाल: अगर बच्चा ज्यादा छोटा हो और मां पॉजिटिव हो ऐसे में क्या ब्रेस्टफीडिंग करवाना सेफ है. किन चीजों का खास ख्याल रखना चाहिए ?
जवाब: अगर मां पॉजिटिव है फिर भी ब्रेस्टफीडिंग बच्चों को कराना ही है. मां को मास्क पहन कर रखना है. हाथ की सफाई रखनी है. ब्रेस्टफीडिंग के बाद बच्चों से थोड़ी दूरी बनाकर रखना है. अगर मां की स्थिति बहुत ज्यादा गंभीर नहीं है. ब्रेस्ट फीडिंग करवाने के लायक है. उनको ज्यादा कमजोरी नहीं है तो ब्रेस्ट फीडिंग करवाना बहुत जरूरी है.
सवाल: सभी उम्र के लोगों में इम्युनिटी पावर अलग-अलग रहता है. वैसे में जब कोई छोटा बच्चा संक्रमित होता है तो उसका इलाज क्या अलग होता है ?
जवाब: ज्यादातर ऐसे बच्चे हैं जिनमें माइल्ड सिम्टम्स रहता है. ज्यादातर बच्चों में लक्ष्ण देखने को नहीं मिलते हैं. बुखार, सर्दी, खांसी, दस्त, खाने में रुचि कम है तो इसे नजर अंदाज ना करें. बुखार में बच्चों को पैरासेटोमॉल दें, ताकि बुखार कंट्रोल में रहे. इसके अलावा कुछ दवा देने की जरूरत नहीं है. दो तीन चीजों का ध्यान रखना है कि बच्चों के सांस की गति तेज ना हो. अगर सांस की गति तेज चल रही है या ऑक्सीजन सैचुरेशन 94% से नीचे है. बच्चा सुस्त हो रहा है तो बच्चे को तुरंत अपने डॉक्टर से सलाह लें.
सवाल: तबीयत खराब होने पर अक्सर पेरेंट्स हड़बड़ा जाते हैं. ऐसे में छोटा बच्चा अगर पॉजिटिव हो या तबीयत खराब हो तो पेरेंट्स क्या करें ?
जवाब: ऐसे समय में घबराने की जरूरत नहीं है. ऐसा लगता है कि बच्चों में संक्रमण हो चुका है. तो बच्चे का टेस्ट करवाएं और अगर टेस्ट पॉसिबल नहीं है. किसी वजह से जैसे बच्चा छोटा है या कोऑपरेटिव नहीं है या रिपोर्ट आने में टाइम लग रहा है. ऐसे किसी भी स्थिति में मान करके चले कि बच्चा संक्रमित है. अगर बच्चे को बुखार आ रहा है तो पैरासेटोमॉल दें. सर्दी खांसी के लिए डॉक्टर से सलाह लेकर कफ सिरप दे सकते हैं. फिर भी यदि बुखार कंट्रोल नहीं हो रहा है, ऑक्सीजन सैचुरेशन कम हो रहा है. बच्चा बहुत सुस्त है. खाना-पीना बिलकुल छोड़ चुका है, तो तुरंत अपने शिशु रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें.