रायपुर: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में नक्सली हमले में शहीद दस डीआरजी जवानों में से 5 जवान नक्सलवाद को छोड़कर फोर्स में शामिल हुए थे. इसकी जानकारी बस्तर IG सुंदरराज पी ने दी. हैड कॉन्सटेबल जोगा सोढ़ी, मुन्ना कड़ती, कॉन्सटेबल हरिराम मंडावी, जोगा कवासी और गोपनीय सैनिक राजूराम करतम पूर्व नक्सली रह चुके थे. नक्सल नीति के तहत इन्होंने सरेंडर किया. बाद में शासन की तरफ से इन्हें डीआरजी में शामिल होने का मौका दिया गया. बुधवार को नक्सली हमले में ये पांचों शहीद हो गए.
जोगा सोढ़ी: 35 साल के जोगा सोढ़ी ने साल 2017 में नक्सलवाद छोड़कर समाज की मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया. 10 फरवरी साल 2017 को जोगा सोढ़ी गोपनीय सैनिक के रूप में डीआरजी में शामिल हुआ. धीरे धीरे नक्सल मोर्चे में जोगा के इनपुट्स और उसकी मौजूदगी ने लाल आतंक की कमर तोड़ दी. जिसके बाद जोगा को डीआरजी में प्रमोशन मिला. जोगा प्रधान आरक्षक बन चुका था.
मुन्ना कड़ती: 40 वर्षीय मुन्ना कड़ती 2015 से पहले लाल आतंक का साथ देता रहा. उसके खिलाफ इनाम भी दर्ज थे. लेकिन 2015 में मुन्ना ने आत्म समर्पण किया. सरेंडर करने के 2 साल बाद 14 फरवरी 2017 को मुन्ना कड़ती डीआरजी में भर्ती हुआ. फोर्स में भर्ती होने के बाद ट्रेनिंग मिली. बहादुरी और काम की वजह से प्रधान आरक्षक का पद भी मिला. मुन्ना डीआरजी के कई ऑपरेशनों में शामिल रहा.
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कांस्टेबल हरिराम मंडावी: दंतेवाड़ा जिले के कटेकल्याण क्षेत्र के सूरनार गांव का रहने वाला हरिराम मंडावी नक्सली था और पेदारास एलओसी का सदस्य था. पांच लाख का इनामी रह चुका हरिराम मंडावी साल 2020 में डीआरजी में भर्ती हुआ. नक्सलियों से लोहा लिया. कई मोर्चों पर नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब दिया, लेकिन बुधवार को अपने ही पूर्व साथियों की कायराना करतूत का शिकार हो गया.
जोगा कवासी: दंतेवाड़ा के बड़े गादम गांव का रहने वाला जोगा कवासी की उम्र सिर्फ 22 साल थी. नक्सलियों के साथ कुछ समय तक काम करने के बाद मार्च 2023 में जोगा ने सरेंडर किया और डीआरजी में शामिल था.
राजूराम करतम: 25 साल का राजूराम करतम दंतेवाड़ा जिले का रहने वाला था. कई सालों तक नक्सली सदस्य के रूप में काम करता रहा. साल 2022 में राजूराम डीआरजी में शामिल हुआ. इस दौरान राजूराम ने कई ऑपरेशन में नक्सलियों से लड़ाई की. बुधवार को दंतेवाड़ा ब्लास्ट में राजूराम करतम शहीद हो गया.
Chhattisgarh Naxalites Attack: जानिए क्या है डीआरजी, जिससे खौफ खाते हैं नक्सली
डीआरजी क्या है: छत्तीसगढ़ में नक्सली गतिविधियों पर लगाम कसने के लिए डीआरजी ( डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) का गठन किया गया था. इसके गठन की शुरुआत सबसे पहले कांकेर और नारायणपुर में 2008 में की गई. हालांकि कुछ जिलों में नक्सल विरोधी अभियान के लिए उस जिले के पुलिस अधीक्षक एटीएस के नाम से फोर्स का संचालन कर रहे थे. कांकेर और नारायणपुर में डीआरजी के जवानों को लगातार मिलती सफलता के बाद नक्सल क्षेत्र के अन्य जिलों में भी डीआरजी के नाम से इसका संचालन शुरू कर दिया. बीजापुर और बस्तर में डीआरजी का 2013 में गठन किया. 2014 में सुकमा और कोंडागांव में यह अस्तित्व में आया. इसके बाद 2015 में दंतेवाड़ा, राजनांदगांव और कवर्धा जिले में भी इसकी शुरुआत की गई.