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Manikarnika snan 2022 : क्या है मणिकर्णिका स्नान की मान्यता और पौराणिक कथा

Manikarnika snan 2022 मणिकर्णिका घाट एक बनारस में गंगा नदी का पवित्र घाट है. जिसमें हिन्दू मान्यताओं के अनुसार स्नान का महत्व बताया जाता है. मणिकर्णिका घाट वाराणसी का बहुत प्रसिद्ध घाट है. हिन्दू धर्म में इस घाट पर स्नान करना बहुत पुण्य का काम माना जाता हैं . काशी में यह एक सबसे प्रसिद्द शमशान घाट में से एक हैं, इस घाट पर वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन स्नान का महत्व हैं

Manikarnika snan 2022
क्या है मणिकर्णिका स्नान की मान्यता और पौराणिक कथा
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Published : Nov 6, 2022, 3:24 AM IST

Manikarnika snan 2022 मणिकर्णिका मशहूर शमशान घाटों में से एक है. यह समस्त भारत में प्रसिद्ध है. यहां पर शिव जी एवं मां दुर्गा का प्रसिद्ध मंदिर भी है. जिसका निर्माण मगध के राजा ने करवाया था. मणिकर्णिका घाट का इतिहास बहुत पुराना है. कई राज इस घाट से जुड़े हुए हैं. कहते है यहां की चिता की आग कभी शांत नहीं होती है. हर रोज यहां 300 से ज्यादा मुर्दों को जलाया जाता है. यहां पर जलाये गए इन्सान को सीधे मोक्ष मिलता है. Belief and legend of Manikarnika snan 2022

कितनी साल पुरानी है परंपरा : मणिकर्णिका घाट पर जलाने के लिए पहले लोगों को पैसे देने पड़ते हैं, तब यहां पर चिता मुहैया कराई जाती है. यहां पर फ्री में कोई चिता नहीं जला सकता . इस घाट में 3000 साल से भी ज्यादा समय से ये कार्य होते आ रहा है. बनारस के मणिकर्णिका घाट में अंतिम संस्कार का कार्य डोम जाति के द्वारा होता है. पहले लोग अपनी ख़ुशी से इनको दान दक्षिणा दे दिया करते थे. एक बार जब राजा हरीशचंद्र अपनी किसी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए अपना राज-पाट छोड़, एक साधारण गरीब इन्सान की तरह जीवन व्यतीत कर रहे थे. उस समय उनके बेटे की मृत्यु हो गई, और मणिकर्णिका घाट में अंतिम संस्कार में दान देने के लिए भी उनके पास पैसे नहीं थे. तब उन्होंने अपनी पत्नी की साड़ी का टुकड़ा डोम जाति को दिया, जिसके बाद उनके बेटे का अंतिम संस्कार हो सका.

दूसरों से अलग क्यों है मणिकर्णिका घाट : मणिकर्णिका घाट में दो ऐसी विचित्र बात होती है, जो इसे दूसरे शमशान घाट से अलग बनाती है.मणिकर्णिका घाट में फाल्गुन माह की एकादशी के दिन चिता की राख से होली खेली जाती है. कहते है, इस दिन शिव के रूप विश्वनाथन बाबा, अपनी पत्नी पार्वती जी का गौना कराकर अपने देश लोटे थे. इनकी डोली जब यहां से गुजरती है तो इस घाट के पास के सभी अघोरी बाबा लोग नाच गाने, रंगों से इनका स्वागत करते हैं. यह प्रथा अभी तक चली आ रही है. आज भी वहां बाबा मथान के मंदिर में अघौरी बाबा लोग चिता की राख, अबीर, गुलाल के साथ होली खेलते हैं, इसके बाद बाबा की पूजा आराधना करते है. इसके साथ ही डमरू, नगाड़े के शोर के साथ हर हर महादेव की जय जयकार की जाती है.

इसके अलावा मणिकर्णिका घाट में चैत्र नवरात्रि की अष्टमी के दिन वैश्या लोगों का विशेष नृत्य का कार्यक्रम होता है. यहां इन लोगों को किसी जोर जबरदस्ती या पैसे देकर नहीं बुलाया जाता है, बल्कि दूर-दूर से लोग खुद अपनी मर्जी से आती है. कहते है ऐसा करने से उन्हें इस जीवन में मुक्ति मिलती है, साथ ही उन्हें इस बात का दिलासा होता है कि अगले जन्म में वे वैश्या नहीं बनेंगी. यहां नाचना वे अपनी खुशनसीबी समझती है. साथ ही भगवान के सामने इस तरह नाचने में उन्हें ख़ुशी मिलती है.

क्यों करती हैं वैश्या नृत्य : बाबा मथान के मंदिर के बनने के बाद वहां एक राजा ने कार्यक्रम का आयोजन करवाया था, जिसके लिए देश-देश के कलाकारों को प्रस्तुति के लिए आमंत्रण दिए गए थे. लेकिन श्मशान जैसी जगह में कोई भी प्रस्तुति देने से डर रहा था, ऐसे में राजा को अपनी बात किसी तरह पूरी करनी थी. तब उन्हें किसी ने वैश्या लोगों को बुलाने को बोला, राजा ने उन बदनाम गलियों में आमंत्रण भेजा, जिसे पाकर वे बहुत खुश हुई और उसे स्वीकार लिया. ये तभी से प्रथा चलती आ रही है.

मणिकर्णिका स्नान 2022 में कब है (ManiKarnika Snan Date) : प्रति वर्ष वैकुण्ठ चतुर्दशी (कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की चौदस) के दिन मणिकर्णिका घाट पर स्नान का महत्व बताया गया है, इस दिन घाट पर स्नान से पाप से मुक्ति मिलती हैं. इस वर्ष 2022 में यह स्नान 7 नवंबर को किया जायेगा .मणिकर्णिका घाट में वैकुण्ठ चौदस के दिन श्रद्धालु रात्रि के तीसरे पहर स्नान करने आते हैं, कार्तिक माह का विशेष महत्त्व होने के कारण इस घाट पर भक्तों का ताता लगा रहता हैं .

मणिकर्णिका घाट का इतिहास (ManiKarnika Ghat History) : एक पौराणिक कथा के अनुसार जब माता सति ने अपने पिता के व्यवहार से नाराज होकर अपने आप को अग्नि में समर्पित कर दिया था . तब स्वयं शिव माता सति के शरीर को लेकर कैलाश पर जा रहे थे . तब उनके शरीर का एक एक हिस्सा पृथ्वी पर गिर रहा था . कहते हैं उन सभी स्थानों पर शक्ति पीठ की स्थापना की गई हैं इस प्रकार पृथ्वी पर 51 शक्ति पीठ हैं . उसी समय माता सति के कान का कुंडल वाराणसी के इस घाट पर गिर जाता हैं . तब ही से इस घाट को मणिकर्णिका (Manikarnika Ghat) के नाम से जाना जाता हैं.इस जगह पर एक कुंड बन गया. इसी कुंड के जल से लोग पवित्र तिथि को स्नान करते हैं.

Manikarnika snan 2022 मणिकर्णिका मशहूर शमशान घाटों में से एक है. यह समस्त भारत में प्रसिद्ध है. यहां पर शिव जी एवं मां दुर्गा का प्रसिद्ध मंदिर भी है. जिसका निर्माण मगध के राजा ने करवाया था. मणिकर्णिका घाट का इतिहास बहुत पुराना है. कई राज इस घाट से जुड़े हुए हैं. कहते है यहां की चिता की आग कभी शांत नहीं होती है. हर रोज यहां 300 से ज्यादा मुर्दों को जलाया जाता है. यहां पर जलाये गए इन्सान को सीधे मोक्ष मिलता है. Belief and legend of Manikarnika snan 2022

कितनी साल पुरानी है परंपरा : मणिकर्णिका घाट पर जलाने के लिए पहले लोगों को पैसे देने पड़ते हैं, तब यहां पर चिता मुहैया कराई जाती है. यहां पर फ्री में कोई चिता नहीं जला सकता . इस घाट में 3000 साल से भी ज्यादा समय से ये कार्य होते आ रहा है. बनारस के मणिकर्णिका घाट में अंतिम संस्कार का कार्य डोम जाति के द्वारा होता है. पहले लोग अपनी ख़ुशी से इनको दान दक्षिणा दे दिया करते थे. एक बार जब राजा हरीशचंद्र अपनी किसी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए अपना राज-पाट छोड़, एक साधारण गरीब इन्सान की तरह जीवन व्यतीत कर रहे थे. उस समय उनके बेटे की मृत्यु हो गई, और मणिकर्णिका घाट में अंतिम संस्कार में दान देने के लिए भी उनके पास पैसे नहीं थे. तब उन्होंने अपनी पत्नी की साड़ी का टुकड़ा डोम जाति को दिया, जिसके बाद उनके बेटे का अंतिम संस्कार हो सका.

दूसरों से अलग क्यों है मणिकर्णिका घाट : मणिकर्णिका घाट में दो ऐसी विचित्र बात होती है, जो इसे दूसरे शमशान घाट से अलग बनाती है.मणिकर्णिका घाट में फाल्गुन माह की एकादशी के दिन चिता की राख से होली खेली जाती है. कहते है, इस दिन शिव के रूप विश्वनाथन बाबा, अपनी पत्नी पार्वती जी का गौना कराकर अपने देश लोटे थे. इनकी डोली जब यहां से गुजरती है तो इस घाट के पास के सभी अघोरी बाबा लोग नाच गाने, रंगों से इनका स्वागत करते हैं. यह प्रथा अभी तक चली आ रही है. आज भी वहां बाबा मथान के मंदिर में अघौरी बाबा लोग चिता की राख, अबीर, गुलाल के साथ होली खेलते हैं, इसके बाद बाबा की पूजा आराधना करते है. इसके साथ ही डमरू, नगाड़े के शोर के साथ हर हर महादेव की जय जयकार की जाती है.

इसके अलावा मणिकर्णिका घाट में चैत्र नवरात्रि की अष्टमी के दिन वैश्या लोगों का विशेष नृत्य का कार्यक्रम होता है. यहां इन लोगों को किसी जोर जबरदस्ती या पैसे देकर नहीं बुलाया जाता है, बल्कि दूर-दूर से लोग खुद अपनी मर्जी से आती है. कहते है ऐसा करने से उन्हें इस जीवन में मुक्ति मिलती है, साथ ही उन्हें इस बात का दिलासा होता है कि अगले जन्म में वे वैश्या नहीं बनेंगी. यहां नाचना वे अपनी खुशनसीबी समझती है. साथ ही भगवान के सामने इस तरह नाचने में उन्हें ख़ुशी मिलती है.

क्यों करती हैं वैश्या नृत्य : बाबा मथान के मंदिर के बनने के बाद वहां एक राजा ने कार्यक्रम का आयोजन करवाया था, जिसके लिए देश-देश के कलाकारों को प्रस्तुति के लिए आमंत्रण दिए गए थे. लेकिन श्मशान जैसी जगह में कोई भी प्रस्तुति देने से डर रहा था, ऐसे में राजा को अपनी बात किसी तरह पूरी करनी थी. तब उन्हें किसी ने वैश्या लोगों को बुलाने को बोला, राजा ने उन बदनाम गलियों में आमंत्रण भेजा, जिसे पाकर वे बहुत खुश हुई और उसे स्वीकार लिया. ये तभी से प्रथा चलती आ रही है.

मणिकर्णिका स्नान 2022 में कब है (ManiKarnika Snan Date) : प्रति वर्ष वैकुण्ठ चतुर्दशी (कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की चौदस) के दिन मणिकर्णिका घाट पर स्नान का महत्व बताया गया है, इस दिन घाट पर स्नान से पाप से मुक्ति मिलती हैं. इस वर्ष 2022 में यह स्नान 7 नवंबर को किया जायेगा .मणिकर्णिका घाट में वैकुण्ठ चौदस के दिन श्रद्धालु रात्रि के तीसरे पहर स्नान करने आते हैं, कार्तिक माह का विशेष महत्त्व होने के कारण इस घाट पर भक्तों का ताता लगा रहता हैं .

मणिकर्णिका घाट का इतिहास (ManiKarnika Ghat History) : एक पौराणिक कथा के अनुसार जब माता सति ने अपने पिता के व्यवहार से नाराज होकर अपने आप को अग्नि में समर्पित कर दिया था . तब स्वयं शिव माता सति के शरीर को लेकर कैलाश पर जा रहे थे . तब उनके शरीर का एक एक हिस्सा पृथ्वी पर गिर रहा था . कहते हैं उन सभी स्थानों पर शक्ति पीठ की स्थापना की गई हैं इस प्रकार पृथ्वी पर 51 शक्ति पीठ हैं . उसी समय माता सति के कान का कुंडल वाराणसी के इस घाट पर गिर जाता हैं . तब ही से इस घाट को मणिकर्णिका (Manikarnika Ghat) के नाम से जाना जाता हैं.इस जगह पर एक कुंड बन गया. इसी कुंड के जल से लोग पवित्र तिथि को स्नान करते हैं.

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