रायपुर/बिलासपुर: छत्तीसगढ़ में जंगल काटकर अपात्रों को बांटे जा रहे वन अधिकार पट्टों पर हाईकोर्ट ने दो महीने के लिए रोक लगा दी है. मामले में नितिन सिंघवी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसके बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के मुख्य न्यााधीश पीआर रामचन्द्र मेनन और न्यायमूर्ति पीपी साहू की बैच ने याचिका को स्वीकारते हुए वन अधिकार पट्टे बांटने पर रोक लगा दी है.
बता दें कि नितिन सिंघवी की याचिका में बताया गया है कि वन अधिकार पट्टा प्राप्त करने के लिए ग्रामीणों ने वनों को काटकर वन अधिकार पट्टा प्राप्त कर रहे हैं, जिस पर रोक लगाया जाए. इसके लिए पहले भी रोक लगाने और वन क्षेत्रों में पट्टे बांटने के लिए कोर्ट से वर्जित किया गया था, लेकिन छत्तीसगढ़ में जंगलों की अवैध कटाई जारी है.
पढ़ें : HC में शिक्षकों की भर्ती के मामले में सुनवाई, अदालत ने शासन से 4 हफ्ते में मांगा जवाब
वनों की अवैध कटाई हो रही
याचिका में बताया गया कि वन अधिकार पट्टा पाने के लिए ग्रामीण वनों को काटकर वन अधिकार पट्टा प्राप्त कर रहे हैं. कोर्ट को बताया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय में सीतानदी अभ्यारण्य में वन भैसों के संरक्षण के लिए सर्वोच्च न्यायालय में टीएन गोधावर्मन की याचिका पर साल 2012 में वन भैसों को संरक्षण देने और वनों में से कब्जों को हटाने के आदेश दिए थे, इसके बाद भी वनों की अवैध कटाई हो रही है.
सरकार ने कोई सकारात्मक पहल नहीं की
वहीं कोर्ट ने कहा कि इन मुद्दों पर सरकार ने कोई सकारात्मक पहल नहीं की है. छत्तीसगढ़ वन विकास निगम ने भी किए गए कब्जों के संबंध में पत्र लिखा है. राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने भी वनों को हो रहे नुकसान को लेकर शीघ्र कार्यवाही करने की रिपोर्ट दी है, जिस पर कोर्ट ने आदेशित किया कि याचिका में उठाए गये मुद्दों पर शीघ्र सुनवाई आवश्यक है.
ये हैं याचिका की बड़ी बातें -
- वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार अगर कोई अनुसूचित जनजाति का 13 दिसम्बर 2005 के पूर्व 10 एकड़ वनभूमि तक कब्जा था, तो वह ही पट्टा प्राप्त करने की पात्रता रखेगा, जिसके लिये उसे प्रमाण प्रस्तुत करना पड़ेगा.
- इसी प्रकार अन्य परंपरागत वन निवासियों जो 13 दिसम्बर 2005 के पूर्व वर्ष 1930 से वन क्षेत्रों में रह रहे हैं, वे भी पट्टा प्राप्त करने के पात्र होंगे.
- याचिका में बताया गया कि छत्तीसगढ़ में सितम्बर 2018 तक 401551 पट्टे अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी को बांटे गये हैं.
- छत्तीसगढ़ में वनों का भाग लगभग 42 प्रतिशत है, जिसमें से 3412 वर्ग किलोमीटर की कुल वन भू-भाग का 6.14 प्रतिशत वन अधिकार पट्टे के रूप में बांटा गया है.
- निरस्त किये गये वन अधिकार पट्टों पर पुनर्विचार नहीं किया जा सकता. निरस्त किये गये वन अधिकार पट्टों पर पुनर्विचार के नाम पर अपात्रों को पट्टे बांटे जा रहे हैं.
- नवंबर 2015 तक 497438 पट्टों के आवेदनों को निरस्त कर दिया गया था, लेकिन पुनर्विचार कर के मार्च 2018 तक निरस्त पट्टों की संख्या घटकर 455131 रह गई.
- छत्तीसगढ़ वन विकास निगम लिमिटेड, कवर्धा परियोजना मण्डल के वन क्षेत्र में गूगल मैप के अनुसार वर्ष 2013 और वर्ष 2015 में घना जंगल था, जिसकी वन भूमि 21122 हेक्टर थी, जिसमें से 9.24 प्रतिशत अर्थात 1949 हेक्टर भूमि पर 1510 वन अधिकार पट्टे बांटे गये.
- याचिकाकर्ता की तरफ से उदन्ती सीतानदी टाईगर रिजर्व में हो रही वनों की कटाई के फोटो को हाइकोर्ट में प्रस्तुत करते हुए बताया गया कि पेड़ों की छाल को नीचे से काट कर उन्हें मार दिया जाता है. पेड़ों को जलाया जाता है. टाइगर रिजर्व क्षेत्र में प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के मकान बनाए गए हैं. वहां कई स्थानों में ईंट-भट्ठे भी हैं.
जनहित याचिका क्र. 62/2019 में ये बने पक्षकार-
1. अतिरिक्त मुख्य सचिव, वन विभाग, छत्तीसगढ़
2. सचिव, आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास, छत्तीसगढ़
3. प्रधान मुख्य वन संरक्षक, छत्तीसगढ़
4. प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी), छत्तीसगढ़
5. आयुक्त, आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास, छत्तीसगढ़
6. मैनेजिंग डायरेक्टर, वन विकास निगम छत्तीसगढ़
7. यूनियन ऑफ इंडिया
8. सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन, भारत सरकार
9. नेशनल टाइगर कंर्जवेशन अथॉरिटी
10. फील्ड डायरेक्टर, उदन्ती सीतानदी टाइगर रिजर्व, छत्त्तीसगढ़