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छत्तीसगढ़ में प्रशासनिक फेरबदल पर गरमाई सियासत !

छत्तीसगढ़ में अधिकारियों के तबादले को लेकर भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने (Congress BJP face to face on administrative transfer in Chhattisgarh) है. भाजपा तबादलों को सरकार का उद्योग बता रही है.

Politics heated up on administrative reshuffle
प्रशासनिक फेरबदल पर गरमाई सियासत
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Published : Jul 10, 2022, 6:03 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ में पिछले दो माह में बड़ी प्रशासनिक फेरबदल की गई है. राज्य सरकार की ओर से कई आईएएस और आईपीएस अफसरों का तबादला किया गया है. बदलाव की जद में 19 जिलों के कलेक्टर सहित 37 आईएएस और 9 आईपीएस आए हैं. इनमें से कुछ अधिकारियों को नई जिम्मेदारी दी गई. वहीं, कुछ अफसरों का जिला बदल दिया गया है. शासन की ओर से किए गए बदलाव को लेकर सियासी आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है. भारतीय जनता पार्टी इसे उद्योग बताकर सरकार पर निशाना साध रही है. वहीं, कांग्रेस के नेता इसे सामान्य प्रक्रिया मानते (Congress BJP face to face on administrative transfer in Chhattisgarh ) हैं.

छत्तीसगढ़ में प्रशासनिक फेरबदल पर गरमाई सियासत

"तबादला उद्योग बना छत्तीसगढ़" : भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव ने कहा, " किसी भी प्रदेश में जब प्रशासनिक व्यवस्था अच्छी होती है. तब इसे सरकार के मुखिया के बेहतर कार्यप्रणाली से जोड़कर देखा जाता है. पिछले साढ़े तीन वर्षों में कांग्रेस सरकार आने के बाद प्रदेश में तबादला एक उद्योग के रूप में परिवर्तित हो गया है. एक अधिकारी जब एक जिले से दूसरे जिले जाकर वहां की कार्यप्रणाली को समझता है. तब तक उसका तबादला दूसरे जिले में कर दिया जा रहा है. तबादला व्यवस्था नहीं बल्कि उद्योग में परिवर्तित हो गया है. इसका ही परिणाम है कि प्रदेश में अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है. इन तबादलों के पीछे लेन-देन की कहानी भी प्रदेश के लोगों के बीच चर्चा का विषय है. ऐसी व्यवस्था रहेगी तो अधिकारी भी अपने कर्तव्यों को लेकर इमानदार नहीं रह सकते. लचर कानून व्यवस्था की वजह से प्रदेश में निर्भया जैसा कांड हो रहा है. सरकार ने प्रशासनिक व्यवस्था को बेच कर रख दिया है. हर व्यवस्था में अच्छे लोग भी होते हैं, लेकिन सरकार की ओर से दिए गए अवैध टास्क को जो अफसर पूरा नहीं कर पाते, उन्हें प्रताड़ित कर दूसरी जगह भेजा जा रहा है."

यह भी पढ़ें: पत्रकार रोहित रंजन की गिरफ्तारी पर छत्तीसगढ़ में सियासी घमासान !

"फेरबदल एक सामान्य प्रक्रिया": प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने श्रीवास्तव के आरोपों को सिरे से खारिज किया है. शुक्ला ने कहा, "प्रशासनिक फेरबदल सामान्य प्रक्रिया है. समय-समय पर सरकार अधिकारियों के काम-काज के आधार पर फेरबदल करती रहती है. कुछ लोगों को नई जिम्मेदारी भी दी जाती है. जनहित से जुड़े कामों को न कर पाने वाले लोगों को स्थानांतरित किया जाता है. ये कोई नई बात नहीं है. भाजपा को यह फिजुल का फेरबदल लग रहा होगा. उन्होंने 15 साल के अपने शासनकाल में इन प्रक्रियाओं को फिजुल का ही समझा था या फिर भ्रष्टाचार करके अधिकारियों का ट्रांसफर किया था. प्रदेश में कांग्रेस सरकार आने के बाद मुख्यमंत्री ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि किसी भी व्यक्ति को जिस काम की जिम्मेदारी दी जाए उसे उस काम को पूरा करने की जवाबदारी भी लेनी होगी. अगर कोई काम नहीं कर पा रहा तो उसे उस पद पर ज्यादा दिनों तक नहीं टिकने दिया जाएगा."

तबादले पर चुनावी कयास: राजनीतिक गलियारों में फेरबदल को लेकर अलग-अलग कयास भी लगाए जा रहे हैं. चर्चा इस बात की भी हो रही है कि क्या यह फेरबदल करीब एक साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर किया जा रहा है. क्योंकि चुनाव के दौरान बहुत से कलेक्टरों का तीन साल उस जिले में पूरा हो जाता है, जिसकी वजह से चुनाव के समय उन्हें हटाना पड़ता. इस तबादले के बाद अब नए जिलों की कमान संभालने वाले कलेक्टरों को चुनाव से पहले बदलना नहीं पड़ेगा.

रायपुर: छत्तीसगढ़ में पिछले दो माह में बड़ी प्रशासनिक फेरबदल की गई है. राज्य सरकार की ओर से कई आईएएस और आईपीएस अफसरों का तबादला किया गया है. बदलाव की जद में 19 जिलों के कलेक्टर सहित 37 आईएएस और 9 आईपीएस आए हैं. इनमें से कुछ अधिकारियों को नई जिम्मेदारी दी गई. वहीं, कुछ अफसरों का जिला बदल दिया गया है. शासन की ओर से किए गए बदलाव को लेकर सियासी आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है. भारतीय जनता पार्टी इसे उद्योग बताकर सरकार पर निशाना साध रही है. वहीं, कांग्रेस के नेता इसे सामान्य प्रक्रिया मानते (Congress BJP face to face on administrative transfer in Chhattisgarh ) हैं.

छत्तीसगढ़ में प्रशासनिक फेरबदल पर गरमाई सियासत

"तबादला उद्योग बना छत्तीसगढ़" : भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव ने कहा, " किसी भी प्रदेश में जब प्रशासनिक व्यवस्था अच्छी होती है. तब इसे सरकार के मुखिया के बेहतर कार्यप्रणाली से जोड़कर देखा जाता है. पिछले साढ़े तीन वर्षों में कांग्रेस सरकार आने के बाद प्रदेश में तबादला एक उद्योग के रूप में परिवर्तित हो गया है. एक अधिकारी जब एक जिले से दूसरे जिले जाकर वहां की कार्यप्रणाली को समझता है. तब तक उसका तबादला दूसरे जिले में कर दिया जा रहा है. तबादला व्यवस्था नहीं बल्कि उद्योग में परिवर्तित हो गया है. इसका ही परिणाम है कि प्रदेश में अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है. इन तबादलों के पीछे लेन-देन की कहानी भी प्रदेश के लोगों के बीच चर्चा का विषय है. ऐसी व्यवस्था रहेगी तो अधिकारी भी अपने कर्तव्यों को लेकर इमानदार नहीं रह सकते. लचर कानून व्यवस्था की वजह से प्रदेश में निर्भया जैसा कांड हो रहा है. सरकार ने प्रशासनिक व्यवस्था को बेच कर रख दिया है. हर व्यवस्था में अच्छे लोग भी होते हैं, लेकिन सरकार की ओर से दिए गए अवैध टास्क को जो अफसर पूरा नहीं कर पाते, उन्हें प्रताड़ित कर दूसरी जगह भेजा जा रहा है."

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"फेरबदल एक सामान्य प्रक्रिया": प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने श्रीवास्तव के आरोपों को सिरे से खारिज किया है. शुक्ला ने कहा, "प्रशासनिक फेरबदल सामान्य प्रक्रिया है. समय-समय पर सरकार अधिकारियों के काम-काज के आधार पर फेरबदल करती रहती है. कुछ लोगों को नई जिम्मेदारी भी दी जाती है. जनहित से जुड़े कामों को न कर पाने वाले लोगों को स्थानांतरित किया जाता है. ये कोई नई बात नहीं है. भाजपा को यह फिजुल का फेरबदल लग रहा होगा. उन्होंने 15 साल के अपने शासनकाल में इन प्रक्रियाओं को फिजुल का ही समझा था या फिर भ्रष्टाचार करके अधिकारियों का ट्रांसफर किया था. प्रदेश में कांग्रेस सरकार आने के बाद मुख्यमंत्री ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि किसी भी व्यक्ति को जिस काम की जिम्मेदारी दी जाए उसे उस काम को पूरा करने की जवाबदारी भी लेनी होगी. अगर कोई काम नहीं कर पा रहा तो उसे उस पद पर ज्यादा दिनों तक नहीं टिकने दिया जाएगा."

तबादले पर चुनावी कयास: राजनीतिक गलियारों में फेरबदल को लेकर अलग-अलग कयास भी लगाए जा रहे हैं. चर्चा इस बात की भी हो रही है कि क्या यह फेरबदल करीब एक साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर किया जा रहा है. क्योंकि चुनाव के दौरान बहुत से कलेक्टरों का तीन साल उस जिले में पूरा हो जाता है, जिसकी वजह से चुनाव के समय उन्हें हटाना पड़ता. इस तबादले के बाद अब नए जिलों की कमान संभालने वाले कलेक्टरों को चुनाव से पहले बदलना नहीं पड़ेगा.

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