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ये है छत्तीसगढ़ का फ्रेंडशिप डे, इस खास अंदाज में मनाई जाती है भोजली

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Published : Aug 17, 2019, 12:00 AM IST

Updated : Aug 17, 2019, 12:26 AM IST

राखी के अगले दिन छत्तीसगढ़ में भोजली का त्योहार मनाया जाता है. भोजली का सीधा अर्थ 'भू-जल में बढ़ोतरी की कामना' भी होता है. नाग पंचमी के दिन से यह पर्व शुरू होकर राखी के दूसरे दिन तक चलता है. नाग पंचमी के दिन ग्रामीणों के घरों में गेंहू को भींगो कर अंकुरण के लिए रखा जाता है. इससे पुरानी दुश्मनी भी दूर हो जाती है. जबकि दोस्ती का संबंध जोड़ने का भी रिवाज है.

अंकुरण कर रखा गया गेंहू

रायपुरः रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहन के मजबूर रिश्ते और बंधन के लिए समर्पित होता है, तो वहीं राखी के अगले दिन को भी छत्तीसगढ़ में खास रूप मे मनाते हैं. ये दिन छत्तीसगढ़ में दोस्ती के नाम किया गया है. आज राज्यभर में भोजली का त्योहार मनाया गया. ये त्योहार छत्तीसगढ़ में फ्रेंडशिप डे के रूप में मनाया जाता है.

अंकुरण कर रखा गया गेंहू

देश के अलग अलग हिस्सों में भोजली पर्व मनाया जाता है. भले ही इसका नाम कहीं भुजरिया,जवारां तो कही फूलरिया है. लेकिन इस पर्व पर अच्छी फसल की कामना के लिए देवी की पूजा-अर्चना होती है. भोजली का सीधा अर्थ 'भू-जल में बढ़ोतरी की कामना' भी होता है. साथ ही यह पर्व समरसता व मित्र का पर्व भी है. छत्तीसगढ़ में भोजली पर्व न केवल मैदानी भागों में बल्कि वनांचल में रहने वाले वनवासियों द्वारा भी मनाया जाता है.

अच्छी बरसात की करते है कामना
राखी के दूसरे दिन भोजली पर्व करीब-करीब पूरे छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है. नाग पंचमी के दिन से यह पर्व शुरू होकर राखी के दूसरे दिन तक चलता है. नाग पंचमी के दिन ग्रामीणों के घरों में गेंहू को भींगो कर अंकुरण के लिए रखा जाता है. नवमी के दिन बुआई होती है. बुआई के बाद रोज भोजली की पूजा अर्चना की जाती है. नवरात्रि की तरह ही भोजली देवी की पूजा होती है, जिसमें भोजली को जल्द बढ़ने की कामना की जाती है. इस तरह से भोजली के बढ़ने के साथ ही यह संकेत मिलता है कि, इस बार भी फसल अच्छी होगी. इसके साथ ही अच्छी बरसात की कामना भी की जाती है. ताकी भोजली और फसल की बढ़ोतरी भी हो सके.

दोस्ती का संबंध जोड़ने का है रिवाज
दरअसल, यह समय अच्छी बरसात व फसल के लिए है. कुछ दिनों बाद ही हलष्ठी का पर्व भी मनाया जाएगा जो कि, तालाब के पूजन का पर्व है. भोजली पर्व एक तरह से प्रेम और समरसता का भी पर्व है क्योंकि भोजली विसर्जन के दिन गेंहू पौधे को एक दूसरे को आदान प्रदान भी किया जाता है. इससे पुरानी दुश्मनी भी दूर हो जाती है. जबकि दोस्ती का संबंध जोड़ने का भी रिवाज है. एक दूसरे के कान में भोजली लगाकर पूरी जिन्दगी दोस्ती निभाने का संकल्प किया जाता है. इस तरह से इस पर्व से देवी साधना के साथ ही पर्यावरण की रक्षा, फसल की उन्नति की कामना है तो वहीं मित्रता का संदेश भी है.

रायपुरः रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहन के मजबूर रिश्ते और बंधन के लिए समर्पित होता है, तो वहीं राखी के अगले दिन को भी छत्तीसगढ़ में खास रूप मे मनाते हैं. ये दिन छत्तीसगढ़ में दोस्ती के नाम किया गया है. आज राज्यभर में भोजली का त्योहार मनाया गया. ये त्योहार छत्तीसगढ़ में फ्रेंडशिप डे के रूप में मनाया जाता है.

अंकुरण कर रखा गया गेंहू

देश के अलग अलग हिस्सों में भोजली पर्व मनाया जाता है. भले ही इसका नाम कहीं भुजरिया,जवारां तो कही फूलरिया है. लेकिन इस पर्व पर अच्छी फसल की कामना के लिए देवी की पूजा-अर्चना होती है. भोजली का सीधा अर्थ 'भू-जल में बढ़ोतरी की कामना' भी होता है. साथ ही यह पर्व समरसता व मित्र का पर्व भी है. छत्तीसगढ़ में भोजली पर्व न केवल मैदानी भागों में बल्कि वनांचल में रहने वाले वनवासियों द्वारा भी मनाया जाता है.

अच्छी बरसात की करते है कामना
राखी के दूसरे दिन भोजली पर्व करीब-करीब पूरे छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है. नाग पंचमी के दिन से यह पर्व शुरू होकर राखी के दूसरे दिन तक चलता है. नाग पंचमी के दिन ग्रामीणों के घरों में गेंहू को भींगो कर अंकुरण के लिए रखा जाता है. नवमी के दिन बुआई होती है. बुआई के बाद रोज भोजली की पूजा अर्चना की जाती है. नवरात्रि की तरह ही भोजली देवी की पूजा होती है, जिसमें भोजली को जल्द बढ़ने की कामना की जाती है. इस तरह से भोजली के बढ़ने के साथ ही यह संकेत मिलता है कि, इस बार भी फसल अच्छी होगी. इसके साथ ही अच्छी बरसात की कामना भी की जाती है. ताकी भोजली और फसल की बढ़ोतरी भी हो सके.

दोस्ती का संबंध जोड़ने का है रिवाज
दरअसल, यह समय अच्छी बरसात व फसल के लिए है. कुछ दिनों बाद ही हलष्ठी का पर्व भी मनाया जाएगा जो कि, तालाब के पूजन का पर्व है. भोजली पर्व एक तरह से प्रेम और समरसता का भी पर्व है क्योंकि भोजली विसर्जन के दिन गेंहू पौधे को एक दूसरे को आदान प्रदान भी किया जाता है. इससे पुरानी दुश्मनी भी दूर हो जाती है. जबकि दोस्ती का संबंध जोड़ने का भी रिवाज है. एक दूसरे के कान में भोजली लगाकर पूरी जिन्दगी दोस्ती निभाने का संकल्प किया जाता है. इस तरह से इस पर्व से देवी साधना के साथ ही पर्यावरण की रक्षा, फसल की उन्नति की कामना है तो वहीं मित्रता का संदेश भी है.

Intro:अखिल पांडे/ जांजगीर-चांपा / PKG

छत्तीसगढ़ में भोजली पर्व फ्रेंडशीप डे की तरह मनाया जाता है
पर्यावरण और अच्छी फसल के को लेकर छत्तीसगढ़ में होती है भोजली त्यौहार
एंकर-
देश के अलग अलग हिस्सों में भोजली पर्व मनाया जाता है। भले ही इसका नाम कहीं भुजरिया,जवारां तो कही फूलरिया भी कहते हों लेकिन इस पर्व को अच्छी फसल की कामना के लिए देवी की पूजा-अर्चना है। भोजली का सीधा अर्थ भू-जल में बढ़ोत्तरी की कामना भी होती है, साथ ही यह पर्व समरसता व मित्र पर्व भी है। छत्तीसगढ़ में भोजली पर्व न केवल मैदानी भागों में बल्कि वनांचल में रहने वाले वनवासियों द्वारा भी मनाया जाता है।
Body:विओ-
राखी के दूसरे दिन भोजली पर्व करीब-करीब पूरे छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है। नाग पंचमी के दिन से यह पर्व शुरू होकर राखी के दूसरे दिन तक चलता है। नाग पंचमी के दिन ग्रामीणों के घरों में गेंहूं को भीगो कर अंकुरण के लिए रखा जाता है और नवमी के दिन बुआई होती है। बुआई के बाद रोज भोजली की पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्रि की तरह ही भोजली देवी की पूजा होती है, जिसमें भोजली को जल्द बढ़ने की कामना की जाती है। इस तरह से भोजली के बढ़ने के साथ ही यह संकेत मिलता है कि, इस बार भी फसल अच्छा होगा। इसके साथ ही अच्छी बरसात की कामना भी की जाती है। ताकी भोजली और फसल की बढ़ोत्तरी भी हो सके। भोजली का अर्थ भू-जल से है जिसमें भूमि में जल अधिक होने की कामना से है। दरअसल, यह काल अच्छी बरसात व फसलल के लिए है। कुछ दिनों बाद ही हलष्ठी का पर्व भी मनाया जाएगा जो कि, तलाब के पूजन का पर्व है। भोजली पर्व एक तरह से प्रेम और समरसता का भी पर्व है क्योंकि भोजली विसर्जन के दिन गेंहू पौधे को एक दूसरे को आदान प्रदान भी किया जाता है। इससे पुरानी दुश्मनी भी दूर हो जाती है। जबकि मितान का संबंध जोड़ने का भी रिवाज है जिसमें कान में भोजली एक दूसरे द्वारा खोंचने के बाद पूरी जिन्दगी मित्रवत निभाने का संकल्प माना जाता है। इस तरह से एक पर्व से जहां दैवी साधना के साथ ही पर्यावरण की रक्षा, फसल की उन्नती की कामना है वहीं मित्रता का पर्व भी यह है।
वाक्स पाप-( महिलाओं की बाइट जिसमें पर्व के बारे में पूरी जानकारी दी गई है।)
बाइट- छतराम कश्यप, बैगा (गांव में बैगा पुजारी को कहते हैं।)
Conclusion:इण्ड विओ-
हमारी परम्परा और लोक संस्कृति में जो पर्व मनाया जाता है वह एक तरह से हमारे पर्यावरण की रक्षा करने व मानवता का संदेश देता है। यह पर्व भी अच्छी बरसात और आम लोगों के बीच मित्रता व प्रेम का संदेश देता है। यह पर्व अन्य प्रदेशों में भी मनाया जाता है भले ही इसका नाम बदल जाता है लेकिन स्वरुप यही होता है। ब्रज में इसे भुजरिया कहा जाता है तो मालवा में इसे जवारां कहा जाता है। लेकिन यह पर्व भी पर्यावरण व मित्रता का ही पर्व होता है।
Last Updated : Aug 17, 2019, 12:26 AM IST
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