रायपुर: कुछ दिन पहले महासमंद के किसान ने आत्महत्या कर ली. कारण था फसल खराब होना और उसके बाद लगातार कर्ज बढ़ना. अब ऐसे ही हालात उत्तर छत्तीसगढ़ के करीब 10 जिलों में बन रहे हैं. किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खिचने लगी हैं. वजह साफ है इन जिलों में बारिश का आंकड़ा बहुत कम है.
क्या कहते हैं मौसम विभाग के आंकड़े: मौसम विभाग कहता है कि इस बार छत्तीसगढ़ में 11 जून को मानसून पहुंचा. 13 जून तक मानसून ने पूरे छत्तीसगढ़ को कवर कर लिया था. सामान्य तौर पर ये तारीख 21 जून रहती है. पर जितनी जल्दी मानसून आया उतनी राहत अब मिलती नहीं दिख रही है. जल्दी आने के बाद भी अभी तक कुल 1142.1 मिलीमीटर बारिश हुई है. अब तक 1107.7 मिमी बारिश हो जानी चाहिए थी. यानि ये सामान्य से 03 फीसदी कम है. ये बात तो रही कुल बारिश की. मौसम विभाग के अधिकारी बताते हैं कि कुल बारिश का आंकड़े ये नहीं कहते हैं कि हर जिले में बारिश सामान्य है. यानी ऐसा हो सकता है कि किसी जिले में बारिश कम हो किसी में ज्यादा. बस यहीं पर मौसम की मार दिखाई देती है. अगर इन आंकड़ों को विस्तार से जिलेवार देखा जाए तो पता चलता है कि 10 जिले ऐसे हैं जहां बारिश 20 से 60 फीसदी तक सामान्य से कम है.
कम बारिश वाले जिले कौन से हैं ? : मौसम विभाग द्वारा जारी किए गए डेटा को देखा जाए तो सबसे कम बारिश उत्तर छत्तीसगढ़ के जिलों में हुई है. सरगुजा ऐसा जिला है, जहां बारिश -70 फीसदी है. यानि एक तरीके से समझा जाए तो यहां इंद्रदेव मेहरबान अभी तक नहीं हुए हैं. इसके बाद जशपुर में -57 फीसदी,बलरामपुर में -47 फीसदी और सूरजपुर में -44 फीसदी का आंकड़ा सामने आया है. यानि एक दूसरे से सटे इन जिलों में सूखे की संभावना बन रही है. वहीं रायपुर, राजनांदगांव, बलौद और बीजापुर में बारिश सामान्य से ज्यादा है.इसे अच्छे से समझने के लिए आप ग्राफिक्स पर भी एक नजर डाल सकते हैं.
कहां के किसान परेशान? : करीब धान की 20 हजार किस्में छत्तीसगढ़ में होती हैं. इसी वजह से इसे 'धान का कटोरा' कहा जाता है. ये कटोरा भरता मैदानी इलाकों से है. यानि रायपुर, धमतरी, बेमेतरा बिलासपुर आदि जिलों से. बारिश का सकंट इस इलाके में भी है. रायपुर में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है लेकिन चिंता की बात जांजगीर की है. यहां -37 फीसदी कम बारिश है वहीं बेमेतरा में -30 फीसदी बारिश का आंकड़ा अभी तक का है. इनके अलावा कोरबा और रायगढ़ में भी सकंट के बादल मंडरा रहे हैं. ये सकंट के बादल ज्यादा दिन तक रहे तो धान का उत्पादन प्रभावित होना लगभग तय माना जा रहा है. ईटीवी भारत ने गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के किसानों से बात की. इस जिले से खेतों में दरारें पड़ने की तस्वीरें सामने आईं है. खेतों में बुवाई हुई. थरहा भी मजबूती से खड़ा हुआ. 15 दिनों से बारिश नहीं होने की वजह से खेतों में दरारें पड़ गई हैं. किसान जोहान सिंह ने बताया, 'पानी गिर नहीं रहा है. इस वजह से अब फसल का होना संभव नहीं दिख रहा है.'
बुवाई करने से पहले हम सोच रहे थे कि ना करें. अब धान का थरहा खेत में है. पर सूख रहा है.-संतोष कुमार, किसान
अब किसान क्या कर रहे हैं ? : सामान्य धान की किस्म को बुवाई के बाद पकने तक 125 से 150 दिन लगते हैं. मानसून सामान्य रहता है तो ज्यादातर किसान इसी चक्र पर जाते हैं. अब मानसून में बारिश लेट होने के कारण किसान कम समय में पकने वाली धान की किस्म के बारे में सोच रहे हैं. कृषि विभाग के अधिकारी भी यही सलाह दे रहे हैं.
जब कम बारिश होती है तो कतार बोनी या फिर खुर्रा बोनी करनी चाहिए. पर अब हम कम अवधि वाली फसलें लगाने की सलाह दे रहे हैं - एस के सिंह, एसडीओ, कृषि
छत्तीसगढ़ में धान का रकबा इस बार रिकार्ड बनाएगा या नहीं ये आने वाले 15 दिनों में पता चल जाएगा. इसी से उत्पादन भी तय होगा. किसानों की फसल खराब हो गई तो वो आगे क्या फसल बीमा योजना का लाभ ले पाएंगे.