रायपुर: शादी का सीजन चल रहा है. शादी में अधिकतर रस्मों में मिट्टी के बर्तन की जरूरत पड़ती है. हालांकि शादी सीजन में रायपुर के बाजारों की कोरोना ने रौनक ही छीन ली है. कोरोना का असर कुम्हार परिवार पर भी पड़ा है. रोजी-रोटी भी पूरी तरह से मार खा गई है. मिट्टी के बने पात्र को शादी-ब्याह के लिए शुद्ध और पवित्र माना जाता है शादी में कलश, दीया और चुकिया का उपयोग किया जाता है. लेकिन कोरोना मिट्टी के बर्तन व्यापारियों के चेहरे से रौनक ही गायब कर दिया (Potter family disappointed in Raipur) है.
बाजार से रौनक गायब कुम्हार परिवारों में निराशा
राजधानी के कई चौक चौराहों और बाजारों में कुम्हार परिवार द्वारा मिट्टी से बनाए पात्रों का उपयोग शादी-ब्याह के सीजन में किया जाता है. मिट्टी से बने इन पात्रों को कुम्हार परिवारों के द्वारा अच्छी तरह से और सुंदर रंग-बिरंगे तरीके से सजाया जाता है. ताकि एक बार में ग्राहकों की नजर उस पर पड़ जाए. लेकिन मौजूदा समय में कोरोना के कारण इन दुकानों से रौनक गायब हो चुकी है. परिवार जैसे-तैसे चल सके इसलिए मिट्टी के बने पात्रों को सजाकर रखा गया है. हालांकि ग्राहकी न होने के कारण कुम्हार परिवारों में अपने व्यवसाय को लेकर चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती है.
16 संस्कारों में विवाह महत्वपूर्ण संस्कार
शादी-ब्याह के सीजन में उपयोग किए जाने वाले मिट्टी के बने पात्रों को लेकर हमने जब महामाया मंदिर के पंडित मनोज शुक्ला से बात की. उन्होंने बताया कि 16 संस्कारों में विवाह को सबसे बड़ा संस्कार माना गया है, जिसमें मिट्टी के बर्तन को शुद्ध और पवित्र माना जाता है. जिसका प्रचलन प्राचीन समय से चला आ रहा है.
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मिट्टी के दीए का धार्मिक महत्व
हिंदू परंपरा में ऐसी मान्यता है कि मिट्टी का दीपक जलाने से घर में सुख समृद्धि और शांति का वास होता है. मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक माना जाता है. मंगल साहस पराक्रम में वृद्धि करता है और तेल को शनि का प्रतीक माना जाता है. शनि को न्याय और भाग्य का देवता कहा जाता है. मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपा प्राप्त होती है.