रायपुर: छत्तीसगढ़ को भगवान राम का ननिहाल कहा जाता है. अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने की तैयारी चल रही है, तो छत्तीसगढ़ में सरकार राम वन गमन पथ को विकसित कर रही है. राम वन गमन पथ के पहले चरण में चंदखुरी शामिल है. चंदखुरी को माता कौशल्या का जन्मस्थान कहा जाता है. यहां मां कौशल्या का मंदिर है. जो सातवीं शताब्दी का माना जाता है.
माता कौशल्या की गोद में बैठे श्रीराम
करीब 126 तालाब वाले इस गांव में सात तालाबों से घिरे जलसेन तालाब के बीच प्राचीन द्वीप पर यह मंदिर बना है. यहां भगवान श्रीराम की माता कौशल्या की प्रतिमा स्थापित है और रामलला उनकी गोद में विराजमान हैं. ऐसी मान्यता है कि एक ही पत्थर में उभरी माता कौशल्या व भगवान श्रीराम की प्रतिमा गांव के जलसेन तालाब से ही प्राप्त हुई थी. पुरातत्व विभाग भले ही इसे प्रमाणित नहीं करता है, लेकिन लोगों की आस्था ने इस स्थान को मनोरम और पूजनीय बना दिया है. कौशल्या माता का मंदिर हरियाली और मंदिरों से घिरा हुआ है. भगवान शिव और नंदी की विशाला प्रतिमा यहां स्थित है. द्वार पर हनुमान जी विराजमान हैं. यहां आने वाले श्रद्धालुओं को सबसे पहले उनके दर्शन होते हैं. मन्नत का पेड़, दशरथ जी का दरबार है. इसके साथ ही सुषेण वैद्य की समाधी है.
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यहां माता कौशल्या की गोद में बैठे हैं श्रीराम
छत्तीसगढ़ सरकार माता कौशल्या के मंदिर को भव्य तरीके से डेवलप करने के साथ ही पूरे छत्तीसगढ़ में भगवान राम के वनवास की यादों को सहेजने का काम कर रही है. माता कौशल्या मंदिर को डेवलपमेंट करने के लिए 154 करोड़ की योजना तैयार की गई है. चंदखुरी राजधानी रायपुर से 25 किलोमीटर दूर स्थित है. कोरिया से लेकर सुकमा तक श्रीराम वन गमन पथ विकसित किए जाने पर काम किया जा रहा है.
वाल्मीकि रामायण में मिलता है जिक्र
इतिहासकारों का कहना है कि माता कौशल्या के पिता सुकौशल थे. उन्हें स्थानीय निवासी भानुमंत राजा के नाम से जानते हैं. छत्तीसगढ़ को पहले कौशल प्रदेश के नाम से जाना जाता था. वहीं माता सुबाला/अमृतप्रभा थीं. रामचरित मानस व वाल्मिकी रामायण में भी कौशल प्रदेश का उल्लेख मिलता है.
सरकार के कदम का स्वागत
धर्म से जुड़े हुए तमाम लोगों ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है. पंडित अरुणेश शर्मा कहते हैं कि चंद्रखुरी में माता कौशल्या का ऐतिहासिक मंदिर है. इसके ऐतिहासिक प्रमाण भी रहे हैं. छत्तीसगढ़ में राम वन गमन पथ में डेवलप करने से यहां के ऐतिहासिक महत्व की बातें देश दुनिया तक पहुंचेंगी. स्थानीय लोग कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में वर्षों से मामा, भांजे का पैर छूकर सम्मान देते हैं. छत्तीसगढ़ भगवान राम का ननिहाल है, तो वे यहां के भांजे हुए. प्रदेश में लोग इसीलिए भांजों को पैर छूकर सम्मान देते हैं.
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पथ के दोनों ओर दिखेंगी श्रीराम की कथाएं
भगवान राम का ननिहाल और माता कौशल्या की जन्मभूमि दक्षिण कौशल यानी छत्तीसगढ़ में अब सरकार राम वन गमन पथ को विकसित करने के लिए पूरी तैयारी के साथ अब काम शुरू करने जा रही है. छत्तीसगढ़ सरकार ने कैबिनेट में फैसला लेकर कोरिया से लेकर सुकमा तक बनने वाले राम वन गमन पथ को कदम-कदम पर राम मय करने की योजना पर मुहर लगा दी है. छत्तीसगढ़ शासन ने जो कार्य योजना तैयार की है उसमें तीर्थ और पर्यटनस्थलों के द्वार से लेकर लैंप पोस्ट और बेंच तक के सौंदर्यीकरण का विशेष ध्यान रखा गया है. योजना का प्रेजेंटेशन खुद प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने फाइनल किया है. जो प्रोजेक्ट फाइनल हुआ है उसके मुताबिक राम वन गमन पथ में श्रद्धालुओं और पर्यटकों को यात्रा के दौरान पग पग में भगवान श्रीराम के दर्शन होंगे. इस मार्ग के किनारे जगह-जगह संकेतिक तीर्थ स्थलों और पर्यटन स्थलों की जानकारी सहित भगवान श्रीराम के वनवास से जुड़ी कथाएं देखने और सुनने को मिलेंगी.
2 हजार 260 किलोमीटर का होगा राम वन गमन पथ
सरकार की कार्य योजना के मुताबिक राम वन गमन पथ की लंबाई कुल 2 हजार 260 किलोमीटर होगी. इस मार्ग के किनारे जगह जगह भगवान श्रीराम के वनवास से जुड़ी कथाएं भी प्रदर्शित की जाएंगी. राम वन गमन पथ के दोनों ओर विभिन्न प्रजातियों के लाखों पौधों का रोपण भी किया जाएगा, ताकि यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं और पर्यटकों के दिलो-दिमाग में प्रभु श्री राम के वनवास का एहसास बना रहे.
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इतिहास को संजोने के लिए बड़ा कदम
छत्तीसगढ़ में भगवान श्रीराम के राम वन गमन पथ को लेकर, श्रीराम वन गमन शोध संस्थान सालों से रिसर्च कर रहा है. इस संस्थान के सचिव और रिसर्चर डॉक्टर हेमु यदु ने बताया कि वे पिछले 16 सालों से छत्तीसगढ़ में राम वन गमन को लेकर रिसर्च कर रहे हैं. न केवल रिसर्च बल्कि उनकी पूरी टीम ने छत्तीसगढ़ में 24 ऋषि आश्रमों में जाकर इसके लिए अध्ययन किया है. इस अध्ययन के आधार पर ही छत्तीसगढ़ में राम वन गमन को लेकर उन्होंने एक रिपोर्ट तैयार की थी. जिसे उन्होंने पुरातत्व विभाग को सौंपा था. इस रिपोर्ट में 75 जगहों का उल्लेख है. जिसमें से 51 स्थानों को डेवलप करने का सरकार ने फैसला लिया है. डॉ. हेमु यदु का कहना है कि इन ऐतिहासिक धरोहरों को भव्यता के साथ तैयार करना हमारे इतिहास को संजोने के लिए बेहद सुखद कदम है.
पहले चरण में इन 9 स्थानों को किया गया चिन्हित
पर्यटन विभाग ने इतिहासकारों से चर्चा कर विभिन्न शोध और प्राचीन मान्यताओं के आधार पर छत्तीसगढ़ में राम वन गमन पथ के लिए 75 स्थानों को चिन्हित किया है. जिसमें प्रथम चरण में सीतामढ़ी हरचौका (कोरिया), रामगढ़ (सरगुजा), शिवरीनारायण (जांजगीर-चांपा), तुरतुरिया (बलौदाबाजार), चंदखुरी (रायपुर), राजिम (गरियाबंद), सिहावा सप्तऋषि आश्रम (धमतरी), जगदलपुर (बस्तर) और रामाराम (सुकमा) शामिल है.