रायपुर: रायपुर के गोल बाजार के पास हलवाई लाइन में बाबा हजरत सैयद कुतुब शाह वली की दरगाह है. सालों से ये दरगाह चिरागों से ही रोशन होती आ रही है. कहते हैं कि जो भी इस दरगाह में अपनी मनोकामना लेकर आते हैं, उनकी मुराद जल्द ही पूरी हो जाती है. रोजाना सैकड़ों जायरीन दरगाह में अर्जी लगाते हैं.
मन्नत पूरी होने पर जलाते हैं चिराग: कहते हैं कि जिस भक्त की मुराद यहां पूरी होती है, वो भक्त हर शुक्रवार यहां 5 या फिर 7 चिराग जलाता है. बाबा कुतुब शाह वली को चिराग वाले बाबा के नाम से भी जाना जाता है. इस दरगाह में इलेक्ट्रॉनिक लाइट नहीं जलाई जाती है. दरगाह चिरागों की रोशनी से ही चमकती है. यहां सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, बल्कि सभी धर्म के लोग अपनी मुरादें लेकर आते हैं और मुराद पूरी होने पर चिराग जलाते हैं.
आज तक नहीं जली कोई इलेक्ट्रॉनिक लाइट: इस दरगाह में आज तक एक भी इलेक्ट्रॉनिक लाइट नहीं जली है. कहा जाता है कि बाबा इलेक्ट्रॉनिक बल्ब से नफरत करते हैं. बाबा को चिराग की रोशनी बेहद पसंद है. कुछ साल पहले मजार के लोगों ने मिलकर एक ट्यूबलाइट भी लगाई थी. रातों-रात ट्यूबलाइट फूट गई. इसके बाद भी कई बल्ब से दरगाह को रोशन करने की कोशिश की गई. लेकिन बल्ब या तो फ्यूज हो जाते या फिर टूट जाते.
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200 साल पुराना है ये मजार: मजार के प्रमुख नोमान अकरम हामिद ने बताया कि "ये मजार लगभग डेढ़ सौ से 200 साल पुराना है. हमारे पूर्वज पिछले 100 सालों से इस मजार में सेवा देते आ रहे हैं. ये मजार चिराग वाले बाबा के नाम से मशहूर है. इस मजार को सदियों से चिराग की रोशनी ही रोशन हो रही है. कई बार लोगों ने यहां इलेक्ट्रॉनिक लाइटें लगाने की कोशिश की, लेकिन हर बार इस मजार को लोग इलेक्ट्रॉनिक लाइट से सजाने में नाकामयाब रहे."
ना कभी पंखा चला न बिजली उपकरण का हुआ प्रयोग: मजार के प्रमुख नोमान अकरम हामिद ने बताया, " यहां मौजूद लोगों ने महसूस किया है कि बाबा को प्राकृतिक लाइट ही पसंद है. बिजली के उपकरण यहां काम नहीं करते. एक बार स्प्रे पेंटिंग की मशीन से स्प्रे करने की कोशिश की गई, लेकिन मशीन जलकर खाक हो गई. इसके बाद हमने यह महसूस किया कि बाबा को रोशनी और शोर पसंद नहीं है."
दूसरे धर्म के लोग भी यहां इफ्तार में होते हैं शामिल: दरगाह में रोजा इफ्तार करने के लिए ना सिर्फ मुस्लिम समुदाय बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी आते हैं. इस दरगाह में दूसरे धर्म के लोग आकर इफ्तार करते हैं.