रायपुर: छत्तीसगढ़ विधानसभा के विशेष सत्र में छत्तीसगढ़ कृषि उपज मंडी (संशोधन) विधेयक 2020 को पारित कर दिया गया. इसे लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विधानसभा में कहा कि हमने केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र या कानून को बिलकुल नहीं छेड़ा है. उन्होंने कहा कि हम प्रदेश के किसानों के साथ हैं. वहीं छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ के संयोजक सदस्य डॉ. संकेत ठाकुर ने कहा है कि विधानसभा के विशेष सत्र में बहुप्रतीक्षित कृषि विधेयक राज्य सरकार के द्वारा लाया गया. लेकिन प्रदेश के लाखों किसानों की उम्मीद इस विधेयक से पूरी होती नजर नहीं आ रही है.
छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ के संयोजक मंडल सदस्य डॉ. संकेत ठाकुर ने राज्य सरकार द्वारा पारित विधेयक को किसान विरोधी और कॉरपोरेट हितैषी बताया है. उन्होंने राज्यपाल अनुसुइया उइके से निवेदन किया है कि इस विधेयक को कानून बनाने से तब तक रोका जाए जब तक कि न्यूनतम समर्थन मूल्य में मंडी या डीम्ड मंडी में किसानों की उपज खरीदी को अनिवार्य करने का प्रावधान ना हो जाए. इसी तरह प्रति वर्ष धान की शासकीय खरीदी की तारीख 1 नवम्बर तय करने का संशोधन विधेयक में जोड़ा जाए.
डॉ. संकेत ठाकुर ने कहा कि बहुत ही दुर्भाग्य का विषय है कि नए विधेयक में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी और 1 नवंबर से धान खरीदी को लेकर कोई चर्चा नहीं है. सिर्फ किसानों को बहलाने के लिए मंडी कानून में संशोधन प्रस्तावित है.
'राज्य सरकार का संशोधन केंद्र के कानून का करता है समर्थन'
कृषि वैज्ञानिक डॉ. संकेत ठाकुर ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा जो विधेयक कल विधानसभा में पारित हुआ है वह केंद्र सरकार के द्वारा पारित किए गए 3 नए किसान कानूनों का ना केवल अनुमोदन करता है बल्कि उससे आगे बढ़कर निजी/कॉर्पोरेट मंडियों को शासकीय मान्यता देने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है. छत्तीसगढ़ के किसान एक बार फिर छले गए हैं. पहले केंद्र सरकार ने किसानों को उनकी कथित आजादी का नारा देकर कॉरपोरेट हितैषी कानून लाकर छला और अब राज्य सरकार ने किसान का खेवनहार बनने का प्रपंच रचकर और 7 सूत्रीय मंडी संशोधन विधेयक लाकर छला है.
किसानों और आम लोगों को कर रहे भ्रमित
डॉ. संकेत ठाकुर ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि विधानसभा में मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री भाषण में कुछ और बोलते हैं लेकिन विधेयक कुछ और पारित किया जाता है. विधेयक राज्य सरकार को निजी मंडियों से टैक्स वसूलने, जांच करने, रिकॉर्ड देखने, लेखा-जोखा की जांच करने के बहाने सरकारी छापा मारने का अधिकार देता है. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के औपचारिक स्वरूप की खिलाफत करने वाले मुख्यमंत्री कॉरपोरेट घरानों को निजी मंडी लगाने के लिए रेड कार्पेट बिछाने की तैयारी इस विधेयक के माध्यम से कर रहे हैं.