रायपुर: new reservation bill of chhattisgarh छत्तीसगढ़ विधानसभा से शुक्रवार को नया आरक्षण विधेयक सर्व सम्मति से पारित हो गया. इस विधेयक के अनुसार अब छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति के लिए 32 फीसदी आरक्षण (schedule tribe), अनुसूचित जाति के लिए 13 फीसदी आरक्षण, ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण और EWS के लिए चार फीसदी रिजर्वेशन का प्रावधान किया गया है. छत्तीसगढ़ विधानसभा में यह विधेयक सर्वसम्मति से पारित हुआ. उसके बाद इस बिल को राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा गया है. आरक्षण बिल पास होने के बाद कर्मचारी संगठन और कानून के जानकारों ने आपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं. आईए जानते हैं जानकारों की राय.
"छत्तीसगढ़ सरकार ने तमिलनाडु को देखते हुए निर्णय लिया": अधिवक्ता दीपक पोपटानी का कहना है कि "सामान्यता लोगों के दिमाग में यही बात है कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं होना चाहिए. उन्होंने देश के तमिलनाडु राज्य का उदाहरण देते हुए बताया कि तमिलनाडु राज्य में 50 प्रतिशत से अधिक का आरक्षण दिया हुआ है. छत्तीसगढ़ सरकार ने तमिलनाडु को देखते हुए इस तरह का निर्णय लिया है. आगे चलकर इस मामले में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट क्या निर्णय लेती है. यह न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है. अधिवक्ता की अपनी सोच है कि अगर तमिलनाडु पैटर्न पर इस आरक्षण को लागू किया गया है. तो सरकार को ज्यादा अड़चने नहीं आएंगी."
"नौवीं अनुसूची में शामिल करने से कानूनी बाध्यता खत्म हो जाएगी": अधिवक्ता शत्रुघ्न साहू का कहना है कि "आरक्षण बिल पास होने के बाद कानूनी अड़चन की बात करें तो अगर इसे नौवीं अनुसूची में इसे शामिल किया जाता है. तो सभी कानूनी बाध्यता खत्म हो जाएंगी. इसे कोर्ट में चुनौती नहीं दिया जा सकेगा." 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण के सवाल पर उन्होंने कहा कि "सुप्रीम कोर्ट ने ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण देकर 50 प्रतिशत की सीमा को स्वयं खत्म कर दी है. ऐसे में इस बिल पर किसी प्रकार की कानूनी अड़चन नहीं आएगी."
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"प्रदेश सरकार का हाईकोर्ट के निर्देश के विपरीत फैसला": छत्तीसगढ़ तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के संरक्षक विजय कुमार झा का कहना है कि "छत्तीसगढ़ विधानसभा में आरक्षण को लेकर नया बिल पास किया गया है. वह छत्तीसगढ़ की जनता और छत्तीसगढ़ में एसटी एससी और ओबीसी की जनसंख्या और क्षेत्रवार स्थिति को देखते हुए आरक्षण को लेकर नया बिल लाया गया है. इस बिल के आने के बाद संवैधानिक व्यवहारिक और विधायिका की जो समस्याएं आएंगी. इसके पहले हाई कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को निर्देशित किया था 58 प्रतिशत आरक्षण को घटाकर 50 प्रतिशत किया जाए. पदोन्नति भर्ती साक्षात्कार जैसे काम व्यवहारिक कठिनाई के कारण रुक गए थे. अधिकारियों को इस बात का डर था, कि कहीं हमारा कलम ना फंस जाए. ऐसे में प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के निर्देश के विपरीत प्रदेश की जनता के विरोध को देखते हुए 76 प्रतिशत आरक्षण विधेयक पारित किया है."