रायपुर: हिंदू पंचाग के हिसाब से चैतन्य महाप्रभु का जन्म विक्रम संवत के 1542 में फाल्गुन पूर्णिमा के दौरान हुआ था. इसीलिए, चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी, फाल्गुन पूर्णिमा को गौरा पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं. इसे चैतन्य महाप्रभु की जयंती के रूप में मनाया जाता है.
ऐसे करें चैतन्य महाप्रभु की पूजा: श्री चैतन्य जयंती के दिन, उनके अनुयाई कई तरह के अनुष्ठान करते हैं. इस दिन सुबह जल्दी उठ कर सूर्योदय के समय स्नान किया जाता है. फिर श्री चैतन्य जयंती के दिन भक्तों को भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है. क्योंकि श्री चैतन्य महाप्रभु भगवान कृष्ण के भक्त थे. लोग भगवान कृष्ण की मूर्तियों को नए परिधानों में सजाते हैं. भजन गाते हैं और पूरे दिन भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं. उनका आशीर्वाद लेते हैं. जहां कुछ लोग एक दिन का उपवास रखते हैं. वहीं कुछ आंशिक उपवास भी रखते हैं.
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यह दिन उन लोगों के लिए महान सांस्कृतिक महत्व रखता है. जो भगवान कृष्ण के भक्त हैं और श्री चैतन्य महाप्रभु के फालोअर हैं. चैतन्य महाप्रभु एक महान आध्यात्मिक शिक्षक और गौड़ीय वैष्णववाद के संस्थापक थे. चैतन्य महाप्रभु के अनुयायियों को गौड़ीय वैष्णव के रूप में जाना जाता है. श्री चैतन्य ने श्री कृष्ण की उच्च प्रशंसा में 16वीं शताब्दी में लोकप्रिय शिक्षाष्टकम - गौड़ीय संप्रदाय के 8 छंदों को संस्कृत भाषा में भी लिखा था. इस दिन, श्री चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी उनकी जीवन उपलब्धियों को याद करते हैं. महान संत को श्रद्धांजलि देने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित करते हैं.