रायपुर : विद्युत क्षेत्र में बड़े सुधार के उद्देश्य से बिजली संशोधन बिल 2020 का मसौदा तैयार कर लिया गया है. इस बिल में सब्सिडी वितरण के लिए ‘प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण’ की प्रणाली का प्रयोग, विद्युत वितरण कंपनियों की वैधता, लागत आधारित दर, विद्युत अनुबंध प्रवर्तन प्राधिकरण की स्थापना और नियामकीय व्यवस्था को मजबूत बनाने को प्रमुख सुधार के तौर पर देखा जा रहा है.
हालांकि कुछ लोगों का ये भी मानना है कि इससे बिजली के क्षेत्र में राज्य सरकारों के बजाए केंद्र सरकार के पास अधिकार ज्यादा हो जाएंगे. इसके अलावा इस बिल से निजीकरण को बढ़ावा मिलता है. इन तमाम विषयों पर ETV भारत ने छत्तीसगढ़ के पूर्व प्रमुख सचिव और राज्य विद्युत नियामक आयोग के संस्थापक अध्यक्ष सुयोग्य मिश्र से बात की और समझने की कोशिश की कि इस बिल से क्या बदलाव आने वाला है.
प्रश्न- आपसे समझना चाहेंगे कि इस संशोधन बिल के माध्यम से क्या सुधार करने का प्रयास है.
जवाब- 2003 में इस सेक्टर में जो परिवर्तन को लेकर कदम उठाए गए थे, उसे लेकर चलते हुए 17 साल बीत गए हैं इन वर्षों में अनुभव हुए हैं उसके आधार पर ही संशोधन का मसौदा तैयार किया गया है. हालांकि इसमें कुछ और बातें भी जोड़ी गई हैं. दरअसल, तब ये सोच थी कि विद्युत के शुल्क को उसकी लागत के बराबर लाया जाए लेकिन ये संभव नहीं हो पाया इसके चलते उतना विकास नहीं हो पाया, जिसका अनुमान लगाया गया था और उस अनुपात में निजी पूंजी निवेश भी नहीं हो पाया है.
प्रश्न- कुछ राज्यों ने इस बिल के मसौदे को लेकर आपत्ति जताई है, कुछ इंजीनियर्स एसोसिएशन भी इसके विरोध में हैं. इनका आरोप है कि इससे निजीकरण को बढ़ावा मिलेगा.
जवाब- निजीकरण इस सेक्टर के लिए कोई नई बात नहीं है. पहले भी निजी कंपनियों को वितरण के अधिकार दिए जा गए हैं. इसमें कुछ नई बातें हैं, जिससे राज्य सरकार के अधिकार को केंद्र सरकार को हस्तांतरित किया जा सकता है, जैसे राज्य नियामक आयोग का चयन भारत सरकार द्वारा नियुक्त समिति ही करेगी. इस समिति में सुप्रीम कोर्ट के एक जज और कुछ सदस्य रहेंगे. अभी तक चयन और नियुक्ति दोनों का अधिकार राज्य सरकार के पास था. इसके अलावा इंजीनियर्स की आपत्ति जिस पर हो सकती है, वो ये है कि इस बिल में एक सब डिस्ट्रीब्यूशन लाइसेंस का प्रावधान रखा गया है.
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इसके अलावा बिजली का टैरिफ है, उसे केंद्र सरकार की नीतियों के आधार पर तय किया जाएगा. इसे लेकर भी राज्य सरकारें विरोध जता सकती हैं. इस बिल को लेकर बात कही जा रही है कि इससे टैरिफ को लेकर संशय बढ़ सकता है, लेकिन इस बिल में भी साफ कहा गया है कि राज्य सरकारें जो भी रियायत देना चाहती है, वो सीधे यानी डायरेक्ट बेनिफिट सिस्टम के तहत दे.
प्रश्न- क्या इससे राज्य विद्युत नियामक आयोग और राज्य सरकार की शक्तियां कम हो जाएंगी.
जवाब- बिल्कुल इससे कुछ शक्तियां तो कम होंगी, जैसे नियामक आयोग के चयन का मामला है.
प्रश्न- पड़ोसी देशों को बिजली बेचने के लिए प्रोजेक्ट पर काम हो सकता है. इसे आप किस तरह देखते हैं.
जवाब- बिजली अगर हमारे पास है, तो दूसरे देशों को बेचने में लाभ ही होगा. इसके लिए केन्द्रीय समिति को अधिकार दिया गया है.
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प्रश्न- जहां निजीकरण की बात होती है, वहां छंटनी और नौकरी पर खतरे की बात भी उठने लगती है, क्या इस बिल के साथ भी कुछ इस तरह की बातें जुड़ी हैं.
जवाब- नहीं मुझे नहीं लगता कि इस तरह की बातें इस बिल के साथ हैं, लेकिन जहां सब डिस्ट्रिब्यूशन की बात आती है, वहां कार्यरत कर्मचारियों पर असर पड़ सकता है, लेकिन इतना बड़ा परिवर्तन नहीं है जिसकी कर्मचारियों को चिंता करनी चाहिए.
प्रश्न- किसानों को मिलने वाली रियायत पर क्या असर पड़ सकता है?
जवाब- इसमें प्रावधान है कि ये सरकार सीधा हितग्राहियों को लाभ दे सकती है. जैसे कुकिंग गैस के क्षेत्र में दिया जा रहा है.
प्रश्न- इस बिल के संसद में पारित होने में क्या दिक्कतें आ सकती हैं.
जवाब- ये राजनीतिक मामला है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि बहुत ज्यादा आपत्ति की गुंजाइश है.
प्रश्न- इस बिल से आम उपभोक्ता के लिए क्या बदलाव आएगा, क्या बिजली आपूर्ति अच्छी हो जाएगी
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जवाब- मुझे नहीं लगता कि आम उपभोक्ता को कोई बड़ा फर्क इससे पड़ने वाला है.