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भानुप्रतापपुर उपचुनाव के नतीजों का छत्तीसगढ़ की राजनीति पर क्या होगा असर

Bhanupratappur bypoll results Effect भानुप्रतापपुर उपचुनाव का दंगल खत्म हो गया. एक बार फिर यहां कांग्रेस की जीत हुई. उपचुनाव में कांग्रेस की हो रही लगातार जीत ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया है. bypoll results Effect on Cg politics साल 2023 में छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में भानुप्रतापपुर उपचुनाव के नतीजों का आगामी विधानसभा चुनाव पर क्या असर पड़ेगा. छत्तीसगढ़ में राजनीति की दशा और दिशा कैसे प्रभावित होगी. इसे समझने के लिए इस रिपोर्ट पर डालिए नजर Chhattisgarh Assembly Election 2023

Bhanupratappur bypoll results Effect
उपचुनाव के नतीजे का प्रदेश की राजनीति पर कितना असर
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Published : Dec 8, 2022, 10:00 PM IST

रायपुर: Chhattisgarh Assembly Election 2023 छत्तीसगढ़ के उपचुनाव में कांग्रेस लगातार जीत दर्ज करती जा रही है. इस सिलसिले को कांग्रेस ने भानुप्रतापपुर उपचुनाव में भी बरकरार रखा. राज्य में पांच सीटों पर अब तक उपचुनाव हुए. जिसमें पांचों सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की. bypoll results Effect on Cg politics भानुप्रतापपुर भी इस जीत का हिस्सा है. कांग्रेस उम्मीदवार सावित्री मंडावी ने बीजेपी के ब्रह्मानंद नेताम को 21 हजार से ज्यादा वोटों से पटखनी दी. सर्व आदिवासी समाज के उम्मीदवार अकबर राम कोर्राम तीसरे नंबर रहे. Expert opinion on Bhanupratappur bypoll results

उपचुनाव के नतीजे का प्रदेश की राजनीति पर कितना असर



भानुप्रतापपुर उपचुनाव के नतीजों का छत्तीसगढ़ की राजनीति पर असर: यह मना जा रहा था कि भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव परिणाम से आगामी विधानसभा चुनाव 2023 की दशा और दिशा तय होगी. यदि यहां कांग्रेस की जगह भाजपा का उम्मीदवार जीतता तो जरूर पिछले 4 विधानसभा उपचुनाव में हार के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं में जोश और उत्साह भरता. लेकिन परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आया. वहीं आदिवासी समाज के लिए भी यह आंकलन का विषय है कि उनकी लाख कोशिशों के बावजूद उनका उम्मीदवार यहां जीत हासिल नहीं कर पाया. ऐसे में वह भी आंकलन कर रहे हैं कि आखिर आदिवासी सीटों पर उनका कितना प्रभाव है. यही वजह है कि इस चुनाव परिणाम को आगामी विधानसभा चुनाव 2023 की दशा और दिशा तय करने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है.Equation of Chhattisgarh Assembly Election

सीएम ने भानुप्रतापपुर उपचुनाव को 2023 का आगाज नहीं माना: सीएम भूपेश बघेल ने भानुप्रतापपुर उपचुनाव को 2023 का आगाज नहीं माना है. जब पत्रकारों ने सीएम बघेल से पूछा कि क्या यह 2023 के मिशन का आगाज है तो सीएम ने इसे नकार दिया. उन्होंने कहा कि "इसे 2023 का आगाज तो नहीं माना जा सकता है. लेकिन यह जरूर है कि अब तक जितने भी उपचुनाव हुए हैं उसमें कांग्रेस की जीत हुई है जो यह साबित करता है कि जनता का विश्वास हमारे ऊपर बना हुआ है"

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 की स्थिति अलग होगी-बीजेपी: इस मसले पर पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि "भानुप्रतापपुर उपचुनाव का छत्तीसगढ़ विधानसभा उपचुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा. भानुप्रतापपुर उपचुनाव की तुलना छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 से नहीं की जा सकती है. यह साल 2023 की राजनीति स्थिति पर निर्भर करेगा. आज प्रदेश के हालात ठीक नहीं है भ्रष्टाचार का बोलबाला है. आईएएस अधिकारी जेल जा रहे हैं. इतना ही नहीं भाजपा के द्वारा जो आरोप लगाए गए थे आरोप सामने आ रहे हैं"Equation of Chhattisgarh Assembly Election

ये भी पढ़ें: पंजे के कब्जे में भानुप्रतापपुर, कांग्रेस की सावित्री मंडावी जीतीं, बीजेपी को मिली करारी हार

राजनीतिक जानकारों का क्या है मत: इस मुद्दे पर ईटीवी भात ने राजनीति के जानकार वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा से बात की. उन्होंने कहा कि भानुप्रतापपुर उपचुनाव को आगामी विधानसभा चुनाव से जोड़कर नहीं देखा जा सकता. लेकिन यह जरूर है कि यदि इस चुनाव में भाजपा का उम्मीदवार जीतता, तो उनके कार्यकर्ताओं में उत्साह ओर जोश का संचार होता. क्योंकि जो पार्टी लगातार चुनाव हारती है उसका मनोबल गिरता जाता है. इसका असर चुनाव पर भी देखने को मिलता है. ऐसे में भाजपा के गिरते मनोबल का फायदा आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कितना उठाती है यह देखना होगा"

"छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 के लिए बीजेपी को मेहनत की जरूरत": वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा का कहना है कि "आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर दशा और दिशा की बात की जाए तो इसके लिए भाजपा को काफी मेहनत करने की जरूरत है. अभी कार्यकर्ताओं के अंदर में जो जोश और उत्साह होना चाहिए देखने को नहीं मिल रहा है. इतना ही नहीं जो चुनाव परिणाम आया है उसमें देखने को मिला है कि जो पिछली बार 78% मतदान हुआ था वह 72% पर आकर रुक गया है. ऐसे में यह 6% मतदाता किस राजनीतिक दल से जुड़े हैं यह देखने की जरूरत है. किस पार्टी के कार्यकर्ता मतदाताओं को घर से निकालने में नाकाम रहे हैं वह समीक्षा का विषय है."


आदिवासी समाज की उम्मीदवारी पर खुलकर नहीं कहा जा सकता: वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा का कहना है कि "सर्व आदिवासी समाज लगभग साल 2009-10 में जब सलवा जुडूम आंदोलन चल रहा था. तब से सक्रिय हुआ है. इनकी अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाएं हैं. लेकिन यह लोग एकजुट नहीं है. इसलिए एक पार्टी के तौर पर अगले विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी उतारेंगे यह कहना मुश्किल है. केवल जनजाति क्षेत्रों के एसटी सीटों पर ही प्रभाव डाल सकते हैं. लेकिन यह भी कहना होगा कि जब एक सामाजिक संगठन राजनीतिक संगठन के रूप में सामने आने लगता है तो, उसका प्रभाव समाज के अंदर कम होता है और वह धीरे-धीरे अप्रसांगिक होता जाता है. ऐसे में दबाव बनाने का काम ही सर्व आदिवासी समाज आगामी विधानसभा चुनाव में कर सकता है. मुझे नहीं लगता है कि राजनीतिक दल के रूप में सर्व आदिवासी समाज होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारेगा"

आरक्षण का मुद्दा अभी भी अनसुलझा: वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा शशांक शर्मा का कहना है कि "आरक्षण विधेयक का मुद्दा अभी पूरी तरह से सुलझा नहीं है इस बिल पर राज्यपाल ने हस्ताक्षर नहीं किये हैं. यदि यह मामला राष्ट्रपति के लिए आरक्षित कर दिया जाता है, तो भी इस पर राजनीति होगी . यदि राज्यपाल इस पर हस्ताक्षर कर देती हैं और नोटिफिकेशन जारी हो जाता है लेकिन उसके बाद मामला कोर्ट में जाता है. कोर्ट का निर्णय भी आगामी विधानसभा चुनाव में एक बड़ा प्रमुख हथियार बनेगा. ऐसे में आरक्षण का मुद्दा विधानसभा चुनाव 2023 में एक प्रमुख मुद्दा होगा"

ये भी पढ़ें: बस्तर की जनता कांग्रेस के साथ, आदिवासियों को गुमराह करने की बीजेपी की साजिश नाकाम: कवासी लखमा



भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट के चुनावी मिजाज पर नजर: संयुक्त मध्य प्रदेश के समय 1962 में पहली बार भानुप्रतापपुर का विधानसभा क्षेत्र घोषित किया गया. पहले चुनाव में निर्दलीय रामप्रसाद पोटाई ने कांग्रेस के पाटला ठाकुर को हराया. 1967 के दूसरे चुनाव में प्रजा सोसलिस्ट पार्टी के जे हथोई जीते. 1972 में कांग्रेस के सत्यनारायण सिंह जीते. 1979 में जनता पार्टी के प्यारेलाल सुखलाल सिंह जीत गए. 1980 और 1985 के चुनाव में कांग्रेस के गंगा पोटाई की जीत हुई. 1990 के चुनाव में निर्दलीय झाड़ूराम ने पोटाई को हरा दिया. 1993 में भाजपा के देवलाल दुग्गा यहां से जीत गए. 1998 में कांग्रेस के मनोज मंडावी जीते और अजीत जोगी सरकार में मंत्री रहे. साल 2003 में भाजपा के देवलाल दुग्गा फिर जीत गए. साल 2008 में भाजपा के ही ब्रम्हानंद नेताम यहां से विधायक बने. 2013 में कांग्रेस के मनोज मंडावी ने वापसी की. 2018 के चुनाव में भी उन्होंने जीत दर्ज की.



छत्तीसगढ़ विधानसभा की 90 सीटों के लिए साल 2023 में चुनाव होने हैं. उसे लेकर अभी से ही सभी राजनीतिक दल तैयारी में जुट गए हैं. ऐसे में भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा था. इस चुनाव परिणाम पर सबकी निगाहें टिकी थी. यदि यह चुनाव कांग्रेस की जगह भाजपा या फिर सर्व आदिवासी समाज का उम्मीदवार जीतता तो छत्तीसगढ़ की राजनीति का अलग ही दृश्य देखने को मिलता. लेकिन कांग्रेस ने अपनी परंपरागत सीट पर कब्जा जमाया है. ऐसे में अभी छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 की सियासी रस्साकशी को लेकर कुछ भी सटीक नहीं कहा जा सकता. लेकिन अपर एज के तौर पर कांग्रेस मानसिक रूप से ज्यादा मजबूत दिखाई देगी.

रायपुर: Chhattisgarh Assembly Election 2023 छत्तीसगढ़ के उपचुनाव में कांग्रेस लगातार जीत दर्ज करती जा रही है. इस सिलसिले को कांग्रेस ने भानुप्रतापपुर उपचुनाव में भी बरकरार रखा. राज्य में पांच सीटों पर अब तक उपचुनाव हुए. जिसमें पांचों सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की. bypoll results Effect on Cg politics भानुप्रतापपुर भी इस जीत का हिस्सा है. कांग्रेस उम्मीदवार सावित्री मंडावी ने बीजेपी के ब्रह्मानंद नेताम को 21 हजार से ज्यादा वोटों से पटखनी दी. सर्व आदिवासी समाज के उम्मीदवार अकबर राम कोर्राम तीसरे नंबर रहे. Expert opinion on Bhanupratappur bypoll results

उपचुनाव के नतीजे का प्रदेश की राजनीति पर कितना असर



भानुप्रतापपुर उपचुनाव के नतीजों का छत्तीसगढ़ की राजनीति पर असर: यह मना जा रहा था कि भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव परिणाम से आगामी विधानसभा चुनाव 2023 की दशा और दिशा तय होगी. यदि यहां कांग्रेस की जगह भाजपा का उम्मीदवार जीतता तो जरूर पिछले 4 विधानसभा उपचुनाव में हार के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं में जोश और उत्साह भरता. लेकिन परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आया. वहीं आदिवासी समाज के लिए भी यह आंकलन का विषय है कि उनकी लाख कोशिशों के बावजूद उनका उम्मीदवार यहां जीत हासिल नहीं कर पाया. ऐसे में वह भी आंकलन कर रहे हैं कि आखिर आदिवासी सीटों पर उनका कितना प्रभाव है. यही वजह है कि इस चुनाव परिणाम को आगामी विधानसभा चुनाव 2023 की दशा और दिशा तय करने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है.Equation of Chhattisgarh Assembly Election

सीएम ने भानुप्रतापपुर उपचुनाव को 2023 का आगाज नहीं माना: सीएम भूपेश बघेल ने भानुप्रतापपुर उपचुनाव को 2023 का आगाज नहीं माना है. जब पत्रकारों ने सीएम बघेल से पूछा कि क्या यह 2023 के मिशन का आगाज है तो सीएम ने इसे नकार दिया. उन्होंने कहा कि "इसे 2023 का आगाज तो नहीं माना जा सकता है. लेकिन यह जरूर है कि अब तक जितने भी उपचुनाव हुए हैं उसमें कांग्रेस की जीत हुई है जो यह साबित करता है कि जनता का विश्वास हमारे ऊपर बना हुआ है"

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 की स्थिति अलग होगी-बीजेपी: इस मसले पर पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि "भानुप्रतापपुर उपचुनाव का छत्तीसगढ़ विधानसभा उपचुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा. भानुप्रतापपुर उपचुनाव की तुलना छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 से नहीं की जा सकती है. यह साल 2023 की राजनीति स्थिति पर निर्भर करेगा. आज प्रदेश के हालात ठीक नहीं है भ्रष्टाचार का बोलबाला है. आईएएस अधिकारी जेल जा रहे हैं. इतना ही नहीं भाजपा के द्वारा जो आरोप लगाए गए थे आरोप सामने आ रहे हैं"Equation of Chhattisgarh Assembly Election

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राजनीतिक जानकारों का क्या है मत: इस मुद्दे पर ईटीवी भात ने राजनीति के जानकार वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा से बात की. उन्होंने कहा कि भानुप्रतापपुर उपचुनाव को आगामी विधानसभा चुनाव से जोड़कर नहीं देखा जा सकता. लेकिन यह जरूर है कि यदि इस चुनाव में भाजपा का उम्मीदवार जीतता, तो उनके कार्यकर्ताओं में उत्साह ओर जोश का संचार होता. क्योंकि जो पार्टी लगातार चुनाव हारती है उसका मनोबल गिरता जाता है. इसका असर चुनाव पर भी देखने को मिलता है. ऐसे में भाजपा के गिरते मनोबल का फायदा आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कितना उठाती है यह देखना होगा"

"छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 के लिए बीजेपी को मेहनत की जरूरत": वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा का कहना है कि "आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर दशा और दिशा की बात की जाए तो इसके लिए भाजपा को काफी मेहनत करने की जरूरत है. अभी कार्यकर्ताओं के अंदर में जो जोश और उत्साह होना चाहिए देखने को नहीं मिल रहा है. इतना ही नहीं जो चुनाव परिणाम आया है उसमें देखने को मिला है कि जो पिछली बार 78% मतदान हुआ था वह 72% पर आकर रुक गया है. ऐसे में यह 6% मतदाता किस राजनीतिक दल से जुड़े हैं यह देखने की जरूरत है. किस पार्टी के कार्यकर्ता मतदाताओं को घर से निकालने में नाकाम रहे हैं वह समीक्षा का विषय है."


आदिवासी समाज की उम्मीदवारी पर खुलकर नहीं कहा जा सकता: वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा का कहना है कि "सर्व आदिवासी समाज लगभग साल 2009-10 में जब सलवा जुडूम आंदोलन चल रहा था. तब से सक्रिय हुआ है. इनकी अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाएं हैं. लेकिन यह लोग एकजुट नहीं है. इसलिए एक पार्टी के तौर पर अगले विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी उतारेंगे यह कहना मुश्किल है. केवल जनजाति क्षेत्रों के एसटी सीटों पर ही प्रभाव डाल सकते हैं. लेकिन यह भी कहना होगा कि जब एक सामाजिक संगठन राजनीतिक संगठन के रूप में सामने आने लगता है तो, उसका प्रभाव समाज के अंदर कम होता है और वह धीरे-धीरे अप्रसांगिक होता जाता है. ऐसे में दबाव बनाने का काम ही सर्व आदिवासी समाज आगामी विधानसभा चुनाव में कर सकता है. मुझे नहीं लगता है कि राजनीतिक दल के रूप में सर्व आदिवासी समाज होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारेगा"

आरक्षण का मुद्दा अभी भी अनसुलझा: वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा शशांक शर्मा का कहना है कि "आरक्षण विधेयक का मुद्दा अभी पूरी तरह से सुलझा नहीं है इस बिल पर राज्यपाल ने हस्ताक्षर नहीं किये हैं. यदि यह मामला राष्ट्रपति के लिए आरक्षित कर दिया जाता है, तो भी इस पर राजनीति होगी . यदि राज्यपाल इस पर हस्ताक्षर कर देती हैं और नोटिफिकेशन जारी हो जाता है लेकिन उसके बाद मामला कोर्ट में जाता है. कोर्ट का निर्णय भी आगामी विधानसभा चुनाव में एक बड़ा प्रमुख हथियार बनेगा. ऐसे में आरक्षण का मुद्दा विधानसभा चुनाव 2023 में एक प्रमुख मुद्दा होगा"

ये भी पढ़ें: बस्तर की जनता कांग्रेस के साथ, आदिवासियों को गुमराह करने की बीजेपी की साजिश नाकाम: कवासी लखमा



भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट के चुनावी मिजाज पर नजर: संयुक्त मध्य प्रदेश के समय 1962 में पहली बार भानुप्रतापपुर का विधानसभा क्षेत्र घोषित किया गया. पहले चुनाव में निर्दलीय रामप्रसाद पोटाई ने कांग्रेस के पाटला ठाकुर को हराया. 1967 के दूसरे चुनाव में प्रजा सोसलिस्ट पार्टी के जे हथोई जीते. 1972 में कांग्रेस के सत्यनारायण सिंह जीते. 1979 में जनता पार्टी के प्यारेलाल सुखलाल सिंह जीत गए. 1980 और 1985 के चुनाव में कांग्रेस के गंगा पोटाई की जीत हुई. 1990 के चुनाव में निर्दलीय झाड़ूराम ने पोटाई को हरा दिया. 1993 में भाजपा के देवलाल दुग्गा यहां से जीत गए. 1998 में कांग्रेस के मनोज मंडावी जीते और अजीत जोगी सरकार में मंत्री रहे. साल 2003 में भाजपा के देवलाल दुग्गा फिर जीत गए. साल 2008 में भाजपा के ही ब्रम्हानंद नेताम यहां से विधायक बने. 2013 में कांग्रेस के मनोज मंडावी ने वापसी की. 2018 के चुनाव में भी उन्होंने जीत दर्ज की.



छत्तीसगढ़ विधानसभा की 90 सीटों के लिए साल 2023 में चुनाव होने हैं. उसे लेकर अभी से ही सभी राजनीतिक दल तैयारी में जुट गए हैं. ऐसे में भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा था. इस चुनाव परिणाम पर सबकी निगाहें टिकी थी. यदि यह चुनाव कांग्रेस की जगह भाजपा या फिर सर्व आदिवासी समाज का उम्मीदवार जीतता तो छत्तीसगढ़ की राजनीति का अलग ही दृश्य देखने को मिलता. लेकिन कांग्रेस ने अपनी परंपरागत सीट पर कब्जा जमाया है. ऐसे में अभी छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 की सियासी रस्साकशी को लेकर कुछ भी सटीक नहीं कहा जा सकता. लेकिन अपर एज के तौर पर कांग्रेस मानसिक रूप से ज्यादा मजबूत दिखाई देगी.

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