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स्वतंत्रता संग्राम में छत्तीसगढ़ी साहित्य और काव्य का कितना है योगदान ? - litterateurs of chhattisgarh

भारत की आजादी की जंग में छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों का विशेष योगदान रहा है. आइए जानते हैं किन छत्तीसगढ़ी साहित्यकारों ने स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई है.

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स्वतंत्रता संग्राम में छत्तीसगढ़ी साहित्य और काव्य का कितना है योगदान ?
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Published : Aug 14, 2021, 8:56 PM IST

Updated : Aug 14, 2021, 11:27 PM IST

रायपुर: देश के स्वतंत्रता आंदोलन की बात की जाए तो अक्सर कुछ बड़े आंदोलन करने वाले नेताओं का नाम सामने आता है. लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन की 75 वीं वर्षगाठ के मौके पर हम आपको छत्तीसगढ़ के ऐसे साहित्यकारो से रूबरू करवाने जा रहे हैं , जिनके काव्य और साहित्य ने प्रदेशवासियों के भीतर स्वाधीनता की अलख जगाई, और स्वतंत्रता संग्राम के लिए लोगों को जागरूक किया लेखक और अधिवक्ता संजीव तिवारी ने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन में छत्तीसगढ़ी साहित्य की दो धाराएं नजर आती हैं. एक धारा महात्मा गांधी की स्वराज और नरम वादी चिंतन वहीं दूसरी क्रांतिकारी कवियों वाली धारा नजर आती है. छत्तीसगढ़ में महात्मा गांधी के नरम वादी सिद्धांत ज्यादा नजर आता है. जिसमें कहा जाता है पंडित सुंदरलाल शर्मा जेल से एक हस्तलिखित सप्ताहिक पत्रिका निकालते थे उसमें वह स्वराज के गीत लिखते थे. महात्मा गांधी की प्रशंसा लिखते थे और भारत वंदना भी लिखा जाता था अपनी अस्मिता को जगाने वाली बातें भी उस पत्रिका में होती थी.

लोचन प्रसाद पांडे की अहम भूमिका

संजीव तिवारी ने बताया कि इसके बाद लोचन प्रसाद पांडे का नाम आता है. जिन्होंने स्वराज आंदोलन और स्वदेशी अपनाओ और खादी अपनाओ पर आधारित कई गीत लिखे थे.नरम वादी कवियों में पंडित द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है. उन्होंने महात्मा गांधी के कार्यों की बड़ाई अपनी कविताओं में की है. खादी आंदोलन स्वदेशी आंदोलन के लिए कविताएं लिखी,इनके आगे के कवियों में केयूर भूषण का नाम लिया जाता है जिन्होंने भारत वंदना, गांधी वंदना जैसे गीत लिखे हैं.

संजीव तिवारी, लेखक

देश की आजादी का गवाह बरगद का पेड़!

क्रांतिकारी कवियों में सबसे पहला नाम कुंज बिहारी चौबे का शामिल

क्रांतिकारी कवियों में सबसे पहले नाम लिया जाता है कवि कुंज बिहारी चौबे जी का. कुंज बिहारी चौबे के बारे में बताया जाता है कि वे व्यक्तिगत रूप से क्रांतिकारी थे.उन्होंने जो कविताएं लिखी वह क्रांतिकारी कविताएं लिखीं. अपनी कविताओं में वे अंग्रेजो के खिलाफ सीधा लिखते थे. इसके साथ ही वे महात्मा गांधी के बारे में भी लिखते थे. वे कहते थे कि एक न एक दिन महात्मा गांधी की बात मानी जाएगी और स्वराज आएगा.

चितरंजन कर, साहित्यकार

कवि पुरुषोत्तम लाल का योगदान

खरोरा के एक कवि पुरुषोत्तम लाल ने कांग्रेसी आल्हा लिखा और छत्तीसगढ़ स्वराज नामक गीत लिखा, कांग्रेसी आल्हा में उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस के कार्यों का उल्लेख किया और महात्मा गांधी का उल्लेख किया और ऐसे सभी चीजें लिखकर उन्होंने स्वतंत्रता में आंदोलन के प्रति लोगों में भाव जगाया.

शशांक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

कोदूराम दलित

एक अच्छे जन कवि के रूप में कोदूराम दलित थे. उनकी कविताएं दुर्ग से निकलकर पूरे छत्तीसगढ़ पर छाई. स्वतंत्रता आंदोलन के लिए कारगर रूप से उनकी कविताएं प्रभावी रही. उनकी बहुत सी कविताएं हैं उनकी कविताओं में स्वतंत्रता आंदोलन और भारतीय अस्मिता को जगाने का लगातार प्रयास होता रहा. उनकी एक कविता "चलव जेल संगवारी " बहुत ज्यादा फेमस हुई .

चितरंजन कर ने दी जानकारी

साहित्यकार चितरंजन कर ने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन में छत्तीसगढ़ी साहित्य और काव्य का योगदान उसी तरह रहा है जैसे बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के आनंद मठ से निकला वंदे मातरम जो पूरे देश का नारा बन गया. छत्तीसगढ़ में बहुत सारे कवि हुए हैं पंडित सुंदरलाल शर्मा की छतीसगढ़ी दान लीला केवल स्वतंत्रता के लिए लोगों को जगाने के मकसद से लिखी गई रचना है. उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन में भी लोक साहित्य में भी जन जागरण, छत्तीसगढ़ में महात्मा गांधी का बहुत ज्यादा प्रभाव रहा है. यहां के लोकगीतों में महात्मा गांधी की चर्चा है. अंग्रेजों और विदेशियों के खिलाफ जो आंदोलन चलाए गए उसमें साहित्य का बहुत बड़ा हाथ रहा है. छत्तीसगढ़ के जितने भी कवि और साहित्यकार रहे हैं उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए लोगों को जगाने का कार्य किया और बिना लोगों के जन जागरूक किए यह राष्ट्रीय आंदोलन सफल नहीं हो सकता था. इसमें छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों और कवियों की बहुत बड़ी भूमिका रही है.

स्वतंत्रता आंदोलन में जनजातीय बोलियों का योगदान

वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा ने बताया कि, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में पूरा देश एकजुट होकर लड़ रहा था. कुछ शांतिपूर्ण तरीके से सत्याग्रह कर रहे थे, कुछ लोग सशस्त्र क्रांति कर रहे थे. उसी तरह देश में एक साहित्यिक और बौद्धिक संघर्ष भी चल रही थी. कविताएं-कहानी और नाटक के माध्यम से लोगों को जन जागरूक करने का कार्य किया जा रहा था. छत्तीसगढ़ में जनजातीय क्षेत्रों की स्थानीय बोली है. भतरी,हल्बी, गोंडी, अबुझमाड़िया में भी स्वतंत्रता संग्राम के लिए लोगों ने गीत लिखे और बहुत प्रचलित हुए. सन 1910 में गुंडाधुर का भूमकाम हुआ था उसे भूमकाम गीत के तैर पर जाना जाता था जो भतरी में था. शशांक शर्मा ने कहा कि लोगों को लगता है कि कुछ प्रमुख नेताओं ने देश को आजादी दिलाई लेकिन वन क्षेत्र में बैठे जनजाति ,आदिवासी बंधुओं ने भी अपनी लेखनी और अपनी रचना के जरिए आजादी की जंग में अहम योगदान दिया.

रायपुर: देश के स्वतंत्रता आंदोलन की बात की जाए तो अक्सर कुछ बड़े आंदोलन करने वाले नेताओं का नाम सामने आता है. लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन की 75 वीं वर्षगाठ के मौके पर हम आपको छत्तीसगढ़ के ऐसे साहित्यकारो से रूबरू करवाने जा रहे हैं , जिनके काव्य और साहित्य ने प्रदेशवासियों के भीतर स्वाधीनता की अलख जगाई, और स्वतंत्रता संग्राम के लिए लोगों को जागरूक किया लेखक और अधिवक्ता संजीव तिवारी ने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन में छत्तीसगढ़ी साहित्य की दो धाराएं नजर आती हैं. एक धारा महात्मा गांधी की स्वराज और नरम वादी चिंतन वहीं दूसरी क्रांतिकारी कवियों वाली धारा नजर आती है. छत्तीसगढ़ में महात्मा गांधी के नरम वादी सिद्धांत ज्यादा नजर आता है. जिसमें कहा जाता है पंडित सुंदरलाल शर्मा जेल से एक हस्तलिखित सप्ताहिक पत्रिका निकालते थे उसमें वह स्वराज के गीत लिखते थे. महात्मा गांधी की प्रशंसा लिखते थे और भारत वंदना भी लिखा जाता था अपनी अस्मिता को जगाने वाली बातें भी उस पत्रिका में होती थी.

लोचन प्रसाद पांडे की अहम भूमिका

संजीव तिवारी ने बताया कि इसके बाद लोचन प्रसाद पांडे का नाम आता है. जिन्होंने स्वराज आंदोलन और स्वदेशी अपनाओ और खादी अपनाओ पर आधारित कई गीत लिखे थे.नरम वादी कवियों में पंडित द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है. उन्होंने महात्मा गांधी के कार्यों की बड़ाई अपनी कविताओं में की है. खादी आंदोलन स्वदेशी आंदोलन के लिए कविताएं लिखी,इनके आगे के कवियों में केयूर भूषण का नाम लिया जाता है जिन्होंने भारत वंदना, गांधी वंदना जैसे गीत लिखे हैं.

संजीव तिवारी, लेखक

देश की आजादी का गवाह बरगद का पेड़!

क्रांतिकारी कवियों में सबसे पहला नाम कुंज बिहारी चौबे का शामिल

क्रांतिकारी कवियों में सबसे पहले नाम लिया जाता है कवि कुंज बिहारी चौबे जी का. कुंज बिहारी चौबे के बारे में बताया जाता है कि वे व्यक्तिगत रूप से क्रांतिकारी थे.उन्होंने जो कविताएं लिखी वह क्रांतिकारी कविताएं लिखीं. अपनी कविताओं में वे अंग्रेजो के खिलाफ सीधा लिखते थे. इसके साथ ही वे महात्मा गांधी के बारे में भी लिखते थे. वे कहते थे कि एक न एक दिन महात्मा गांधी की बात मानी जाएगी और स्वराज आएगा.

चितरंजन कर, साहित्यकार

कवि पुरुषोत्तम लाल का योगदान

खरोरा के एक कवि पुरुषोत्तम लाल ने कांग्रेसी आल्हा लिखा और छत्तीसगढ़ स्वराज नामक गीत लिखा, कांग्रेसी आल्हा में उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस के कार्यों का उल्लेख किया और महात्मा गांधी का उल्लेख किया और ऐसे सभी चीजें लिखकर उन्होंने स्वतंत्रता में आंदोलन के प्रति लोगों में भाव जगाया.

शशांक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

कोदूराम दलित

एक अच्छे जन कवि के रूप में कोदूराम दलित थे. उनकी कविताएं दुर्ग से निकलकर पूरे छत्तीसगढ़ पर छाई. स्वतंत्रता आंदोलन के लिए कारगर रूप से उनकी कविताएं प्रभावी रही. उनकी बहुत सी कविताएं हैं उनकी कविताओं में स्वतंत्रता आंदोलन और भारतीय अस्मिता को जगाने का लगातार प्रयास होता रहा. उनकी एक कविता "चलव जेल संगवारी " बहुत ज्यादा फेमस हुई .

चितरंजन कर ने दी जानकारी

साहित्यकार चितरंजन कर ने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन में छत्तीसगढ़ी साहित्य और काव्य का योगदान उसी तरह रहा है जैसे बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के आनंद मठ से निकला वंदे मातरम जो पूरे देश का नारा बन गया. छत्तीसगढ़ में बहुत सारे कवि हुए हैं पंडित सुंदरलाल शर्मा की छतीसगढ़ी दान लीला केवल स्वतंत्रता के लिए लोगों को जगाने के मकसद से लिखी गई रचना है. उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन में भी लोक साहित्य में भी जन जागरण, छत्तीसगढ़ में महात्मा गांधी का बहुत ज्यादा प्रभाव रहा है. यहां के लोकगीतों में महात्मा गांधी की चर्चा है. अंग्रेजों और विदेशियों के खिलाफ जो आंदोलन चलाए गए उसमें साहित्य का बहुत बड़ा हाथ रहा है. छत्तीसगढ़ के जितने भी कवि और साहित्यकार रहे हैं उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए लोगों को जगाने का कार्य किया और बिना लोगों के जन जागरूक किए यह राष्ट्रीय आंदोलन सफल नहीं हो सकता था. इसमें छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों और कवियों की बहुत बड़ी भूमिका रही है.

स्वतंत्रता आंदोलन में जनजातीय बोलियों का योगदान

वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा ने बताया कि, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में पूरा देश एकजुट होकर लड़ रहा था. कुछ शांतिपूर्ण तरीके से सत्याग्रह कर रहे थे, कुछ लोग सशस्त्र क्रांति कर रहे थे. उसी तरह देश में एक साहित्यिक और बौद्धिक संघर्ष भी चल रही थी. कविताएं-कहानी और नाटक के माध्यम से लोगों को जन जागरूक करने का कार्य किया जा रहा था. छत्तीसगढ़ में जनजातीय क्षेत्रों की स्थानीय बोली है. भतरी,हल्बी, गोंडी, अबुझमाड़िया में भी स्वतंत्रता संग्राम के लिए लोगों ने गीत लिखे और बहुत प्रचलित हुए. सन 1910 में गुंडाधुर का भूमकाम हुआ था उसे भूमकाम गीत के तैर पर जाना जाता था जो भतरी में था. शशांक शर्मा ने कहा कि लोगों को लगता है कि कुछ प्रमुख नेताओं ने देश को आजादी दिलाई लेकिन वन क्षेत्र में बैठे जनजाति ,आदिवासी बंधुओं ने भी अपनी लेखनी और अपनी रचना के जरिए आजादी की जंग में अहम योगदान दिया.

Last Updated : Aug 14, 2021, 11:27 PM IST
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