रायपुर: छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनाव को लेकर सरकार बड़ा बदलाव कर रही है. बदलाव के बाद अब जनता सीधे महापौर और अध्यक्ष के लिए वोट नहीं करेगी. राज्य सरकार के मंत्रिमंडलीय उपसमिति ने महापौर और अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराने की अनुशंसा कर दी है.
सदस्यों ने एकमत से यह फैसला लिया है कि नगर निगम के महापौर और नगर पालिका के साथ नगर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से करना है. परिषद में जिस दल के पार्षद बहुमत में होंगे, वहीं अपने बीच से महापौर और अध्यक्ष को चुनेंगे. इस फैसले के बाद अब मेयर को भी वार्डों में चुनाव लड़ना होगा.
कई विसंगतियों का करना पड़ेगा सामना
इस उपसमिति की अनुशंसा से यह साफ हो गया है कि राज्य सरकार अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली को लागू करने जा रही है. अब महापौर और अध्यक्ष के टिकट की दावेदारी करने वाले नेताओं को वार्ड से पार्षद चुनाव लड़ने की तैयारी करनी होगी. पूर्व राज्य मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी रहे डॉ सुशील त्रिवेदी बताते हैं, भारत में सबसे पहले 1687 में चेन्नई नगर निगम का गठन किया गया. इसके बाद छत्तीसगढ़ 1867 में रायपुर और बिलासपुर नगर निगम का गठन किया गया. आजादी के बाद नगर निगमों की कुछ विसंगतियों को दूर करते हुए 1994 में देश में नगर निगम का गठन किया गया. जिसमें सबसे पहले मध्य प्रदेश में नगरीय निकाय का चुनाव कराया गया. डॉ सुशील त्रिवेदी कहते हैं, सरकार के फैसले के बाद अप्रत्यक्ष प्रणाली और बैलेट पेपर से चुनाव कराने में कई तरह की विसंगतियों का सामना करना पड़ेगा. इस प्रणाली से चुनाव में मतदान और मतगणना में पहले के मुकाबले ज्यादा कर्मचारी और समय लग सकते हैं.
अप्रत्यक्ष प्रणाली लोकतंत्र की हत्या
अप्रत्यक्ष प्रणाली में भी आरक्षण के आधार पर महापौर और अध्यक्ष चुने जाएंगे. सीटों का आरक्षण जो लॉटरी में निकला था, वहीं रहेगा. हालांकि, चर्चा यह भी थी कि पंचायत चुनावों की तरह नगरीय निकाय चुनाव भी दलीय आधार पर नहीं होंगे, लेकिन मंत्रिमंडलीय उपसमिति ने इसे खारिज कर दिया है. वहीं बीजेपी नये प्रणाली पर आपत्ति जताते हुए इसे लोकतंत्र की हत्या बता रही है.
पार्षद ही बनेगा महापौर
पहले, नगरीय निकाय में पार्षद और मेयर के लिए अलग-अलग वोटिंग करना होता था. जिससे लोग अपने पसंद के प्रत्याशी को चुनते थे. इससे कई बार सदन में मेयर और सदस्यों की संख्या बल के लिहाज से विपक्ष के पार्षद भी ज्यादा हो जाते थे और कई एजेंडों पर विवाद के हालात बनते थे. अब पार्षदों की ओर से ही मेयर चुनने को लेकर कई दावेदारों को भी वार्डों में लोगों के विश्वास जीतकर आना होगा. पूर्व एमआईसी सदस्य रहे जग्गू सिंह ठाकुर कहते है कि ये अच्छा कदम है इसका स्वागत करना चाहिए. जग्गू सिंह कहते हैं, जो अपने वार्ड के लोगों का विश्वास और मत जीतकर आएगा, उसे महापौर बनने का मौका मिलेगा.
अध्यादेश लाने की तैयारी में सरकार
नई व्यवस्था में पार्षद प्रत्याशियों के खर्च की सीमा तय करने का भी प्रावधान किया जाएगा. व्यय सीमा का भी प्रस्ताव तैयार किया गया है. वहीं, नगरीय निकाय चुनाव में ईवीएम के उपयोग पर भी सरकार का रुख साफ हो गया है, क्योंकि उपसमिति ने ईवीएम के बजाए, बैलेट पेपर से चुनाव कराने की अनुशंसा कर दी है. फिलहाल मंत्रिमंडल उपसमिति की रिपोर्ट जल्द ही कैबिनेट में रखी जाएगी. इसके बाद सरकार अध्यादेश लाने की तैयारी में है.