ETV Bharat / state

छेरछेरा पर्व: छोटे-बड़े के बीच के भेदभाव को भूलने का त्योहार - raipur news

छत्तीसगढ़ में छेरछेरा पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन बच्चे और बड़े घर-घर जाकर अन्न की भिक्षा मांगते हैं. मान्यता है कि इस दिन जो भी अनाज का दान करता है, उसे सात जन्मों के बराबर पुण्य का लाभ मिलता है. छेरछेरा का महत्व छत्तीसगढ़ में दिवाली और होली के त्योहार जैसा है.

छेरछेरा
छेरछेरा
author img

By

Published : Jan 28, 2021, 12:55 AM IST

Updated : Jan 28, 2021, 9:34 AM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ में पौष महीने की पूर्णिमा को छेरछेरा (पुन्नी पर्व) धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन बच्चे और बड़े घर-घर जाकर भिक्षा मांगते हैं. वैसे तो आमतौर पर भीख मांगना समाज में अच्छा नहीं माना जाता, लेकिन साल में इस खास दिन भिक्षा मांगने की परंपरा रही है. इस लोकपर्व के माध्यम से आप छत्तीसगढ़ की परंपराओं की गहराई का अंदाजा लगा सकते हैं. सीएम भूपेश बघेल ने भी छेरछेरा की बधाई देते हुए प्रदेशवासियों की खुशहाली, सुख, समृद्धि की कामना की है.

कोरबा में मनाया गया छेरछेरा
कोरबा में मनाया गया छेरछेरा

सीएम ने कहा कि नई फसल के घर आने की खुशी में महादान और फसल उत्सव के रूप में पौष मास की पूर्णिमा को छेरछेरा पुन्नी तिहार मनाया जाता है. यह त्योहार हमारी समाजिक समरसता, समृद्ध दानशीलता की गौरवशाली परम्परा का संवाहक है. इस दिन ‘छेरछेरा, कोठी के धान ल हेरहेरा‘ बोलते हुए गांव के बच्चे, युवा और महिला संगठन खलिहानों और घरों में जाकर धान और भेंट स्वरूप प्राप्त पैसे इकट्ठा करते हैं. इकट्ठा किए गए धान और राशि रामकोठी में रखते हैं और साल भर के लिए अपना कार्यक्रम बनाते हैं.

धान मांगने की परंपरा

जानकार मानते हैं कि 'हमारे पूर्वजों ने खुद के अहंकार को मारने के लिए इस लोकपर्व की शुरुआत की थी'. माना जाता है कि देने वाला मांगने वाले से बड़ा होता है तभी तो इस दिन अपने आसपास के गली मोहल्लों में धान मांगकर हम अपने अहंकार को मार सकते हैं.

ग्रामीण इलाकों में छेरछेरा से मिले अनाज और राशि से गांव में छोटे मोटे सार्वजनिक काम किए जाते है या सार्वजनिक उत्सव ही मना लिया जाता है. पौष पूर्णिमा की सुबह आप ग्रामीण इलाकों में बाल टोलियों को ये कहते हुए सुन सकते हैं.

'छेर छेरा.. माई कोठी के धान ल हेर हेरा…'

कई गांवों में मान्यता है कि छेरछेरा पुन्नी के मौके पर धान दान देना शुभ होता है. दान देने वाले किसान की कोठी हमेशा भरी रहती है.

पढ़ें : कोरबा: करतला में एक दिन पहले मनाया गया छेरछेरा पर्व

इस लोकपर्व से जुड़ी हुई एक और कथा

इस पर्व के साथ एक कथा ये भी जुड़ी हुई है कि जिसे कौशल प्रदेश के राजा कल्याण साय ने मुगल सम्राट जहांगीर की सल्तनत में रहकर राजनीति और युद्धकला की शिक्षा ली थी. कल्याण साय लगभग आठ साल तक राज्य से दूर रहे. शिक्षा लेने के बाद जब वे रतनपुर आए तो लोगों ने उनका स्वागत किया. राजा की गैर मौजूदगी में उनकी पत्नी रानी फुलकैना ने आठ साल तक राजकाज संभाला था. इतने समय बाद अपने पति को पाकर रानी ने दोनों हाथों से सोने-चांदी के सिक्के प्रजा में लुटाए. इसके बाद राजा कल्याण साय ने उपस्थित राजाओं को निर्देश दिए कि आज के दिन को हमेशा त्योहार के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन किसी के घर से कोई याचक खाली हाथ नहीं जाएगा.

लोकपर्व को छत्तीसगढ़ ने संजो कर रखा

छेर छेरा त्योहार के साथ और भी जन कथाएं जुड़ी है. लेकिन सभी कथाओं का अंत दान की परंपरा के निर्रवहन पर जोर देता है. यही तो खुबसूरती है इस लोकपर्व की जिसे छत्तीसगढ़ के लोगों ने संजो कर रखा है.

कोरबा में छेरछेरा का पर्व

कोरबा के करतला में छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्योहार छेरछेरा एक दिन पहले ही मना लिया गया. बच्चों ने घर-घर जाकर छेरछेरा की आवाज लगा कर दान मांगा. घरों के मुखिया ने बच्चों को दान के रूप में धान दिया.

गुरुवार को होती है माता लक्ष्मी की पूजा

ग्रामीणों को कहना यह भी है कि गुरुवार को माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, इसीलिए ग्रामीण नहीं चाहते कि लक्ष्मी पूजा के दिन घर से किसी प्रकार की लक्ष्मी को बाहर करें. करतला निवासी एक बुजुर्ग ने यह भी बताया कि गुरुवार को अधिकतर करतला निवासी लक्ष्मी जी की उपासना करते हैं. उस दिन मांस मदिरा का सेवन नहीं करते, इसलिए करतला निवासी 1 दिन पहले छेरछेरा का त्योहार मना रहे हैं.

रायपुर: छत्तीसगढ़ में पौष महीने की पूर्णिमा को छेरछेरा (पुन्नी पर्व) धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन बच्चे और बड़े घर-घर जाकर भिक्षा मांगते हैं. वैसे तो आमतौर पर भीख मांगना समाज में अच्छा नहीं माना जाता, लेकिन साल में इस खास दिन भिक्षा मांगने की परंपरा रही है. इस लोकपर्व के माध्यम से आप छत्तीसगढ़ की परंपराओं की गहराई का अंदाजा लगा सकते हैं. सीएम भूपेश बघेल ने भी छेरछेरा की बधाई देते हुए प्रदेशवासियों की खुशहाली, सुख, समृद्धि की कामना की है.

कोरबा में मनाया गया छेरछेरा
कोरबा में मनाया गया छेरछेरा

सीएम ने कहा कि नई फसल के घर आने की खुशी में महादान और फसल उत्सव के रूप में पौष मास की पूर्णिमा को छेरछेरा पुन्नी तिहार मनाया जाता है. यह त्योहार हमारी समाजिक समरसता, समृद्ध दानशीलता की गौरवशाली परम्परा का संवाहक है. इस दिन ‘छेरछेरा, कोठी के धान ल हेरहेरा‘ बोलते हुए गांव के बच्चे, युवा और महिला संगठन खलिहानों और घरों में जाकर धान और भेंट स्वरूप प्राप्त पैसे इकट्ठा करते हैं. इकट्ठा किए गए धान और राशि रामकोठी में रखते हैं और साल भर के लिए अपना कार्यक्रम बनाते हैं.

धान मांगने की परंपरा

जानकार मानते हैं कि 'हमारे पूर्वजों ने खुद के अहंकार को मारने के लिए इस लोकपर्व की शुरुआत की थी'. माना जाता है कि देने वाला मांगने वाले से बड़ा होता है तभी तो इस दिन अपने आसपास के गली मोहल्लों में धान मांगकर हम अपने अहंकार को मार सकते हैं.

ग्रामीण इलाकों में छेरछेरा से मिले अनाज और राशि से गांव में छोटे मोटे सार्वजनिक काम किए जाते है या सार्वजनिक उत्सव ही मना लिया जाता है. पौष पूर्णिमा की सुबह आप ग्रामीण इलाकों में बाल टोलियों को ये कहते हुए सुन सकते हैं.

'छेर छेरा.. माई कोठी के धान ल हेर हेरा…'

कई गांवों में मान्यता है कि छेरछेरा पुन्नी के मौके पर धान दान देना शुभ होता है. दान देने वाले किसान की कोठी हमेशा भरी रहती है.

पढ़ें : कोरबा: करतला में एक दिन पहले मनाया गया छेरछेरा पर्व

इस लोकपर्व से जुड़ी हुई एक और कथा

इस पर्व के साथ एक कथा ये भी जुड़ी हुई है कि जिसे कौशल प्रदेश के राजा कल्याण साय ने मुगल सम्राट जहांगीर की सल्तनत में रहकर राजनीति और युद्धकला की शिक्षा ली थी. कल्याण साय लगभग आठ साल तक राज्य से दूर रहे. शिक्षा लेने के बाद जब वे रतनपुर आए तो लोगों ने उनका स्वागत किया. राजा की गैर मौजूदगी में उनकी पत्नी रानी फुलकैना ने आठ साल तक राजकाज संभाला था. इतने समय बाद अपने पति को पाकर रानी ने दोनों हाथों से सोने-चांदी के सिक्के प्रजा में लुटाए. इसके बाद राजा कल्याण साय ने उपस्थित राजाओं को निर्देश दिए कि आज के दिन को हमेशा त्योहार के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन किसी के घर से कोई याचक खाली हाथ नहीं जाएगा.

लोकपर्व को छत्तीसगढ़ ने संजो कर रखा

छेर छेरा त्योहार के साथ और भी जन कथाएं जुड़ी है. लेकिन सभी कथाओं का अंत दान की परंपरा के निर्रवहन पर जोर देता है. यही तो खुबसूरती है इस लोकपर्व की जिसे छत्तीसगढ़ के लोगों ने संजो कर रखा है.

कोरबा में छेरछेरा का पर्व

कोरबा के करतला में छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्योहार छेरछेरा एक दिन पहले ही मना लिया गया. बच्चों ने घर-घर जाकर छेरछेरा की आवाज लगा कर दान मांगा. घरों के मुखिया ने बच्चों को दान के रूप में धान दिया.

गुरुवार को होती है माता लक्ष्मी की पूजा

ग्रामीणों को कहना यह भी है कि गुरुवार को माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, इसीलिए ग्रामीण नहीं चाहते कि लक्ष्मी पूजा के दिन घर से किसी प्रकार की लक्ष्मी को बाहर करें. करतला निवासी एक बुजुर्ग ने यह भी बताया कि गुरुवार को अधिकतर करतला निवासी लक्ष्मी जी की उपासना करते हैं. उस दिन मांस मदिरा का सेवन नहीं करते, इसलिए करतला निवासी 1 दिन पहले छेरछेरा का त्योहार मना रहे हैं.

Last Updated : Jan 28, 2021, 9:34 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.