रायपुर : राजधानी रायपुर के पंडरी बस स्टैंड पर सन्नाटा पसरा हुआ है और बसों के पहिए थमे हुए हैं. कोरोना वायरस की रोकथाम के चलते हुए लॉकडाउन ने बस ड्राइवर, कंडक्टर और हेल्परों के रोजगार पर भी स्टॉप लगा दिया है. शायद ही यह ड्राइवर कभी इतने दिनों तक घरों पर रहे हों, इनका तो काम ही है लोगों को उनके गंत्वय स्थान तक पहुंचाना. लेकिन आज खुद की जिंदगी पर ही ब्रेक लग गया है. घर में खाने-पीने तक की मुसीबत खड़ी हो गई है. प्रदेश में 19 मार्च से बसों का संचालन बंद है. हालात से हारे ये मेहनतकश कहते हैं, कि जिंदगी बद से बदतर हो गई है, कोई सुध नहीं लेने वाला नहीं है.
पूरे प्रदेश में लगभग 12,000 बसें संचालित होती हैं और इन बसों में काम करने वाले ड्राइवर, कंडक्टर, मुंशी और हेल्पर की संख्या लगभग डेढ़ लाख है. बस में काम करने वाले इन कर्मचारियों का 1 महीने का वेतन लगभग 15 करोड़ रुपये है. बस संचालकों के पास इन कर्मचारियों को मार्च महीने का वेतन देने के बाद अप्रैल और मई महीने का वेतन देने के लिए फंड नहीं बचा है.
राजधानी रायपुर से राज्य के अंदर और राज्य के बाहर बसों का संचालन होता है. राज्य के बाहर जाने वाली बसों में ओडिशा, महाराष्ट्र, झारखंड, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश तक बसों का संचालन किया जाता है. लॉकडाउन की वजह से व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हुआ है. ऐसे में प्रदेश में बस सेवा कब शुरू होगी यह कहा नहीं जा सकता. सरकार ने 12 मई से रेल सेवा और 25 मई से हवाई सेवा की शुरुआत तो जरूर कर दी है लेकिन बस सेवा अब तक शुरू नहीं हो पाई.
पढ़ें- SPECIAL : गायब हुई शू मार्केट की चमक, लॉकडाउन से धंधा हुआ मंदा
सरकार से टैक्स में छूट की मांग
छत्तीसगढ़ यातायात महासंघ के प्रभारी सैयद अनवर अली का कहना है कि सरकार को एडवांस में 1 महीने में साढ़े पांच करोड़ रुपये टैक्स जमा करते हैं. अगर सरकार 6 महीने का टैक्स माफ करती है और टैक्स में छूट देने के साथ 75% सोशल डिस्टेंसिंग के नियम को लागू करती है तभी प्रदेश में बस सेवा शुरू करने के बारे में निर्णय लिया जा सकता है.
घर चलाना हुआ मुश्किल
राजधानी के पंडरी बस स्टैंड स्थित बस कर्मचारी कल्याण समिति के लोगों से जब ETV भारत ने बात की तो इन कर्मचारियों का गुस्सा सरकार और बस संचालकों पर जमकर फूट पड़ा. लोगों का कहना है कि सरकार और बस संचालकों की ओर से इन्हें किसी तरह की कोई राहत नहीं मिल रही है. जिसके कारण इनका रोजी रोटी चलाना भी मुश्किल हो गया है. परिवार चलाने के लिए अब दूसरों से कर्ज लेना पड़ रहा है.