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SPECIAL: कभी इनके बनाए दीये बढ़ाते थे राजघरानों की शान, आज नहीं हैं कद्रदान - sukma news

कुम्हार जो दीया बनाकर दूसरों की जिंदगी में रोशनी भरते हैं, उनके खुद के घर रोशन नहीं हो पा रहे हैं. वजह इलेक्ट्रॉनिक लाइट्स की चकाचौंध है.

दीया तले अंधेरा
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Published : Oct 18, 2019, 2:19 PM IST

सुकमा: 'दीया तले अंधेरा' ऐसा लगता है कि ये कहावत मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हारों के लिए ही लिखी गई हो. ये हुनरमंद मिट्टी से खूबसूरत दीये बनाते हैं लेकिन इनकी मेहनत जैसे उसी मिट्टी में मिल जाती हो. नई तकनीक और इलेक्ट्रॉनिक आइट्म की चकाचौंध में इन दीयों की चमक फीकी पड़ गई है और कुम्हार के घर मायूसी ने घर कर लिया है.

पैकेज

दीपावली का समय कुम्हारों के लिए कभी खुशियां लेकर आता था. दीये से लेकर घरों में पूजा के लिए गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां इन्हीं के हाथों से गढ़ कर आती थीं. लेकिन भारतीय बाजार में चाइनीज उत्पादों ने ऐसी सेंध लगाई कि कुम्हारों के दिन फिर नहीं बहुरे. वे कहते हैं कि चाइनीज झालर ने उनकी रोजी-रोटी छीन ली है.

'70 घर कुम्हारों के'
जिला मुख्यालय के कुम्हाररास वार्ड में करीब 70 घर कुम्हारों के हैं. गिने चुने कुम्हार समुदाय के कुछ लोग आज इस पारंपरिक व्यवसाय से जुड़े हैं. जिनके चाक की रफ्तार भी धीरे-धीरे थमने लगी है. लेकिन आज भी मिट्टी का आकार बदल कर अपने परिवार की जिंदगी बदलने की जद्दोजहद में लगे हैं.

'70 सालों से कर रहे ये काम'
अपने पारंपरिक व्यवसाय से जुड़े बुजुर्ग मांगी राम ने बताया कि समय के साथ मिट्टी के दीए व मूर्तियां की मांग घटती जा रही है. उनका परिवार करीब 70 सालों से मिट्टी के बर्तन और दिये बनाने का काम करते आ रहा है. दादा-परदादा के जमाने में वे दिए राजघरानों में दिया करते थे. वे कहते हैं कि आज बाजार में मिट्टी के दीये कि मांग कम हुई है. लोग औपचारिकता के तौर पर लोग भगवान की पूजा व अन्य धार्मिक कार्यों में इस्तेमाल करने लगे हैं.

'परंपरा का निर्वाह करने वाली'
इसी व्यवसाय से जुड़े एक अन्य कुम्हार फूलचंद ने बताया कि पारंपरिक और कई वर्षों से चले आ रहे इस व्यवसाय को छोड़ना उनके लिए बेहद कठिन है. हालांकि आज की नई पीढ़ी इस कारोबार से दूरी बनाए हुए है. फूलचंद का मानना है कि मिट्टी के बर्तन बनाने में मेहनत अधिक है, जिसे नई पीढ़ी करना पसंद नहीं करती है.

'मेहनत ज्यादा और मुनाफा कम'
युवा सोनू राम का मानना है कि बाप-दादाओं के कारोबार को आगे बढ़ाने में बहुत कठिनाइयां हैं. नई पीढ़ी मिट्टी का काम छोड़ अन्य रोजगार से जुड़ रहे हैं. आज इस कारोबार में मेहनत ज्यादा और मुनाफा कम है.

ETV भारत एक बार फिर आपस मिट्टी के दीये खरीदने की अपील करता है.

सुकमा: 'दीया तले अंधेरा' ऐसा लगता है कि ये कहावत मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हारों के लिए ही लिखी गई हो. ये हुनरमंद मिट्टी से खूबसूरत दीये बनाते हैं लेकिन इनकी मेहनत जैसे उसी मिट्टी में मिल जाती हो. नई तकनीक और इलेक्ट्रॉनिक आइट्म की चकाचौंध में इन दीयों की चमक फीकी पड़ गई है और कुम्हार के घर मायूसी ने घर कर लिया है.

पैकेज

दीपावली का समय कुम्हारों के लिए कभी खुशियां लेकर आता था. दीये से लेकर घरों में पूजा के लिए गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां इन्हीं के हाथों से गढ़ कर आती थीं. लेकिन भारतीय बाजार में चाइनीज उत्पादों ने ऐसी सेंध लगाई कि कुम्हारों के दिन फिर नहीं बहुरे. वे कहते हैं कि चाइनीज झालर ने उनकी रोजी-रोटी छीन ली है.

'70 घर कुम्हारों के'
जिला मुख्यालय के कुम्हाररास वार्ड में करीब 70 घर कुम्हारों के हैं. गिने चुने कुम्हार समुदाय के कुछ लोग आज इस पारंपरिक व्यवसाय से जुड़े हैं. जिनके चाक की रफ्तार भी धीरे-धीरे थमने लगी है. लेकिन आज भी मिट्टी का आकार बदल कर अपने परिवार की जिंदगी बदलने की जद्दोजहद में लगे हैं.

'70 सालों से कर रहे ये काम'
अपने पारंपरिक व्यवसाय से जुड़े बुजुर्ग मांगी राम ने बताया कि समय के साथ मिट्टी के दीए व मूर्तियां की मांग घटती जा रही है. उनका परिवार करीब 70 सालों से मिट्टी के बर्तन और दिये बनाने का काम करते आ रहा है. दादा-परदादा के जमाने में वे दिए राजघरानों में दिया करते थे. वे कहते हैं कि आज बाजार में मिट्टी के दीये कि मांग कम हुई है. लोग औपचारिकता के तौर पर लोग भगवान की पूजा व अन्य धार्मिक कार्यों में इस्तेमाल करने लगे हैं.

'परंपरा का निर्वाह करने वाली'
इसी व्यवसाय से जुड़े एक अन्य कुम्हार फूलचंद ने बताया कि पारंपरिक और कई वर्षों से चले आ रहे इस व्यवसाय को छोड़ना उनके लिए बेहद कठिन है. हालांकि आज की नई पीढ़ी इस कारोबार से दूरी बनाए हुए है. फूलचंद का मानना है कि मिट्टी के बर्तन बनाने में मेहनत अधिक है, जिसे नई पीढ़ी करना पसंद नहीं करती है.

'मेहनत ज्यादा और मुनाफा कम'
युवा सोनू राम का मानना है कि बाप-दादाओं के कारोबार को आगे बढ़ाने में बहुत कठिनाइयां हैं. नई पीढ़ी मिट्टी का काम छोड़ अन्य रोजगार से जुड़ रहे हैं. आज इस कारोबार में मेहनत ज्यादा और मुनाफा कम है.

ETV भारत एक बार फिर आपस मिट्टी के दीये खरीदने की अपील करता है.

Intro:ट्रेडिशनल दीवाली मनाए तो कुम्हारों के घर भी रोशन होंगे

सुकमा. 'दीपक तले अंधेरा' का मुहावरा मिट्टी का दीपक बनाने वाली कुम्हार कौम के लिए सटीक बैठ रहा है। सामान्य सी दिखने वाली मिट्टी को अपने हाथों के हुनर से असामान्य स्वरूप देने वालों की मेहनत खुद मिट्टी में मिलती जा रही है। नई तकनीक और इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं की बढ़ती लोकप्रियता के बीच कुम्हारों का अस्तित्व कहीं खोता जा रहा है।

दीपावली का समय कुम्हारों के लिए कभी स्वर्णिम समय हुआ करता था। दिये से लेकर घरों में पूजा के लिए गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां इन्हीं के हाथों से गढ़ कर आती थी। लेकिन भारतीय बाजार में चाइनीस उत्पादों ने ऐसी सेंध लगाई की कुम्हारों के दिन फिर ना बहूरे।

आधुनिकता के दौर में परंपराएं भी पीछे छूटने लगी है कभी दिवाली पर मिट्टी के दीए से रोशन होने वाले घर आज चाइनीस बल्ब झालरों से सजाये जाने लगे हैं। इससे मिट्टी के दीए से दूसरों के घरों को रोशन करने वाले कुम्हार के खुद की जिंदगी अंधेरे में गुम होने लगी है।


Body:जिला मुख्यालय के कुम्हाररास वार्ड में करीब 70 घर कुम्हारों के हैं। गिने चुने कुम्हार समुदाय आज इस पारंपरिक व्यवसाय से जुड़े हैं। जिनके चाक की रफ्तार भी धीरे-धीरे थमने लगी है। आज भी मिट्टी का आकार बदल कर अपने परिवार की जिंदगी बदलने की जद्दोजहद में लगे हैं।

अपनी पारंपरिक व्यवसाय से जुड़े बुजुर्ग मांगी राम ने बताया कि समय के साथ मिट्टी के दीए व मूर्तियां की मांग घटती जा रही है। उनका परवार करीब 70 सालों से मिट्टी के बर्तन और दिये बनाने का काम करते आ रहे है। दादा-परदादा के जमाने मे वे दिए राजघरानो में दिया करते थे। आज आधुनिक युग मे चीनी झालरों के आने से उनका पुस्तैनी व्यवसाय चौपट हुआ है। आज बाजार में मिट्टी के दिये कि मांग कम हुई है। लोग औपचारिकता के तौर पर लोग भगवान की पूजा व अन्य धार्मिक कार्यों में इस्तेमाल करने लगे है।




Conclusion:इसी व्यवसाय से जुड़े एक अन्य कुम्हार फूलचंद ने बताया कि पारंपरिक और कई वर्षों से चले आ रहे इस व्यवसाय को छोड़ना उनके लिए बेहद कठिन है। हालांकि आज की नई पीढ़ी इस कारोबार से दूरी बनाए हुए है। फूलचंद का मानना है कि मिट्टी के बर्तन बनाने में मेहनत अधिक है जिसे नई पीढ़ी करना पसंद नही करती है।

युवा सोनू राम का मानना है कि बाप-दादाओ के कारोबार को आगे बढ़ाने में बहुत कठिनाइयां है। नई पीढ़ी मिट्टी का काम छोड़ अन्य रोजगार से जुड़ रहे हैं। आज इस कारोबार में मेहनत ज्यादा और मुनाफा कम है।

बाइट 01: मंगी राम, कुम्हार
बाइट 02: सोनू राम(युवा)
बाइट 03: फूलचंद (बगैर कपड़े के)

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