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Special: पशुओं को लग रहा टीका, कोरोनाकाल में पशुपालक सतर्क - पशुपालक कोरोना के प्रति सतर्क

छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों के बीच मवेशियों का मोह बढ़ाने के लिए लगातार नई योजनाओं और अभियान की शुरुआत की है. ETV भारत ने इस मुद्दे पर पशु चिकित्सक और पशुपालकों से बात की जिसमें उन्होंने पशुओं की देख-रेख के बारे में जानकारी दी है.

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कोरोनाकाल में पशुपालक सतर्क
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Published : Jul 3, 2020, 11:00 PM IST

Updated : Jul 4, 2020, 1:31 AM IST

रायपुर: प्रदेश सरकार लगातार पशुधन को बढ़ावा देने का काम कर रही है. ताकि पशुधन के माध्यम से लोगों की आय बढ़ाई जा सके और पशुपालकों में पशुधन को लेकर जागरुकता आए. इसके लिए सरकार ने प्रदेश में गौठान का निर्माण कराया और रोका छेका अभियान की शुरुआत भी की है. ताकि किसान ज्यादा से ज्यादा मवेशियों का पालन कर सके. ETV भारत ने इस मुद्दे पर पशु चिकित्सक से भी बात की जिसमें उन्होंने पशुओं की देख रेख के बारे में जानकारी दी है.

टीकाकरण और देख-रेख को लेकर पशु चिकित्सक ने बताया कि फिलहाल बारिश का मौसम शुरू हो रहा है. जानवरों में कई बीमारियां होने की संभावना रहती है. जिसको देखते हुए पशु चिकित्सक जानवरों को टीका लगाते हैं. साल में पशु चिकित्सक जानवरों को तीन से चार बार टीकाकरण करते हैं. जिसके बाद अगर कोई जानवर बीमार पड़ा उसके लिए अलग से दवाइयां दी जाती हैं.

कोरोनाकाल में पशुपालक सतर्क

पशुपालक भी हुए सतर्क
पशुपालक ने बताया कि गाय को साल में तीन से चार बार टीका लगाया जाता है. वहीं समय-समय पर अगर कोई पशु बीमार हो गया तो, उसे डॉक्टर की सलाह से दवाइयां भी दी जाती हैं. पशुओं को खाने में धान का भूसा और बाजार में गाय के लिए जो आहार मिलता है वो साथ में दिया जाता है. साथ ही समय-समय पर हरी घास दी जाती है. कोरोना काल में पशुओं का दूध निकालते समय दूध वालों को काफी ध्यान रखना पड़ता है. दूध निकालने से पहले गाय के थन और अपने हाथ को अच्छी तरह से सैनिटाइज किया जाता है. साथ ही जिस बर्तन में दूध निकाला जा रहा है उसको भी अच्छी तरह से सैनिटाइज किया जाता है. कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण ने पशु पालकों को भी प्रभावित किया है. पशु पालक अब पहले ज्यादा सतर्क हो गए हैं. साफ सफाई का ध्यान रख रहे हैं.

पढ़ें: SPECIAL: लॉकडाउन में नक्सलियों को चौतरफा नुकसान, भारी पड़े जवान

इसका ध्यान रखें किसान

पशुओं को स्वस्थ रखने के उद्देश्य से किसान एंटीबायोटिक का उपयोग करते हैं, जबकि उनको विथ ड्रॉल पीरियड्स की जानकारी तक नहीं है. पशुओं को टीका लगाने के बाद 5 से 7 दिन और बीमारी में 7 से 15 दिन का समय किसानों को दूध नहीं बेचना चाहिए. इस दौरान दूध में केमिकल का असर ज्यादा रहता है जिस वजह से वह इंसानों के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डाल सकता है.

बता दें कि खाद सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने 2018 में देश भर के दूध के नमूने की जांच की थी जांच में 77 नमूने में एंटीबायोटिक के अवशेष स्वीकार्य सीमा से अधिक पाए गए थे. आंकड़े की बात की जाए तो भारत में 30 करोड़ दुधारू पशुओं की संख्या है. 2018-19 में 187.7 मिलियन टन दूध उत्पाद हुआ है.

भारत में गाय के दूध का काफी महत्व है. लेकिन पशुपालक ज्यादा कमाई की चाह में मवेशियों को जो टीका लगा रहे हैं उससे मवेशियों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है. मवेशियों को ऐसे घातक वैक्सीन से बचाना जरूरी है. इसका व्यापक प्रभाव लोगों में भी दिखता है. ऐसे में जरुरी है कि सरकार की योजनाओं का लाभ डेयरी संचालको और पशुपालक किसानों को अधिक से अधिका हो ताकि पशुधन को बचाया जा सके.

रायपुर: प्रदेश सरकार लगातार पशुधन को बढ़ावा देने का काम कर रही है. ताकि पशुधन के माध्यम से लोगों की आय बढ़ाई जा सके और पशुपालकों में पशुधन को लेकर जागरुकता आए. इसके लिए सरकार ने प्रदेश में गौठान का निर्माण कराया और रोका छेका अभियान की शुरुआत भी की है. ताकि किसान ज्यादा से ज्यादा मवेशियों का पालन कर सके. ETV भारत ने इस मुद्दे पर पशु चिकित्सक से भी बात की जिसमें उन्होंने पशुओं की देख रेख के बारे में जानकारी दी है.

टीकाकरण और देख-रेख को लेकर पशु चिकित्सक ने बताया कि फिलहाल बारिश का मौसम शुरू हो रहा है. जानवरों में कई बीमारियां होने की संभावना रहती है. जिसको देखते हुए पशु चिकित्सक जानवरों को टीका लगाते हैं. साल में पशु चिकित्सक जानवरों को तीन से चार बार टीकाकरण करते हैं. जिसके बाद अगर कोई जानवर बीमार पड़ा उसके लिए अलग से दवाइयां दी जाती हैं.

कोरोनाकाल में पशुपालक सतर्क

पशुपालक भी हुए सतर्क
पशुपालक ने बताया कि गाय को साल में तीन से चार बार टीका लगाया जाता है. वहीं समय-समय पर अगर कोई पशु बीमार हो गया तो, उसे डॉक्टर की सलाह से दवाइयां भी दी जाती हैं. पशुओं को खाने में धान का भूसा और बाजार में गाय के लिए जो आहार मिलता है वो साथ में दिया जाता है. साथ ही समय-समय पर हरी घास दी जाती है. कोरोना काल में पशुओं का दूध निकालते समय दूध वालों को काफी ध्यान रखना पड़ता है. दूध निकालने से पहले गाय के थन और अपने हाथ को अच्छी तरह से सैनिटाइज किया जाता है. साथ ही जिस बर्तन में दूध निकाला जा रहा है उसको भी अच्छी तरह से सैनिटाइज किया जाता है. कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण ने पशु पालकों को भी प्रभावित किया है. पशु पालक अब पहले ज्यादा सतर्क हो गए हैं. साफ सफाई का ध्यान रख रहे हैं.

पढ़ें: SPECIAL: लॉकडाउन में नक्सलियों को चौतरफा नुकसान, भारी पड़े जवान

इसका ध्यान रखें किसान

पशुओं को स्वस्थ रखने के उद्देश्य से किसान एंटीबायोटिक का उपयोग करते हैं, जबकि उनको विथ ड्रॉल पीरियड्स की जानकारी तक नहीं है. पशुओं को टीका लगाने के बाद 5 से 7 दिन और बीमारी में 7 से 15 दिन का समय किसानों को दूध नहीं बेचना चाहिए. इस दौरान दूध में केमिकल का असर ज्यादा रहता है जिस वजह से वह इंसानों के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डाल सकता है.

बता दें कि खाद सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने 2018 में देश भर के दूध के नमूने की जांच की थी जांच में 77 नमूने में एंटीबायोटिक के अवशेष स्वीकार्य सीमा से अधिक पाए गए थे. आंकड़े की बात की जाए तो भारत में 30 करोड़ दुधारू पशुओं की संख्या है. 2018-19 में 187.7 मिलियन टन दूध उत्पाद हुआ है.

भारत में गाय के दूध का काफी महत्व है. लेकिन पशुपालक ज्यादा कमाई की चाह में मवेशियों को जो टीका लगा रहे हैं उससे मवेशियों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है. मवेशियों को ऐसे घातक वैक्सीन से बचाना जरूरी है. इसका व्यापक प्रभाव लोगों में भी दिखता है. ऐसे में जरुरी है कि सरकार की योजनाओं का लाभ डेयरी संचालको और पशुपालक किसानों को अधिक से अधिका हो ताकि पशुधन को बचाया जा सके.

Last Updated : Jul 4, 2020, 1:31 AM IST
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