रायपुर: छत्तीसगढ़ के रहने वाले चित्रसेन साहू (Chitrasen Sahu) ने रूस के माउंट एलब्रुस (Russia's Mount Elbrus) की चोटी पर चढ़कर देश का तिरंगा लहराया. रूस में स्थित माउंट एलब्रुस पर्वत की उंचाई 5642 मीटर (18510 फीट) हैं. चित्रसेन इस पर्वत पर फतह करने वाले देश के पहले डबल एंप्यूटी पर्वतारोही (Amputee climber) (दोनों पैर कृत्रिम) हैं. मिशन इंक्लुसन (Mission Inclusion) के तहत सेन ने यह तीसरी ऊंची चोटी फतह की है.
जानें चित्रसेन साहू का इतिहास
इस पहले चित्रसेन साहू ने माउंट किलिमंजारो और माउंट कोजीअस्को पर फतह कर नेशनल रिकॉर्ड कायम किया था. माउंट किलिमंजारो अफ्रीका महाद्वीप और माउंट कोजिअसको ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के सबसे ऊंची पर्वत है. चित्रसेन यह उपलब्धि हासिल करने वाले देश के प्रथम डबल एंप्यूटी हैं.
चित्रसेन साहू ने बताया कि दोनों पैर कृत्रिम होने की वजह से पर्वतारोहण में बहुत कठिनाइयां आती है. यह अपने आप में बहुत बड़ा चैलेंज है, जिसको उन्होंने फतह किया है. इनका लक्ष्य है कि सात महाद्वीप के साथ शिखर फतह करना है, जिसमें से एलब्रुस के साथ 3 लक्ष्य उन्होंने फतह कर लिया है.
दिक्कतों के बाद भी अडिग रहे
चित्रसेन ने बताया कि जब वे पर्वतारोहण कर रहे थे, उस दौरान मौसम अच्छा नहीं था. -15 से -25 डिग्री तापमान के साथ पर्वतारोहण करना और 50-70 किमी प्रति घंटा के रफ्तार से हवाई तूफान और स्नो फॉल इस अभियान में कठिनाई ला रही थी. हमने अपनी तैयारी पूरी कर रखी थी. अभियान पूरा करने का जज्बा बनाए रखा.
चित्रसेन साहू पर्वतारोही होने के साथ-साथ राष्ट्रीय व्हीलचेयर बास्केटबॉल और राष्ट्रीय पैरा स्विमिंग के खिलाड़ी, ब्लेड रनर हैं. उन्होंने विकलांगों के ड्राइविंग लाइसेंस के लिए भी बहुत लंबी लड़ाई लड़ी है और शासन की अन्य नीतियों को अनुकूल बनाने के लिए काम कर रहे हैं. चित्रसेन साहू ने 14,000 फीट से स्काई डाइविंग करने का रिकॉर्ड भी बनाया है और सर्टिफाइड स्कूबा ड्राइवर हैं.
घर में लगाइये सालों तक महकने वाले 'खस' के पर्दे, दूर होंगे मच्छर, कॉक्रोज और छिपकली
चित्रसेन ने बताया कि 'मेरे लिए पर्वतारोहण का निर्णय आसान नहीं था, क्योंकि भारत में अबतक कोई भी डबल एंप्यूटी पर्वतारोही नहीं है, जो पर्वतारोहण करता हो. उन्होंने बताया कि सबके लिए स्वतंत्रता के मायने क्या हैं ? वह बाहर घूमे-फिरे, कोई रोक-टोक ना हो, वह कहीं भी आ-जा सके और मुझे घूमना और ट्रैकिंग बहुत पसंद था. साल 2014 में दुर्घटना में दोनों पैर खोने के बाद मेरे मन में भी यही स्वतंत्रता का भाव था, जो मुझे धीरे-धीरे पर्वतारोहण के क्षेत्र में ले गया. छोटे-छोटे ट्रैकिंग में जाना शुरू किया तो आत्मविश्वास बढ़ता गया'. कृत्रिम पैर होने से आपको एक सामान्य व्यक्ति से 65% ज्यादा ताकत और ऊर्जा लगती है. माउंटेन में जब अधिक ऊंचाई पर होते हैं तो ऑक्सीजन लेवल भी कम होता है. आप बाकी लोगों की तुलना में थोड़े धीरे होते हैं तो यह और मुश्किल हो जाता है. लेकिन मनोबल ऊंचा रहे तो सब संभव है'.
'जिंदगी पर्वत के समान है'
सेन ने बताया कि 'जिंदगी पर्वत के समान है. सुख-दुख लगा रहता है. उतार-चढ़ाव आते रहते हैं. हमें इसे एक सामान्य प्रक्रिया मानकर लगातार संघर्ष करना है और आगे बढ़ना है. किसी भी समस्या को लेकर समाधान के बारे में एक सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ें तो निराकरण जरूर संभव है'.
चित्रसेन साहू ने बताया कि 'उन्होंने हमेशा से ही अपने लोगों के हक के लिए काम किया है ताकि उन लोगों के साथ भेदभाव ना हो. शरीर के किसी अंग का ना होना, कोई शर्म की बात नहीं है और ना ही ये हमारी सफलता के आड़े आता है. बस जरूरत है तो अपने अंदर की झिझक को खत्म कर आगे आने की. हम किसी से कम नहीं. ना ही हम अलग हैं तो बर्ताव में फर्क क्यों करना? हमें दया की नहीं आप सबके साथ एक समान जिन्दगी जीने का हक चाहिए'.
मिशन इंक्लूसन के पीछे हमारा एक मात्र उद्देश्य है सशक्तिकरण और जागरूकता, जो लोग जन्म से या किसी दुर्घटना के बाद अपने किसी शरीर के हिस्से को गवां बैठते हैं. उन्हें सामाजिक स्वीकृति दिलाना, ताकि उन्हें समानता प्राप्त हो. वह किसी असमानता के शिकार ना हों.