रायपुर: छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था खेती-किसानी और कृषि पर आधारित व्यवसाय पर निर्भर है. प्रदेश में मछली पालकों को लाभ पहुंचाने के लिए मछली पालन को भी कृषि का दर्जा दिया जा रहा है. इसके लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने बजट में विशेष प्रावधान भी किया है. कृषि बजट में बीते सालों की तुलना में 13 फीसदी तक की वृद्धि की गई है. कृषि विभाग का बजट इस वित्त वर्ष में 4 हजार 604 करोड़ 53 लाख है.
छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है. अलग-अलग किस्म के साथ धान उत्पादन के लिए छत्तीसगढ़ देशभर में प्रचलित है. धान के साथ राज्य के किसान अब मछली उत्पादन में नये रिकॉर्ड बना रहे हैं. प्रदेश में आधुनिक तकनीक से हर साल लगभग 6 से 7 लाख मीट्रिक टन मछली का उत्पादन हो रहा है. बीते 2 साल में प्रदेश में 9 फीसदी तक की वृद्धि के साथ मछली उत्पादन 4.89 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 5.31 लाख मीट्रिक हो गया है. देशभर में मछली उत्पादन के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ 6वें नंबर पर है. छत्तीसगढ़ से कई राज्यों में मछली की सप्लाई हो रही है. यहां से ओडिशा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल और दिल्ली तक मछली की सप्लाई होती है.
उत्पादन और सप्लाई में अंतर होने से होगा नुकसान
कोविड-19 और लॉकडाउन का असर अब छत्तीसगढ़ में मछली पालन पर पड़ने लगा है. मछली उत्पादकों का कहना है कि कोविड-19 और लंबे समय से चल रहे लॉकडाउन से मछली पालन पर बड़ा असर हुआ है. दरअसल, मछली का प्रोडक्शन वैज्ञानिक तरीके से किया जा रहा है. ऐसे में कम समय में मछली का बहुत ज्यादा प्रोडक्शन हो जाता है. मछली को पानी के बाहर नहीं रख सकते हैं. ऐसे में जगह की कमी की समस्या सामने आ रही है. तालाब में भी मछलियों को लंबे समय तक नहीं रख सकते हैं. मछलियों के उत्पादन के साथ ही सप्लाई को नियंत्रण में रखना होता है. ज्यादातर मछली हाट बाजार में ही बेची जाती है. लॉकडाउन में छोटे से लेकर बड़े हाट-बाजार और मॉल बगैरह बंद है. ऐसे में मछलियों को बेचने में परेशानी हो रही है. दूसरे राज्यों से भी लॉकडाउन के कारण डिमांड काफी कम है. जिसके कारण मछलियों को तालाब में ही रखना पड़ रहा और तालाब में जगह की कमी हो रही है. इसके अलावा तालाब में पान बदलने की भी समस्या सामने आ रही है. एक ही पानी में ज्यादा दिनों तक मछली को नहीं रखा जा सकता है.
बिना ब्याज के ऋण और बिजली बिल में छूट
छत्तीसगढ़ में मछली पालन को बड़े व्यवसाय के रूप में उभारने के लिए यहां की सरकारों ने कई काम भी किए हैं. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मछली पालन को राज्य में कृषि दर्जा दिया है. इस वित्त वर्ष बजट में भी इसे शामिल कर लिया गया है. मछली पालन को कृषि का दर्जा मिलने के बाद मछली पालक कॉपरेटिव बैंक मछली पालन के लिए ब्याज मुक्त ऋण ले सकते हैं. मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए बाकी किसानों को दी जाने वाली बिजली दर में छूट की तहत मछली पालन के लिए भी छूट दी जा रही है.
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आने वाले दिनों में और बुरे हो सकते हैं हालात
भारत सरकार की ओर से विश्व मात्स्यिकी दिवस पर नई दिल्ली में आयोजित समारोह में छत्तीसगढ़ के एमएम फिश सीड कल्टीवेशन को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार से नवाजा गया है. इसके संचालक दीपंकर मंडल बताते हैं, कोविड-19 और लॉकडाउन के चलते सभी व्यापार-व्यवसाय पर असर पड़ा है. मछली बाजार को लेकर दीपंकर कहते हैं कि मछली ओपन मार्केट में बिकती है. ज्यादातर मछली चिकन-मटन की दुकान के बगल में ही बिकती है. अब लॉकडाउन की वजह से मार्केट खुल नहीं रहा है. ऐसे में मछली व्यापार पर इसका असर पड़ रहा है. पिछले साल के मुकाबले इस साल मछली दूसरे राज्यों या अपने ही राज्य में नहीं निकल रहा है. जिससे उत्पादन भी ठप पड़ा है. उत्पादन ठप पड़ने के कारण मछली पालकों को आने वाले दिनों में भी भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है.
आने वाले दिनों में बाजार पर पड़ेगा सीधा असर
मछली पालन में कोरोना से बड़ा असर हुआ है. मछली पालकों को मार्केटिंग में बड़ी दिक्कतें आ रही है. मार्केटिंग बंद होने के कारण मछली पालकों को फाइनेंसियल प्रॉब्लम (आर्थिक समस्या) से जूझना पड़ रहा है. मछली पालकों को स्टॉकिंग में भी समस्या हो रही है. मछली स्टॉक करने के लिए जगह की कमी के कारण नए उत्पादन के लिए बीज भी नहीं डाल पा रहे हैं.
मछली दाना के दामों में मनमानी महंगाई
मछली पालन कर रहे सुमन पाल बताते हैं, मछली पालन का काम पूरी तरह से वैज्ञानिक तरीके से होता है. मछली पलकों के सामने लॉकडाउन एक बड़ी मुसीबत लेकर आई है. मछली को खाना हर रोज उपलब्ध कराना होता है. पानी को ट्रीटमेंट करके मछली ज्यादा से ज्यादा उत्पादन करने पर काम किया जाता है. पानी को ट्रीटमेंट कर हाई टेक्नोलॉजी से मछली पालन किया जा रहा है. लॉकडाउन में सबसे ज्यादा मछली पालकों के सामने मछलियों को दाना देने में दिक्कत हो रही है. मार्केट में कालाबाजारी और स्टॉक करने के चलते मछली के दानों की कीमतों में काफी वृद्धि हो गई है.
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उत्पादन के क्षेत्र में बना रिकॉर्ड
छत्तीसगढ़ में मछली पालक मछली पालन के क्षेत्र में नई तकनीक को अपनाते हुए सफलता हासिल कर रहे हैं. मत्स्य बीज उत्पादन के क्षेत्र में भी प्रदेश आत्मनिर्भर हो गया है. 2 सालों में ही प्रदेश में 13 फीसदी तक की वृद्धि के साथ मत्स्य बीज उत्पादन 251 करोड़ स्टैंडर्ड फ्राई से 267 करोड़ स्टैंडर्ड फ्राई का उत्पादन किया है. देश में राज्य का मत्स्य बीज उत्पादन के क्षेत्र में 6वां स्थान है. यहां के किसान प्रदेश में आवश्यक मत्स्य बीज की उपलब्धता पूरी करने के बाद मध्यप्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और बिहार को भी आपूर्ति कर रहे हैं.
मछली पालन में छत्तीसगढ़ की सफलता
- छत्तीसगढ़ में मछली पालक 6 से 7 लाख मीट्रिक टन मछली उत्पादन कर रहे हैं. 2 साल में मछली उत्पादन में 9 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. मछली उत्पादन के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ देश में 6वें स्थान पर है.
- छत्तीसगढ़ में केज कल्चर मछली पालन हो रहा है. इस तकनीक से जलाशयों में 63434 मीटर के केज बनाकर तेजी से बढ़ने वाली मछली जैसे पन्गेशियस और तेलापिया का पालन किया जाता है.
- प्रति केज 3000 से 5000 किलो मछली का उत्पादन किया जाता है. प्रदेश के अबतक 11 जिलों में 1400 केज बनाए गए हैं.
- हसदेव बांगो कोरबा में 1000 केज की परियोजना से खरीदी की गई है. इन्हें स्थापित कर प्रति हितग्राही 5-5 केज की इकाई 11 हितग्राही को आवंटित की जा रही है.
- केज स्थानीय अनुसूचित जनजाति के मत्स्य पालकों को दिया जा रहा है. सरकार की तरफ से 40 से 60 फीसदी तक अनुदान भी दिया जा रहा है. डूबान क्षेत्र में आने वाले व्यक्तियों को प्राथमिकता दी जा रही है.