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अजब-गजब: रातों रात गायब हो गई गुलमोहर के पेड़ की पत्तियां - Indira Gandhi Agricultural University

रायपुर की हरियाली पर इन दिनों एक अनजान बीमारी ने हमला कर दिया है. शहर में लगे गुलमोहर के पेड़ पर इल्ली अटैक से पूरे शहर में लगे गुमोहर के पेड़ की पत्ती रातों रात गायब हो गई है.

Caterpillars are damaging the Gulmohar trees
पेड़ से गायब हुई पत्तियां
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Published : Oct 20, 2020, 10:08 PM IST

रायपुर: जियें तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले, मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिये...कवि दुष्यंत कुमार की यह पंक्तियां गुलमोहर की खूबसूरती और यह वृक्ष कितना प्रासंगिक है इसे बयां करने के लिए काफी है. रायपुर शहर की खूबसूरती में चटक रंग के फूलों वाले गुलमोहर का बड़ा योगदान है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से इस पेड़ पर एक अनजान सी बीमारी ने हमला कर दिया है. यह बीमारी इतनी खतरनाक है कि यह बड़े गुलमोहर के वृक्ष को 1 से 2 दिन के भीतर पत्ता रहित कर देती है. इसको लेकर कई लोगों को चिंता सताने लगी है. लोग इस बारे में नगर निगम को शिकायत तो कर ही रहे हैं, साथ ही वनस्पति शास्त्र के जानकारों से भी इसके बारे में पूछ रहे हैं.

पेड़ से गायब हुई पत्तियां

इस मामले में ETV भारत ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक गजेंद्र चंद्राकर से बातचीत की. उन्होंने बताया कि सबसे पहले ऐसी जानकारी जांजगीर-चांपा जिले से सामने आई थी. उसके बाद अभनपुर और अब रायपुर में इसकी सूचना मिली है. उन्होंने बताया कि गुलमोहर के वृक्ष का साइंटिफिक नाम रॉयल फाइंसियाना है. इसमें जो कीट लगे हैं फाइंसियान सेमीलूपर है और आद्रता (नमी) वाले मौसम में इसका आक्रमण ज्यादा होता है. यह कीड़ा गुलमोहर की पत्ती के लीफ ब्रेल्ड में अंडा देती है. उसके बाद अंडे से 48 से 72 घण्टे में कैटरपिलर बाहर निकलते हैं. वह इल्लियां गुलमोहर के पत्तों को तेजी से खान शुरू करते हैं और पूरे वृक्ष को पत्ती रहित कर देते हैं. गजेंद्र चंद्राकर ने कहा कि यदि मौसम बदलता है तो इसका आक्रमण कम होने की संभावना है.

राहत की खबर: छत्तीसगढ़ में बढ़ा कोरोना का रिकवरी रेट

कैसे बचाए पेड़ को ?

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि नीम आधारित इंसेक्टिसाइड के प्रयोग से इसे कम किया जा सकता है. साथ ही एजेडेरिकटिड 3000ppm की दवाई को प्रति लीटर 3 से 5 लीटर पानी में मिलाकर लेकर स्प्रे कर सकते हैं, लेकिन वृक्षों पर स्प्रे करना बेहद ही मुश्किल काम है. इसके लिए रोग फैलाव को रोकने वाले फंगस (कवक) का स्प्रे करना चाहिए. साथ ही बेरिया बेसियाना फफूंद भी इसे रोकने के लिए कारगर है. उसे 5 से 10 एमएल प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे किया जा सकता है. इन कीटाणुओं को शाम के समय नीम की खली का धुंआ करने से काफी हद तक इसे कंट्रोल किया जा सकता है.

क्या है गुलमोहर का इतिहास ?

गुलमोहर मूल रूप से मेडागास्कर नामक देश का वृक्ष है. इसे 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने भारत लाया था. इसकी गिनती विश्व के सबसे सुंदर वृक्षों में होती है. देश के ज्यादातर शहरों में इसके वृक्ष लगाए जाते हैं. सुंदरता और छाया प्रदान करने के साथ ही गुलमोहर के वृक्ष से आयुर्वेदिक दवाइयां भी तैयार की जाती है.

रायपुर: जियें तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले, मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिये...कवि दुष्यंत कुमार की यह पंक्तियां गुलमोहर की खूबसूरती और यह वृक्ष कितना प्रासंगिक है इसे बयां करने के लिए काफी है. रायपुर शहर की खूबसूरती में चटक रंग के फूलों वाले गुलमोहर का बड़ा योगदान है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से इस पेड़ पर एक अनजान सी बीमारी ने हमला कर दिया है. यह बीमारी इतनी खतरनाक है कि यह बड़े गुलमोहर के वृक्ष को 1 से 2 दिन के भीतर पत्ता रहित कर देती है. इसको लेकर कई लोगों को चिंता सताने लगी है. लोग इस बारे में नगर निगम को शिकायत तो कर ही रहे हैं, साथ ही वनस्पति शास्त्र के जानकारों से भी इसके बारे में पूछ रहे हैं.

पेड़ से गायब हुई पत्तियां

इस मामले में ETV भारत ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक गजेंद्र चंद्राकर से बातचीत की. उन्होंने बताया कि सबसे पहले ऐसी जानकारी जांजगीर-चांपा जिले से सामने आई थी. उसके बाद अभनपुर और अब रायपुर में इसकी सूचना मिली है. उन्होंने बताया कि गुलमोहर के वृक्ष का साइंटिफिक नाम रॉयल फाइंसियाना है. इसमें जो कीट लगे हैं फाइंसियान सेमीलूपर है और आद्रता (नमी) वाले मौसम में इसका आक्रमण ज्यादा होता है. यह कीड़ा गुलमोहर की पत्ती के लीफ ब्रेल्ड में अंडा देती है. उसके बाद अंडे से 48 से 72 घण्टे में कैटरपिलर बाहर निकलते हैं. वह इल्लियां गुलमोहर के पत्तों को तेजी से खान शुरू करते हैं और पूरे वृक्ष को पत्ती रहित कर देते हैं. गजेंद्र चंद्राकर ने कहा कि यदि मौसम बदलता है तो इसका आक्रमण कम होने की संभावना है.

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कैसे बचाए पेड़ को ?

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि नीम आधारित इंसेक्टिसाइड के प्रयोग से इसे कम किया जा सकता है. साथ ही एजेडेरिकटिड 3000ppm की दवाई को प्रति लीटर 3 से 5 लीटर पानी में मिलाकर लेकर स्प्रे कर सकते हैं, लेकिन वृक्षों पर स्प्रे करना बेहद ही मुश्किल काम है. इसके लिए रोग फैलाव को रोकने वाले फंगस (कवक) का स्प्रे करना चाहिए. साथ ही बेरिया बेसियाना फफूंद भी इसे रोकने के लिए कारगर है. उसे 5 से 10 एमएल प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे किया जा सकता है. इन कीटाणुओं को शाम के समय नीम की खली का धुंआ करने से काफी हद तक इसे कंट्रोल किया जा सकता है.

क्या है गुलमोहर का इतिहास ?

गुलमोहर मूल रूप से मेडागास्कर नामक देश का वृक्ष है. इसे 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने भारत लाया था. इसकी गिनती विश्व के सबसे सुंदर वृक्षों में होती है. देश के ज्यादातर शहरों में इसके वृक्ष लगाए जाते हैं. सुंदरता और छाया प्रदान करने के साथ ही गुलमोहर के वृक्ष से आयुर्वेदिक दवाइयां भी तैयार की जाती है.

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