रायपुर: छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों की कर्जमाफी की घोषणा कर सत्ता हासिल कर लिया. धान का समर्थन मूल्य 2500 रुपये कर भूपेश सरकार ने किसानों के दिल में भी जगह बना ली. किसान हित के लिए कई योजनाएं भी लाईं गई. उपचुनाव और नगर निगम चुनाव में भी कांग्रेस को हार का मुंह नहीं देखना पड़ा. 2 साल की सत्ता में बुलंदियों को छूती सरकार अब कर्ज लेने में भी कहीं आगे निकल गई है. भूपेश सरकार केंद्र सरकार से राज्य के हिस्से की राशि नहीं मिलने के कारण पहले ही 1000 करोड़ का कर्ज ले चुकी है. वर्तमान वित्तीय वर्ष में भी सरकार 7.5 हजार करोड़ का कर्ज ले चुकी है. विधानसभा में पारित छत्तीसगढ़ राजकोषीय और बजट प्रबंधन विधेयक के बाद अब सरकार 1 साल में 18 हजार करोड़ तक का भी कर्ज ले सकती है. लगातार प्रदेश पर बढ़ता कर्ज का बोझ आर्थिक विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय बन चुका है.
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कोरोना के बाद कर्ज की पड़ी जरूरत
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने राज्य सरकार के लिए 1 साल में 12 हजार करोड़ की क्रेडिट लिमिट तय की है. बीते साल वित्त वर्ष की शुरुआत में सरकार को कर्ज लेने की जरूरत नहीं पड़ी थी. लेकिन कोरोना वायरस और लॉकडाउन की वजह से प्रदेश की आर्थिक गतिविधियों में कमी आई थी. इस वजह से राज्य को भारी नुकसान हुआ. हालांकि कारखानें, दुकानें खुलने के बाद सरकार ने जीएसटी वसूली में बेहतर काम किया है. बावजूद इसके केंद्र सरकार की ओर से अब तक जीएसटी की 4000 करोड़ से ज्यादा की राशि नहीं मिल पाई है. यही वजह है कि कोरोना के बाद सरकार को लगातार कर्ज लेने की जरूरत पड़ रही है.
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आर्थिक जानकारों ने जताई चिंता
अर्थशास्त्री डॉ. विनोद जोशी ने कहा है कि देश की जो आर्थिक संरचना बनी हुई है, उसमें कहीं न कहीं केंद्र सरकार की ओर से ही आर्थिक गतिविधियों को लेकर पावर दिए गए हैं. हालांकि राज्य भी अपनी ओर से आर्थिक व्यवस्था को अपने स्तर पर सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. किसी भी स्थिति में आर्थिक व्यवस्था में कर्ज को अच्छा नहीं माना गया है. कर्ज आने वाले समय में वित्तीय व्यवस्था को नुकसान पहुंचाता है.
- छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार 2 साल के भीतर ही 25 हजार 277 करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है.
- राज्य सरकार पर कर्ज का कुल बोझ 66 हजार 968 करोड़ रुपए हो गया है.
- भूपेश सरकार के गठन के 1 दिन पहले यानी 16 दिसंबर 2018 को छत्तीसगढ़ सरकार पर 40 हजार 695 करोड़ रुपए का कर्ज था.
- 2 साल बीतने के बाद राज्य सरकार पर 66 हजार 968 करोड़ रुपए का कर्ज है.
- राज्य सरकार ने 2019-20 में 4225 करोड़ रुपए के ब्याज का भुगतान भी किया है.
- इस साल ब्याज के भुगतान के लिए सरकार को 5330 करोड़ का कर्ज लेना पड़ सकता है.
- केंद्र से जीएसटी का भुगतान नहीं होने पर ये बोझ और बढ़ सकता है.
अप्रैल से अबतक 5000 करोड़ से ज्यादा का कर्ज - चालू वित्तीय वर्ष में छत्तीसगढ़ सरकार ने विभिन्न वित्तीय संस्थाओं से 5416 करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है.
- इनमें 5000 करोड़ रुपये भारतीय रिजर्व बैंक के जरिए बाजार से उधार लिए गए हैं.
- 303 करोड़ रुपए राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक से कर्ज लिया गया है.
- एशियन डेवलपमेंट बैंक और विश्व बैंक से भी 113 करोड़ रुपए का कर्ज लिया गया है.
'कर्ज का भार आम जनता पर'
छत्तीसगढ़ राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र पांडे कहते हैं कि कर्ज का बोझ कहीं न कहीं आम आदमी पर ही पड़ता है. छत्तीसगढ़ में 15 सालों तक सत्ता पर काबिज भाजपा सरकार ने किसानों को इतनी अधिक राशि का भुगतान नहीं किया था. यही वजह थी कि किसानों में नाराजगी रही है. कांग्रेस ने मौके को भुनाते हुए कर्जमाफी के साथ 2500 रुपये समर्थन मूल्य का वादा कर दिया. अब अपने वादों को पूरा करने के लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ रहा है. जिसका खामियाजा पूरे प्रदेश की जनता को उठाना पड़ रहा है. राज्य सरकार पर 2 सालों में ही 60 प्रतिशत कर्ज का बोझ बढ़ गया है. भूपेश सरकार को पिछले साल की तुलना में 1 हजार 105 करोड़ रुपए से अधिक का ब्याज चुकाना होगा.